मेरठ (ब्यूरो)। वो गर्मी के दिन थे, आसमान की तपिश लोगों को जला रही थी। सड़क पर एक मिनट भी खड़ा होना मुश्किल था। ऐसे में मैं किसी कार्य से जा रही थी। तभी मेरे पास एक फटे पुराने कपड़ों में एक छोटा सा बच्चा आया। उसकी उम्र यही कोई छह से आठ साल की होगी। वो नंगे पैर था, धूप के कारण चेहरा लाल हो गया था। उसके होंठ सूखे थे, हाथों में एक कटोरा लेकर भीख मांग रहा था। एक दो रुपए पाने के लिए लोगों ने मनुहार कर रहा था। यह देखकर मेरा दिल पसीज गया। मेरा मन बदल गया। मैंने वहीं सोच लिया कि अब इन बच्चों के भविष्य के लिए कुछ करूंगी जरूर। इस घटना को करीब छह साल बीत चुके हैं।
मलिन बस्तियों में चलती है क्लास
मेरा नाम आकांक्षा सिंह है। मैं रोज शाम को लालकुर्ती के हंडिया मोहल्ले में रोजाना शाम को बच्चों के लिए स्पेशल क्लॉस चलाती हूं। रोजाना शाम को डेढ़ से दो घंटे तक मलिन बस्तियों में गरीब बच्चों को पढ़ाती हूं। इसमें बकायदा ब्लैक बोर्ड पर बच्चों को एनसीआरटी सिलेबस पढ़ाती हूं। यही नहीं, बच्चों को हेल्थ हाइजीन के साथ साथ सामाजिक विकास, शिष्टाचार की कहानियां भी बताती हूं।
अब साथ आ रहे लोग
पहले कुछ साल तक मैं अकेली इस काम में जुटी थी। पर मकसद अच्छा था तो लोगों ने इसे सराहा। कारवां बढऩे लगा तो पियर फाउडेंशन की स्थापना की। अब मेरे ग्रुप के साथी घर घर जाकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उनके पेरेंट्स को शिक्षा का महत्व समझा रहे हैं। इसके अलावा जागृति अभियान, कला और शिल्प कक्षाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। मलिन बस्तियों में बकायदा मासिक चौपाल होती है। इसमें बच्चों को शिक्षित करने के लिए जागरूक किया जाता है। आज मेरे साथ शांतनु शर्मा, शची गुप्ता और श्रेया रस्तोगी जुटे रहते हैं। वे मलिन बस्तियों में जाकर लोगों को जागरूक करते हैं।
बच्चों को दिखा रही राह
अभी मेरी उम्र महज 23 साल है, लेकिन मेरा सपना बड़ा है। मैं चाहती हूं मलिन बस्तियों में रहने वाले और जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई बंद न हो। वे हर हाल में पढ़ें और बेहतर नागरिक बनें। इसके लिए मैं और मेरी टीम जुटी रहती है। वैसे तो मैंने बीसीए कंप्लीट कर लिया है। मैं सड़कों पर जब निकलती हूं तो ऐसे बच्चों को तलाशती हूं जो पढऩा चाहते हैं, लेकिन घरेलू समस्याओं के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। उनकी पढ़ाई लिखाई का इंतजाम करती हूं।