मेरठ (ब्यूरो)। ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे विषय इन दिनों अधिक चिंता के विषय हैैं। इनकी वजह से नेचर का बैलेंस बिगड़ रहा है। समय रहते पृथ्वी को बचाना बहुत जरूरी है। एनवॉयरमेंट एक्टिविज्म यूथ के लिए नया फ्यूचर क्रिएट कर रहा है। इन्हीं बातों को मैंने समझा। यूनिसेफ द्वारा चलाई जा रही नेशनल यूथ क्लाइमेट कंसोर्टियम के तहत युवा भारत की क्लाइमेट चैंपियन बनी हिना सैफी जानी के सिसोला गांव की रहने वाली उन चुनिंदा लड़कियों में से हैंं जिन्होंने सोशल स्टिग्मा को तोड़ा है। देश की 16 फीमेल चैंपियंस में वह शामिल हुई हैं। वीमेन क्लाइमेट कलेक्टिव (डब्ल्यूसीसी) की ओर से उन्हें मंच दिया गया है। जलवायु संकट से निपटने के लिए वह दुनिया के सामने अपने प्रोजेक्ट रखेंगी। यहां दस अलग आर्गेनाइजेशंस के कलेक्टिव प्रयासों से यहां फीमेल एक्टिविस्ट अपनी आवाज उठाएंगी।
यूएन ने दिलाया मुकाम
यूनाइटेड नेशंस की ओर से मुझे इंडिया की 17 यंग क्लाइमेट चेंज लीडर्स में शामिल किया जा चुका है। मैं शुरू से ही पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। इन्हीं कार्यक्रमों को करते हुए मैं खुद भी जागरूक हुई और मुझे लगा कि औरों को भी इसके लिए जागरूक करना जरूरी है। चूंकि मैं मेरठ के बहुत ही पिछड़े हुए गांव से हूं। यहां पर लड़कियों को घर से बाहर जाने तक की परमिशन नहीं मिलती, पर मेरी दादी मेरे साथ थी। उन्होंने मेरी बात को समझा और मुझे सपोर्ट किया। कुछ समझ आई तब मैंने एक एनजीओ ज्वाइन कर ली। इसके बाद से ही मैं पर्यावरण संरक्षण, वायु प्रदूषण, एक्यूआई जैसे मुद्दे पर काम करने लगी। लखनऊ में क्लाइमेट एजेंडा पर वर्कशॉप देखने गई थी। यही से जीवन में बड़ा बदलाव आया। उसके बाद मैंने अपने स्तर से लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया। यही सब करते हुए यूएन के वी द चेज कैंपेन क्लाइमेट एजेंडा के लिए अप्लाई किया। भारत से चुने गए 17 एक्टिविस्ट में से मुझे भी चुन लिया गया।
एयर पाल्यूशन पर करूंगी काम
क्लाइमेट चैंपियन ऑफ यंग इंडिया पहल के तहत 1200 से अधिक प्रतिभागी शामिल थे। इसमें से टॉप 30 चैंपियन में मेरा नाम शामिल हुआ। यह मेरे लिए बहुत बड़ा अचीवमेंट रहा। यूनिसेफ और ब्रिंग बैक ग्रीन फाउंडेशन की ओर से ये मंच मुझे मिला। अब मैं एनवायरमेंट प्रोटक्शन के तहत एयर पॉल्यूशन की दिशा में काम करूंगी।
फैक्ट्री में किया काम
मेरी पढ़ाई आठवीं क्लास तक ही हो पाई थी कि परिजनों ने कहा कि अब आगे नहीं पढऩा है। ये मेरे लिए बहुत शॉकिंग था। मैंने मन में ठान लिया कि पढऩा तो है। इसके लिए मैंने कुछ योजनाएं बनाई। हमारे गांव में फुटबॉल बनती हैं। मैंने एक फैक्ट्री में पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया। कुछ पैसे आने लगे तो मेरी पढ़ाई जारी रही। बस ऐसे ही करते हुए मैं ग्रेजुएशन तक पहुंच गई। मैं द क्लाइमेट एजेंडा संस्था से जुड़ी। मेंटर सानिया अनवर के जरिए अपने समुदाय को जागरूक करने की कोशिश की। मैं प्रयास कर रही हूं कि लोग पर्यायवरण के प्रति संवेदनशील हो जाएं।
पौधरोपण नहीं एकमात्र हल
पर्यावरण को बचाने के लिए सिर्फ पौधरोपण कर देना ही एकमात्र हल नहीं है। पॉल्यूशन की समस्या से निपटने के लिए सभी का पूरा फोकस इसी पर रहता है। इसमें कई फैक्टर्स काम करते हैं। जिसमें मेन सोलर एनर्जी, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, वॉटर कंर्जेवेशन, सर्कुलर इकोनॉमी, पृथ्वी को सेव करने के लिए बहुत जरूरी हैं। इन पर काम होना चाहिए। बड़े लेवल पर किसी भी तरह के चेंज के लिए ग्राउंड वर्क करना जरूरी है। पब्लिक अवेयरनेस के लिए एजुकेशन, अवेयरनेस लिट्रेचर, डोर-टू-डोर कनेक्टिीविट, सर्वे जैसी कई एक्टिविटीज के जरिए पॉजिटिव चेंज लाने का मैं प्रयास कर रही हूं। लोग अगर छोटी-छोटी आदतों में बदलाव ले आएं तो बड़ा चेंज लाया जा सकता है।