मेरठ (ब्यूरो)। बच्चों के साथ ही उनके अभिभावकों के लिए ये खबर बेहद खास हो सकती है। मगर अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि बच्चे इस विशेष भोजन से वंचित रह जाएंगे। इसका कारण यह है कि जिन एनजीओ के कंधे पर मिड-डे मील देने की जिम्मेदारी है, उनके पास विशेष भोजन में खीर तो छोडि़ए बच्चों को सामान्य मैन्यू शामिल दूध पिलाने तक का बजट नहीं बचा है।
महीनों से बजट नहीं
मेरठ में बेसिक के 1400 स्कूलों के करीब पौने दो लाख और माध्यमिक के करीब 340 स्कूलों के करीब ढाई लाख बच्चों को रोजाना मैन्यू के मुताबिक जिले के चयनित सात एनजीओ मिड-डे मील पहुंचा रहे हैं। मगर हालात यह हैैं कि अब इन एनजीओ के पास मिड-डे मील का बजट ही नहीं बचा है। मिड-डे मील देने वाले एनजीओ संचालकों का कहना है कि वर्ष 2019 के बाद से ही उनका भुगतान नहीं हुआ है। 2019 और 2022 की अपूर्ति मिलाकर सात एनजीओ का करीब दो करोड़ 80 लाख रुपए से अधिक भुगतान अभी तक शासन स्तर से नहीं किया गया है। प्रत्येक एनजीओ द्वारा 40 से 45 बेसिक और माध्यमिक स्कूलों में मिड-डे मील पहुंचाने का कार्य किया जाता है।
दूध और सोयाबीन में कटौती
बुधवार एवं शुक्रवार को बच्चों को दूध देने का प्रावधान है। जिसके तहत 20 लीटर दूध 100 बच्चों को मिड-डे मील में दिया जाता है। मगर बजट न होने के चलते एनजीओ द्वारा दूध को बंद कर दिया गया है। वहीं सोमवार, गुरूवार व शनिवार को सब्जी व चावल में यूज किए जाने वाले सोयाबीन की मात्रा को 1.5 किलो से कम करके एक किलो कर दिया गया है। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो बच्चों के मिड-डे मील मैन्यू से प्रोटीन और विटामिन को कम कर दिया गया है।
मिड-डे मील में ताहरी
दरअसल, शासन ने 11 से 17 अगस्त तक मिड-डे मील में बच्चों को विशेष भोजन के तौर पर पूड़ी, सब्जी, फल, हलवा, खीर और लड्डू व फल भी देने के निर्देश जारी किए हैैं। मगर एनजीओ के पास बजट न होने के चलते बेसिक और माध्यमिक स्कूलों के लाखों बच्चों को जैसे-तैसे ताहरी के जरिए भरपूर पोषण देने की कवायद की जा रही है।
ये है रोजाना परोसे जाने वाला मिड-डे मील का मैन्यू
सोमवार- रोटी, सोयाबीन युक्त सब्जी, ताजा मौसमी फल
मंगलवार- चावल और दाल
बुधवार- तहरी, उबला दूध, हरी सब्जी
गुरुवार- रोटी, दाल
शुक्रवार- तहरी सोयाबीन युक्त, मौसमी सब्जी
शनिवार- चावल, सोयाबीन युक्त सब्जी, मौसमी सब्जी
एक नजर में फैक्ट्स
1400 बेसिक स्कूलों के करीब पौने दो लाख बच्चों को दिया जाता मिड-डे मील।
माध्यमिक के 340 स्कूलों के करीब ढाई लाख बच्चों को दिया जाता मिड-डे मील।
सात चयनित एनजीओ के कंधों पर है करीब 4.25 हजार बच्चों को मिड-डे मील परसोने की जिम्मेदारी।
40 से 45 बेसिक और माध्यमिक स्कूलों में मिड-डे मील पहुंचाने का कार्य करती है प्रत्येक एनजीओ।
2019 और 2022 तक का सात एनजीओ का करीब दो करोड़ 80 लाख रुपए शासन पर बकाया।
मिड-डे मील में बच्चों को दूध अब नहीं मिल रहा है। सोयाबीन में भी कुछ कटौती हुई है। कुछ बजट की समस्या आ रही है, जिसके चलते ऐसा हो रहा है।
शशि, शिक्षिका
कुछ बजट की समस्याएं है जिसके चलते बच्चों को दिए जाने वाले मिड-डे मील के मैन्यू में कुछ कटौती की गई है। ये शासन स्तर का मामला है।
माला, शिक्षिका
पहले हमें मिड-डे मील के जरिए स्कूल में दूध मिलता था, लेकिन अब काफी समय से नहीं मिल रहा है, बाकी तो कभी चावल, कभी सब्जी आदि मिलती है।
प्रतिक्षा, स्टूडेंट
पहले सब बच्चों को स्कूल में दूध मिलता था लेकिन अभी नहीं मिलता है। बाकी तो सब्जी, रोटी और चावल मिड-डे मील में खाने को मिल रहे हैैं।
पवित्र, स्टूडेंट
शासन के निर्देशों के अनुसार केवल विशेष भोजन परोसने की जानकारी है, मगर इसका बजट नहीं आया है। शासन से इस बारे में जानकारी की जाएगी।
वीरेंद्र कुमार, मिड-डे मील समंव्यक, मेरठ मंडल
मिड-डे मील का काफी समय से भुगतान नहीं हुआ है। पहले ही बजट नहीं है ऊपर से विशेष भोजन देने के निर्देश हैैं लेकिन अभी बजट ही नहीं आया है।
रवि, संचालक, उज्जवल सेवा समिति (एनजीओ)