मेरठ (ब्यूरो)। साल दर साल डेंगू का मच्छर अपने स्ट्रैन को आसपास के माहौल के हिसाब से मजबूत करता जा रहा है। इसी कारण आज डेंगू पर एंटी लार्वा, फागिंग या घरों में इस्तेमाल होने वाले मॉस्किटो कॉइल तक बेअसर साबित होते जा रहे हैं। बावजूद इसके नगर निगम हर साल बरसात में डेंगू और मलेरिया से बचाव के लिए परंपरागत फॉगिंग अभियान के नाम पर बस खानापूर्ति में जुटा है। हालत यह है कि अधिकारी और कर्मचारी मच्छर मारने की दवा को मानकों के अनुसार प्रयोग नहीं करते हैं। जिससे मच्छर तो नहीं मरते लेकिन दवा का बिल जरूर बढ़ता जाता है।

बरसात के बाद खतरा
गौरतलब है कि बरसात का मौसम आते ही डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां भी बढ़ जाती हैं। ये बीमारियां मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से फैलती है। इसमें डेंगू सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। बीते साल में कई लोगों की डेंगू से मौत भी हो चुकी है। बरसात के बाद का मौसम मच्छर के पनपने का सबसे अनुकूल समय होता है क्योंकि इन महीनों में बारिश के बाद साफ पानी के गड्ढे भर जाते हैं। यहीं यह मच्छर अंडे देते हैं, जिन्हें हम लार्वा कहते हैं। इस लार्वा को खत्म करने के लिए स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को एंटी लार्वा और फागिंग का छिड़काव कराया जाता है। शहर के 90 वार्डों में फॉगिंग अभियान चलाया जाता है। ऐसे में फागिंग में इस्तेमाल होने वाली मैलाथियान 95 प्रतिशत दवाई की हर साल खरीद की जाती है। इसके करीब 28 से 30 ड्रम खरीदे जाते हैं। जो कि वार्ड के हिसाब से डिपो द्वारा वितरित की जाती है।

एकमात्र मैलाथियान का सहारा
वहीं, स्वास्थ्य विभाग के एक्सपट्र्स की मानें तो डेंगू या मलेरिया रोधी फागिंग में छह प्रकार के केमिकल का प्रयोग होता है। इसमें डेल्टामेथलीन, डेल्ट्रामेथेरियन ईडब्ल्यूओ, लेम्बड़ा साइक्लोसिरिन, मेलाथियन ईओडब्ल्यू एंड यूएल, पेरामिथिन, एस बायोलेरिथिन एंड पाइपोरिनिल बूटोक्साइड डीडी ट्रांस साइपेनोथिरिन ईसी शामिल हैं। लेकिन इन छह में से केवल एक मैलाथियान का प्रयोग ही सालों से निगम द्वारा किया जा रहा है। स्थिति यह है कि फागिंग से होने वाला धुआं मच्छरों को मारता नहीं है बल्कि कुछ देर के लिए बस मच्छर भाग जाते हैं। फॉगिंग मशीनों में 95 लीटर डीजल में कीटनाशक और मैलाथियान का मिश्रण 1.19 के अनुपात में मिलाकर इस्तेमाल करते हैं लेकिन उसका अमाउंट भी कम होता है। मच्छरों की बॉडी उस केमिकल के रिपेलेंट अब नहीं है। इसके चलते शहर के कुछ चुनिंदा हिस्सों में मैलाथियान से की जा रही फॉगिंग से भी मच्छरों के आतंक पर काबू पाने का कोई स्थाई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में स्प्रे का मच्छरों पर लगभग दो से तीन घंटे तक अस्थायी प्रभाव पड़ता है।

इन केमिकल का प्रयोग है जरूरी
डेल्टामेथेरिन यूएल
डेल्टामेथेरिन ईडबल्यू
लेम्बडा-साइक्लोरिथिन ईसी
मेलाथियोन ईडबल्यू एंड यूएल
पेरामिथिन, एस-बायोलेरिथिन
एंड पाइपोरिनिल बूटोक्साइड
डीडी, ट्रांस साइपेनोथिरिन ईसी

फागिंग के नाम पर घोटाले
दरअसल, फागिंग के लिए प्रयोग होने वाली मच्छर मारने की दवा मैलाथियान के ड्रमों पर न तो कंपनी का नाम लिखा था और न ही दवाई की एक्सपाइयरी व बैच नंबर कहीं दर्ज था। इस पर खुद तत्कालीन मेयर ने जांच बैठाई थी, जिसमें दवा में खामियां मिली थी।

रोका गया था भुगतान
ऐसे में इस दवा की क्वालिटी और खरीद पर महापौर सुनीता वर्मा ने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर संबंधित कंपनी का पेमेंट तक रूकवा दिया गया था। जांच में सामने आया था कि निगम ने जिस कंपनी से मैलाथियान 95 प्रतिशत नाम से दवाई खरीदी उस कंपनी का नाम दवाई के ड्रमों पर नहीं लिखा था। साथ ही दवाई की एक्सपाइयरी व बनाने की तारीख का भी जिक्र नहीं था। साथ ही जितने भी ड्रमों में कंपनी ने दवा की सप्लाई की थी वह सभी खुले थे।

फैक्ट्स पर एक नजर में
90 वार्डों में नियमित रूप से निगम की ओर से कराई जाती है फॉगिंग
100 लीटर के करीब आती है मैलाथियान दवा आती है एक ड्रम में
1.10 से 1.15 लाख रुपए के करीब होती है एक ड्रम की कीमत
28 से 30 ड्रम का हर सीजन में होता है प्रयोग

हमारे मोहल्ले में पिछली बार कब फागिंग हुई थी, यह भी लोगों को याद नहीं होगा। केवल कागजों में फागिंग हो रही है।
संजय

नगर निगम क्षेत्र के अधिकतर मोहल्लों में मच्छरों का प्रकोप है। बरसात के बाद अब अचानक मच्छर बढ़ गए हैं। लेकिन फागिंग केवल कुछ गलियों तक सीमित रहती है।
नफीस

शहर में जगह-जगह गंदगी और जलभराव है, जिस कारण से मच्छरों का प्रकोप इस सीजन में अधिक बढ़ जाता है। मगर नगर निगम केवल खानापूर्ति करता रहता है।
देव

डेंगू के मच्छर का अंडा तीन साल तक जिंदा रहता है। जबकि मच्छर का जीवन केवल सात दिन का होता है। मच्छर मारने के लिए घरों के अंदर होने वाली कीटनाशक दवाओं के छिड़काव को अब बंद कर दिया गया है। इसके स्थान पर बायो पेस्टिसाइड जैसे नीम प्रोडक्ट से बने कैमिकल को प्रयोग में लाया जा रहा है। क्योंकि पहले कीटनाशक कच्चे मकानों की दीवारों में आब्जर्व हो जाते थे लेकिन अब पक्के मकानों में ऐसा नहीं हो पाता है।
डॉ। अशोक तालियान, मंडलीय सर्विलांस प्रभारी

डेंगू की रोकथाम के लिए बकायदा रोस्टर बनाकर सुबह-शाम नियमित रूप से फागिंग कराई जा रही है। शहर के हॉट स्पॉट इसमें प्राथमिक रूप से शामिल हैं। मैलाथियान दवा जरूरत के अनुसार मंगा ली गई है, जो डिमांड के हिसाब से वार्डों में दी जा रही है।
डॉ। हरपाल, प्रभारी, नगर स्वास्थ्य अधिकारी