40 लाइसेंस बने हैं जनवरी 2020 से जनवरी 2021 तक

2000 से ज्यादा फाइल पेंडिंग चल रही है।

लॉकडाउन के बाद से मेरठ में एक भी नहीं बना शस्त्र लाइसेंस

लाइसेंस के आवेदन के साथ काटने पड़ते हैं चक्कर

विकास चौधरी/दिशांत त्रिवेदी

Meerut। जिले में शस्त्र लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया कुछ ज्यादा ही जटिल है। प्रक्रिया में लगने वाला लंबा समय लोगों को न सिर्फ परेशान करता है बल्कि उन्हें जिस वजह से लाइसेंसी शस्त्र की जरूरत होती है वो भी वक्त रहते पूरी नहीं हो पाती। जान-माल के खतरे के लिए किए जाने वाले लाइसेंसी आवेदन को इस कदर शोषित कर देने वाली महीनों लंबी प्रक्रिया से जूझना पड़ता है।

नहीं बना लाइसेंस

लॉकडाउन से पहले मेरठ में 40 लाइसेंस बनाए गए थे। यह लाइसेंस आवश्यकता को देखते हुए बनाए गए थे। लॉकडाउन के बाद से मेरठ में एक भी लाइसेंस नहीं बना है। दो हजार से ज्यादा फाइल पेंडिंग चल रही है। इसमें शहर से लेकर देहात तक के लोगों ने अपनी लाइसेंस की फाइल अप्लाई की हुई है। लाइसेंस न बनने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कारोबारी मनोज शर्मा का कहना है कि कई बार शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया है, लेकिन मेरा लाइसेंस नहीं बना है। व्यापारी नेता राजबीर सिंह का कहना है कि व्यापारियों के साथ जिस तरह से घटना बढ़ रही है, उसको देखते हुए व्यापारियों को शस्त्र लाइसेंस दिए जाने चाहिए। शस्त्र रखने से व्यापारी अपने को सुरक्षित महसूस करेगा।

28 फीसदी जीएसटी

पीएल शर्मा रोड स्थित हरि सिंह ओबराय गन हाउस संचालक करण राज ओबराय का कहना है कि हम साल की 28 फीसदी जीएसटी देते हैं लेकिन प्रशासन लाइसेंस ही नहीं बनाता। हमारा हथियार खरीदने में मोटा इंवेस्टमेंट होता है। जब लाइसेंस ही नहीं बनेंगे तो हम बेचेंगे कहां। आंकड़ों की बात करें तो 40 लाख से ज्यादा आबादी वाले जिले में बीते एक साल में 40 करीब लोगों के लाइसेंस बने हैं। जबकि करीब हजारों लोगों ने पूरे साल में आवेदन किया था। वहीं हरि सिंह जगदीश सिंह ओबराय गन हाउस संचालक गुरमीत सिंह का कहना था कि आजकल हथियारों के लेटेस्ट मॉडल बाजार में आ रहे हैं लेकिन लोगों के लाइसेंस न बन पाने के चलते हमारा हथियारों और कारतूसों का पुराना कोटा क्लीयर ही नहीं होता तो नया कहां से खरीदें। वहीं विकास गन हाउस के मैनेजर सुनील सिंह कहते हैं कि हमारा हथियारों का ऑल इंडिया सप्लाई का काम न होता तो जिले में लाइसेंसी शस्त्र प्रक्रिया के चलते तो दुकान ही बंद करनी पड़ती।

लाइसेंस बनने की प्रक्रिया

दरअसल, लाइसेंसी शस्त्र के लिए कलक्ट्रेट के शस्त्र अनुभाग में बैठे असलहा बाबू के पास दो फाइलों का आवेदन एक साथ होता है। महीनों लंबी प्रक्रिया के बाद जब दोनों फाइलें असलहा बाबू के पास पहुंच जाती हैं तो लाइसेंस जारी करने का आखिरी निर्णय डीएम द्वारा लिया जाता है। अगर फाइल ओके होती है तो लाइसेंस जारी करने का आदेश डीएम जारी कर देता है और फिर सिटी मजिस्ट्रेट लाइसेंस जारी करता है।

पहली फाइल का सफर

असलहा बाबू के यहां से एसएसपी

एसएसपी से संबंधित थाने

संबंधित थाने से एलआईयू

एलआईयू से संबंधित सीओ

सीओ से डीसीआरबी

डीसीआरबी से एसपी सिटी

एसपी सिटी से एसीएम

एसीएम से एसएसपी

एसएसपी से एडीएम सिटी

एडीएम सिटी से असलाह बाबू के पास

दूसरी फाइल

असलहा बाबू से तहसील

तहसील से एसडीएम

एसडीएम से असलाह बाबू के पास

मेरे कागजातों में भी कोई कमी नहीं है। इसके बावजूद अभी तक लाइसेंस नहीं बन सका है। कई बार व्यापारियों की मीटिंग में लाइसेंस देने की बात अधिकारी करते है, फिर बाद में भूल जाते है। व्यापारियों को प्राथमिकता पर लाइसेंस दिए जाने चाहिए।

मनोज शर्मा, दवा कारोबारी

बदमाशों में भी भय रहेगा कि अब व्यापारी शस्त्र रखने लगे है, जिसकी वजह से वह घटना करने से भी बचेंगे। व्यापारियों को प्राथमिकता के आधार पर लाइसेंस शस्त्र के दिए जाने चाहिए।

राजबीर सिंह, व्यापारी नेता