मेरठ ब्यूरो। शहर की हरियाली को बढ़ाने और शहरवासियों को एक हेल्दी वातावरण उपलब्ध कराने के मकसद से शहर के बाहर सिटी फॉरेस्ट बसाने की कवायद से लेकर शताब्दी नगर में मियाविकी पद्धति से विकसित होने वाले पार्क और गांवड़ी में कूड़े के ढेर के स्थान पर औषधीय पौधों का रोपण आज भी अधर में अटका है।
अधर में अटकी मुहिम
गौरतलब है कि शहर की हरियाली को सालों से संजोए एक मात्र संजय वन की खूबसूरती को भी शहरीकरण का ग्रहण लग गया है। अब शहर के लोगों को एक अदद नेचुरल साइट की कमी महसूस होने लगी है। यूं तो इस कमी को दूर करने के लिए दो साल पहले नगर निगम ने सिटी फॉरेस्ट पिकनिक स्पॉट तैयार करने की कवायद शुरू की थी। जिसको भोले की झाल पर विकसित किया जाना था। दरअसल, भोला की झाल स्थित 100 एमएलडी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट शहर के लोगों के लिए पहले से ही एक फेमस पिकनिक स्पॉट है। यहां ना सिर्फ मेरठ बल्कि आसपास के जनपदों के लोग भी नहाने के लिए आते हैं। लेकिन यहां सही से विकास ना होने के कारण लोगों की संख्या लगातार घटती जा रही है। ऐसे मे साल 2019 में नगर निगम ने इस पिकनिक स्पॉट को बतौर सिटी फॉरेस्ट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी। लेकिन अभी तक योजना कागजों में ही चल रही है।
नेचर वॉक की मिलनी थी सुविधा
यहां भोले की झाल पर गंगनहर के किनारे के क्षेत्र को नेचर वॉक का लुत्फ उठाने के लिए विकसित किया जाना था। इसके लिए 100 एमएलडी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की जमीन पर गेस्ट हॉउस से लेकर पार्क, पिकनिक स्पॉट, नेचर वॉक विकसित किया जाना था। इस नेचर वॉक में गंगनहर किनारे पानी की लहरों की आवाज के साथ साथ हल्का म्यूजिक, आकर्षक स्ट्रीट लाइट से लेकर फूड काउंटर तक की सुविधा लोगों को दी जानी थी।

यह वादा भी अधूरा
वहीं, दो साल पहले शताब्दीनगर सेक्टर-4 में मियावाकी पद्धति से फॉरेस्ट विकसित करने का कार्य शुरू किया गया था। इसमें छोटे-बड़े हर आकार के पौधे रोपे जाने की योजना थी। लेकिन नाममात्र पौधों का रोपण कर खानापूर्ति कर दी गर्ई। जबकि एमडीए का दावा था कि करीब एक हजार वर्ग मीटर जमीन पर जंगल विकसित किया जाएगा। इसके अलावा आठ हजार वर्ग मीटर जमीन पर पौधे रोपे जाएंगे। मगर कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया।

सैैकड़ों पौधे हुए खराब
हालांकि सालों से कूड़े की बदबू से झेलने के बाद गांवड़ी में लगे हजारों टन कूड़े के पहाड़ का निस्तारण होने के बाद 45 एकड़ जमीन पर 23 हजार पौधों का रोपण किया गया था। इस पौधरोपण के बाद कूड़े की जगह आज हरा-भरा बाग विकसित हो रहा है। हालांकि हर साल रख-रखाव के अभाव के चलते सैकड़ों पौधे खराब भी हो रहे है। हालांकि हरियाली बढ़ाने के नाम पर गांवड़ी में कुछ सकारात्मक प्रयास जरूर दिख रहे हैैं।

संजय वन का विकल्प शहर में कहीं नहीं है। इसके लिए न ही शहर में अब जगह उपलब्ध हो पाएगी।
मनोज वर्मा

वन न सही तो पार्कों को ही सही से नगर निगम या एमडीए विकसित कर लें तो भी शहर की आबोहवा सुधर जाए।
नरेश

योजनाएं तो हर साल बनती है लेकिन उन पर काम नहीं होता है। इसलिए शहर के अंदर से हरियाली पूरी तरह गुमशुदा होती जा रही है।
सुरेंद्र सिंह

सिटी फारेस्ट बनाने की कवायद पर काम चल रहा है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया जल्द पूरी की जाएगी। गांवड़ी में लगातार पौधरोपण बढ़ रहा है और यह जगह एक खूबसूरत वन के रूप में विकसित हो रहे हैैं।
प्रमोद कुमार, अपर नगर आयुक्त