मेरठ (ब्यूरो)। भागवत जीवन का दर्पण है। यह जीवन की एक आदर्श संहिता है। सिर्फ इसके श्रवण मात्र से कल्याण नहीं, बल्कि आचरण में लाने पर ही भागवत फलदायी होगा। कथा को केवल सुनना ही काफी नहीं, उसको आचरण में लाने से फल मिलेगा। इन्हीं विचारों के साथ आशुतोष महाराज की शिष्या भागवताचार्या पद्महस्ता भारती ने तीसरे दिन कथा का शुभारम्भ किया।
श्रीकृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाया
गौरतलब है कि कथा का आयोजन सरस्वती शिशु विद्या मंदिर के ग्राउंड में चल रहा है। इस अवसर पर साध्वी ने श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग को प्रस्तुत किया एवं आध्यात्मिक रहस्यों से भक्त श्रद्धालुओं को अवगत कराया।
जब धरा की हानि हुई प्रभु ने लिया अवतार
द्वापर में कंस के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए प्रभु धरती पर आए और उन्होंने गोकुलवासियों के जीवन को उत्सव बना दिया। कथा के माध्यम से बुधवार पंडाल में नंद महोत्सव की धूम देखते ही बन रही थी। जिसमें सभी नर-नारी और बच्चों ने खूब आनन्द लिया। बहुत सारे बच्चे कृष्ण के सखा बनने की इच्छा से सज-धजकर पीले वस्त्र पहन कर इस उत्सव में शामिल हुए।
नंदोत्सव की अद्भुत छटा
नंदोत्सव की छटा अद्भुत थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समूचा पंडाल ही गोकुल बन गया हो एवं सभी नर-नारी गोकुलवासी। ग्वाल-बालों के रूप में सजे बच्चों ने ही नहीं बल्कि सभी आगंतुकों ने भी श्री कृष्ण जन्म के अवसर पर खूब माखन मिश्री का प्रसाद पाया।इस प्रसंग में छिपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों का निरूपण करते हुए साध्वी ने बताया जब जब इस धरा पर धर्म की हानि होती है। अधर्म, अत्याचार, अन्याय, अनैतिकता बढ़ती है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए करुणानिधान ईश्वर अवतार धारण करते हैं।
कारागार के ताले बंद थे
उन्होंने कहा कि प्रभु का अवतार धर्म की स्थापना के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए, साधु-सज्जन पुरुषों का परित्राण करने के लिए और असुर, अधम, अभिमानी, दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश करने के लिए होता है। उन्होनें कहा कि जिस प्रकार श्री कृष्ण के जन्म से पहले घोर अंधकार था, कारागार के ताले बंद थे, पहरेदार सजग थे। इस बंधन से छूटने का कोई रास्ता नहीं था। ठीक इसी प्रकार ईश्वर साक्षात्कार के अभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं है। उसके विषय विकार रूपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते रहते हैं और उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते।