मेरठ (ब्यूरो)। रोडवेज बस में सफर कर रहे हैं तो जरा सावधान हो जाएं, क्योंकि ये खबर आपके लिए ही है। दरअसल, रोडवेज बसों में बतौर पार्सल के जरिए आजकल क्या-क्या डिलीवर किया जा रहा है, ये कोई नहीं जानता। अब आप कहेंगे कि रोडवेज बसों के माध्यम से पार्सल या माल की डिलीवरी कोई नई बात तो है नहीं। मानता हूं, लेकिन इसके लिए बुकिंग काउंटर और जांच का एक प्रॉपर एक चैनल होता है। जिसके जरिए ये पता चल जाता है कि बस में भेजा क्या जा रहा है। मगर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के इंवेस्टिगेशन में जो निकलकर आया, उसके बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि रोडवेज बसों में भेजे जाने वाले पार्सल में आरडीएक्स या ड्रग्स भेजा जा रहा है या कोई हथियार, कहा नहीं जा सकता।

सामने आया लू पोल
भैंसाली बस स्टेशन पर एक लाइन से बसें खड़ी थीं। इसी में से एक बस गाजियाबाद जाने को तैयार थी। यात्री बैठे थे और परिचालक आवाज दे रहा था। गाजियाबादगाजियाबादजल्दी बैठ जाओ, बस चलने वाली है। चालक के पास जाकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रिपोर्टर ने अपना कुछ सामान भेजने के लिए जो बातचीत की ये रहे उसके मुख्य अंश

रिपोर्टर- भाई एक सामान गाजियाबाद ले जाना है?
चालक- जिसे भेजना है, उसे बस नंबर और मोबाइल नंबर दे दो।

रिपोर्टर- कितने पैसे लगेंगे?
चालक- भाईसाहब 230 रुपये लगेंगे।

रिपोर्टर- भाई बहुत जरूरी सामान है, कहीं गायब तो नहीं होगा?
चालक- अरे नहीं भाई, रोज का काम है। रुपये दो, सामान रखो जल्दी, बस निकल रही है।

रिपोर्टर- यहां तो पहले काफी सामान रखा है, मैैं कहां रख दूं सामान?
चालक- यहां सीट के बराबर में रख दो।

रिपोर्टर- भाई खो तो नहीं जाएगा, बहुत कीमत सामान है?
चालक- टूटने वाला सामान न हो बस, बाकी कोई टेंशन नहीं।

पहले था पूरा सिस्टम
इस अवैध डिलीवरी को रोकने लिए रोडवेज में पार्सल काउंटर के माध्यम से कूरियर सिस्टम भी लागू है। इसमें बकायदा सामानों की बुकिंग होती थी और तय रेट पर सामान भेजे जाते थे। बुकिंग के पहले सामानों की जांच भी होती थी। इस सिस्टम से सरकार को तो फायदा था, लेकिन अफसरों की जेब नहीं भर पाती थी। लेकिन लापरवाही के चलते आज यह सिस्टम पूरी तरह बंद हो चुका है।

अब न बुकिंग काउंटर, न जांच
गौरतलब है कि रोडवेज बस के माध्यम से एक निश्चित वजन और कैटेगरी का सामान, पार्सल आदि डिलीवर करने के लिए पार्सल काउंटर के माध्यम से बुकिंग कराने का नियम है। इस काउंटर से माल या पार्सल बुक कराने के बाद ही रोडवेज बस से सामान डिलीवर किया जाता है। इसमें सामान की डिटेल, वजन आदि की जांच की जाती है। लेकिन मेरठ रीजन के तीनों प्रमुख डिपो पर यह व्यवस्था पूरी तरह नदारद है। न यहां पार्सल काउंटर संचालित हो रहा है और न ही डिलीवर होने वाले किसी सामान की जांच की जा रही है। यानि पार्सल में आरडीएक्स से लेकर ड्रग्स और हथियार तक कुछ भी डिलीवर किया जा सकता है।

मोटी कमाई का जरिया
अब इस सामान को ढोने में रोडवेज का सीधा नुकसान तो कुछ है नहीं, उल्टा मगर मानकों के विपरीत पार्सल डिलीवर कर चालक-परिचालक की मोटी कमाई हो जाती है। कम दूरी हो तो कम दाम और ज्यादा दूरी तो ज्यादा दाम मिल जाते हैैं।

टैक्स चोरी का भी खेल
शहर के बाहर से 50 हजार रुपये से ज्यादा का सामान मंगवाने पर उसके लिए ई-वे बिल जनरेट करने का सिस्टम है। ई-वे बिल बनाने के साथ ही सामान जीएसटी के दायरे में आ जाता है। इसमें सामान की कैटेगरी वाइज 5, 12 और 18 फीसदी जीएसटी लगता है। इससे चीजें महंगी हो जाती है। इसी की चोरी के लिए रोडवेज बसों के माध्यम से पार्सल में महंगे सामान मंगवाने का खेल चल रहा है। जानकारों का दावा है कि इससे कारोबारियों को कुछ सामानों में तो 25 हजार से एक लाख रुपये तक टैक्स बच रहा है। बिना टैक्स वाला माल भी कीमत कम होने के कारण जल्दी खप जाता है।

इनका है कहना
रोडवेज बस में सामान भेजने का कोई दायरा नहीं है। कोई भी कुछ भी भेज सकता है। ना जांच होती है ना कोई पूछता है क्या भेजा जा रहा है।
सीएम मलिक

कम से कम चालक-परिचालक को तो इतना सुनिश्चित करना चाहिए कि जो बस के जरिए डिलीवर हो रहा है, वह सामान गलत न हो, नुकसानदायक न हो।
गिरिश शुक्ला

रोडवेज बसों को रास्ते में रोक-रोककर बड़ी-बड़ी पेटियां रखी जाती है। कई बार तो सीट तक पेटियां रखी होती हैैं और इससे यात्रियों को काफी परेशानी होती है।
दानिश मलिक

ऐसा नही कि पार्सल की जांच नही होती है। इसके लिए कई बार चालक-परिचालक को चेतावनी व रेंडम चेकिंग कर कार्रवाई भी की गई है। दोबारा इस मामले की जांच की जाएगी।
संदीप नायक, आरएम