मेरठ (ब्यूरो)। नगर निगम कूड़ा निस्तारण के लिए लगातार नई योजनाएं बनाता रहता है। योजनाएं लागू भी की जाती हैं और मैनेजमेंट काम भी करता है लेकिन नगर निगम के क्षेत्र में रोजाना उत्सर्जित होने वाले 700 से 750 मीट्रिक टन कूड़े का निस्तारण प्लान धरा का धरा रह जाता है। मगर निगम निगम बीते वर्ष से कई नई योजनाओं पर काम कर रहा है। उन्हीं का नतीजा है कि गांवड़ी डंपिंग ग्राउंड से कूड़े का पहाड़ जमींदोज हो गया। हालांकि अभी मंगतपुरम और लोहियानगर डंपिंग ग्राउंड में रोजाना विस्तृत हो रहे कूड़े के पहाड़ निगम के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैैं।
प्लान-1
कूड़े का सेग्रीगेशन कर बेचना
वहीं कचरे से निकलने वाला आरडीएफ (प्लास्टिक व पॉलिथीन) को बेचकर आय के लिए गत वर्ष नगर निगम ने दो कंपनियों से अनुबंध किया था। इनमें से एक कंपनी मुंबई की शक्ति प्लास्टिक को प्रतिमाह लगभग 500 टन आरडीएफ और दूसरी कंपनी ब्रिजेंद्रा एनर्जी एंड रिसर्च को प्रतिमाह 900 मीट्रिक टन आरडीएफ खरीदने है। अनुबंध के अनुसार नगर निगम ने इन कंपनियों को 250 रुपये प्रति टन आरडीएफ बेच रहा है। इससे गांवड़ी प्लांट का लगभग 30,000 टन आरडीएफ पूरी तरह उठ चुका है। मगर इसमें सबसे बड़ी चुनौती प्लास्टिक वेस्ट के निस्तारण को लेकर निगम के सामने खड़ी है।
प्लान-2
कबाड़ से जुगाड़ अभियान
कबाड़ से जुगाड़ अभियान के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 93वें संस्करण में नगर निगम की सराहना की थी। इस योजना के तहत नगर निगम ने स्टोर रूम में पड़ी खराब वस्तुएं स्क्रैप, पुराने टायर, कबाड़, खराब ड्रम से शहर के पार्क और चौराहों को सजा कर एक नया उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। हालांकि कबाड़ से जुगाड़ भी केवल कुछ पार्क और चौराहों तक सीमित रहा और प्रधानमंत्री से तारीफ मिलने के बाद निगम का ध्यान इस तरफ से हट गया है।
प्लान-3
कूड़े को बेचकर इनकम का जुगाड़
नगर निगम ने आय बढ़ाने के लिए सूखे कचरे को बेचकर करीब 15 लाख रुपये की इनकम की योजना तैयार की है। गौरतलब है कि नगर निगम में प्रतिदिन लगभग 700 से 750 मीट्रिक टन कूड़ा जेनरेट होता है। उसकी सफाई के लिए नगर को तीन जोन में बांटा गया हैं साथ ही जोन वाइज डिपो भी बनाए गए हैं। डिपो क्षेत्र से कूड़ा कलेक्शन के बाद यह सारा कूड़ा वाहन से सीधा डंपिंग ग्राउंड में जाता है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत डंपिंग ग्राउंड से सूखा कूड़ा अलग किया जाता है। निगम ने अब सूखे कूड़े के लिए गाजियाबाद की एक निजी कंपनी से करार किया है। यह कंपनी सूखे कूड़े को लेकर बदले में मेरठ नगर निगम को प्रतिमाह 15 लाख रुपये देगी। कंपनी इस ड्राई वेस्ट को बेचेगी।इससे सालाना 1 करोड़ 80 लाख रुपये की आय होगी।
प्लास्टिक वेस्ट बना चुनौती
गौरतलब है कि आरडीएफ में लगभग 10 से 15 फीसद प्लास्टिक-पालीथिन कचरा और इसके अलावा जूते-चप्पल, लकड़ी, कपड़ा समेत अन्य बेकार सामग्री भी होती है। आरडीएफ का पावर प्लांट व सीमेंट प्लांट की भ_ियों में जलाने में इस्तेमाल किया जाता है। बैलेस्टिक सेपरेटर प्लांट में कचरे से आरडीएफ (प्लास्टिक कचरा), ईंट-पत्थर और कंपोस्ट निकलता है। सबसे ज्यादा चुनौती प्लास्टिक वेस्ट के निस्तारण को लेकर ही है। यह खतरनाक कचरा भी है और कूड़े के पहाड़ भी इसी वजह से खड़े हुए। शहर के नाले-नालियों के चोक होने की वजह भी यही है।
कबाड़ के जुगाड से चमके चौराहे
नगर निगम ने सर्किट हाउस चौराहे पर टायर और अन्य बेकार वस्तुओं से चौराहे का सौंदर्यकरण किया।
सर्किट हाउस चौराहे पर लाइट ट्री, पुराने बेकार ड्रमों का स्ट्रीट इंस्टलेशन कर सड़क तक सजाया गया है।
गांधी आश्रम चौराहे पर कबाड़ व पुराने पहियों से फाउंटेन निर्मित कराया गया है।
कमिश्नरी चौराहे पर पार्क के पुराने खराब टायरों से कुर्सी व बैंच बनाकर सजाया गया है।
शहर में जगह जगह हाथ ठेली के बेकार पहियों से बैरिकेडिंग कर मिनी व्हील मेन रोड पर डिवाइडर को सजाया गया है।
कूड़ा निस्तारण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किया जाए रहे हैं ताकि कूड़े का निस्तारण भी हो और कूड़े से निगम की आय में भी वृद्धि हो सके। कई नई योजनाओं पर भी अभी काम हो रहा है।
ब्रजपाल सिंह, सहायक नगरायुक्त