मेरठ (ब्यूरो)। निगम ने शहर के सार्वजनिक शौचालयों की हालत दुरुस्त करने के लिए क्यू आर कोड जैसी डिजिटल तकनीक का प्रयोग शुरू किया था, लेकिन हकीकत में सार्वजनिक शौचालयों की हालत बद से बदतर है। जबकि निगम को उम्मीद है कि डिजिटल की राह पर चलाने से शहर के शौचालयों की हालत में सुधार हो जाएगा।
जनता दे सकती है फीडबैक
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ। गजेंद्र सिंह ने बताया कि शहर के सार्वजनिक शौचालयों की सफाई के लिए संबंधित क्षेत्र के जोनल सेनेट्री इंचार्ज, सफाई नायक को जिम्मेदारी दी हुई है। इसके साथ ही नियमित सफाई के सख्त आदेश हैं। फिर भी यदि कहीं गंदगी या अव्यवस्था है तो जनता क्यू आर कोड की मदद से अपना फीडबैक दे सकती है।
रोजाना नहीं होती सफाई
दरअसल, नगर निगम के सार्वजनिक शौचालय में प्राइवेट कर्मचारी तैनात होते हैं। इसके बाद भी शौचालयों की नियमित सफाई नहीं होती है और शहर के अधिकतर शौचालय गंदगी से अटे पड़े हैं। यहां तक की शौचालयों मे सीटों से लेकर टोंटी तक चोरी हो चुकी है।
नहीं दिखा बदलाव
ऐसे में शौचालयों की इन अव्यवस्था और गंदगी को दूर करने के लिए नगर निगम ने गत सप्ताह सार्वजनिक शौचालयों पर क्यू आर कोड लगाने की व्यवस्था शुरू की थी। निगम को उम्मीद है जो काम वहां तैनात सफाई कर्मचारी नहीं कर पा रहा वह काम इस क्यूआर के कोड के माध्यम से आसानी से हो सकेगा।
ये थी व्यवस्था
मोबाइल में गूगल कैमरे के सहारे कोई भी शहरवासी शौचालय के बाहर लगे क्यूआर कोड को स्कैन कर सकता है।
इस कोड के बार एक वेबपेज खुलेगा।
इस पर लोग शौचालय के संबंध में फीडबैक दे सकते हैैं।
दिए गए फीडबैक की मॉनिटरिंग सीधे मंत्रालय से होगी।
इस पर शहरी स्थानीय निकाय भी संज्ञान लेगा।
फीडबैक के आधार तुरंत नगर निगम द्वारा एक्शन लिया जाएगा।
80 फीसदी में नहीं लगे
हालांकि, निगम ने पब्लिक टॉयलेट में फीडबैक के लिए क्यूआर कोड लगाए थे, लेकिन यह आंकड़ा बहुत कम है। अभी तक शहर के सिर्फ कुछ खास वीआईपी इलाकों में बने शौचालयों पर ही क्यू आर कोड लगाए गए हैं। जबकि शहर के 80 प्रतिशत शौचालयों पर अभी भी क्यू आर कोड नहीं लगे हैैं।
विज्ञापन पट तक सीमित शौचालय
करीब तीन साल पहले शहर में सार्वजनिक स्थानों, बाजारों में बनाए गए इन शौचालयों और यूरिनल को बनाया गया था, लेकिन रख रखाव के अभाव में शहर के अधिकतर यूरिनलों की हालत खस्ता है। यूरिनल के बाहर निगम के द्वारा लगाए गए स्वच्छता के संदेश देते हुए बोर्ड तक तोड़ दिए गए हैं। व्यापारिक संगठनों ने शौचालयों पर अपने बोर्ड लगाकर प्रचार शुरु कर दिया है। निगम को इन विज्ञापनों के नाम पर शुल्क तक नही मिल रहा है।