रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों ने माना कि जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए
कोरोना काल में न होगी रामलीला और न फूंके जाएंगे रावण परिवार के विशालकाय पुतले
Meerut रामलीला के लिए हर बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के बड़े-बड़े पुतले बनाए जाते थे, सैकड़ों कारीगर इन पर कागज़ चढ़ाने, रंग रोगन करने में व्यस्त नजर आते थे, लेकिन इस बार सब कुछ कोरोना की भेंट चढ़ गया है। पिछले साल कारीगरों को सड़क के किनारे से हटा दिया गया है। मेरठ के कारीगर घर में ही पुतले बना सकते हैं, लेकिन इस बार काम ही नहीं है। ऐसे में कारीगर निराश हैं। कोरोना ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
दस दिन रहती थी रौनक
साल 2020 में शुरु हुई कोरोना बीमारी साल के अंत तक जाने वाली नहीं है। 9 महीने कोरोना संकट में बीत गए है, अब फेस्टिवल सीजन पर भी इसका असर दिखेगा। 25 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाना है, इससे पहले दस दिन तक शहर में कई जगह पर रामलीला भी होती है, लेकिन अभी तक न तो किसी रामलीला को परमिशन मिली है और न दशहरा मनाने पर कोई फैसला हो सका है। बता दें कि दशहरा की तैयारियां एक महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं, जो अभी तक कहीं नजर ही नहीं आ रही हैं। कई रामलीला सभाओं ने रामलीला व दशहरे के आयोजन के लिए परमिशन अप्लाई कर दी है। अपने स्तर पर कमेटियों ने तैयारियां शुरु कर दी है, लेकिन अभी तक ये साफ नहीं हो सका है कि इतने बड़े आयोजन को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ किस तरह करवाया जाएगा।
रोजी-रोटी पर संकट
सबसे बड़ा रावण बनाने वाले महताब ने बताया कि वो मेरठ में रजबन, सुरजकुंड व जेलचुंगी के पुतले बनाते थे। वह और उनके परिवार के सदस्य व अन्य कारीगार मिलकर सोलह लोग काम करते हैं। आठ कारीगर मेरठ तथा आठ बाहर जाकर पुतले बनाते थे। हर साल एक बंदे को करीब बीस हजार रुपये बच जाता थे, लेकिन अबकी बार उम्मीद नहीं है। इस बार तो न तो मजदूरी का काम है न ही पूतला बनाने का। रोजी-रोटी मुश्किल हो गई है।
नहीं मिल रहे आर्डर
श्यामनगर में रहने वाले अलफाज व असलम पिछले कई साल से दशहरे के लिए पुतले बनाने का काम कर रहे हैं। ये उनका पुश्तैनी काम है, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि अभी तक उनके पास एक भी ऑर्डर नहीं आया है, उन्होनें बताया वे हर साल पुतले बनाते है। वो छावनी रामलीला के पुतले बनाते हैं। उनके पास 15 से 20 पुतले बनाने के ऑर्डर हर साल होते थे। वे अपने कारीगरों के साथ यहां आते थे और फिर दिन-रात पुतले बनाने में लगे रहते थे। लेकिन इस साल उन्हें मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। कारीगर प्रेम का कहना है कि जिस तरह एक पौधे को पाला जाता है, वैसे ही हम दिन रात मेहनत करके पुतले बनाते हैं। इस बार उनके पास पुतले बनाने का कोई आर्डर नहीं है।
मंचन नहीं, सिर्फ कथा
शहर रामलीला कमेटी में इसबार रामलीला मंचन की परंपरा में बड़े बदलाव का फैसला किया है। इस बार कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान में रखते हुए राम कथा का आयोजन किया जा रहा है। मंगलवार को इस संबंध में कमेटी कार्यालय बुढ़ाना गेट पर एक मीटिंग का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता कमेटी अध्यक्ष शिव कुमार गुप्ता ने की तथा संचालन जितेंद्र मणि ने किया। मीटिंग में इस बार रामलीला की जगह रामकथा आयोजित करने का फैसला किया गया।
प्रतीकात्मक पुतला दहन
कमेटी के मीडिया प्रभारी संजीव गुप्ता ने बताया कि इस बार सौ लोगों के बीच 11 दिवसीय रामकथा का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही इस बार धाíमक शोभा यात्राएं भी नहीं निकाली जाएंगी। यही नहीं इस बार पुतलों का दहन प्रतीकात्मक रूप से किया जाएगा। छोटे-छोटे दो-तीन पुतले होंगे जो केवल कमेटी वालों की उपस्थिति में फूंके जाएंगे। किसी और को नहीं बुलाया जाएगा। केवल कमेटी व परिवार के सदस्यों को ही अनुमति होगी। मीटिंग में अशोक अग्रवाल, एडवोकेट संजीव अग्रवाल, सुशील गर्ग, प्रतीक जिंदल, अपार मेहरा, किशन शर्मा, प्रद्युमन गोयल, लोकेश शर्मा, मानव मोहन, डॉक्टर सुनील सुदामा आदि मौजूद रहे।