मेरठ ब्यूरो। दिल्ली में बहुत ही सिंपल मिडिल क्लास फैमिली में मेरा जन्म हुआ। बचपन से अपने पापा को मैंने समाज के लोगों साथ उनके दुख-सुख और परेशानियों में कंधे से कंधा मिला कर चलते देखा। घर पर लोगों का आना-जाना लगा रहता था। मम्मी भी पापा का स्पोर्ट करती थीं। तब मुझे इन सब बातों की समझ नहीं थी लेकिन मेरे अंर्तमन में सेवाभाव की जड़ें कब गहरी जम गईं मुझे खुद नहीं पता चला। वर्ष 2018 में मैंने अपना एनजीओ हियर द साइलेंस फाउंडेशन शुरु किया। हम तीन-चार लोगों की टीम थी। जहां भी जब भी किसी को मदद की जरूरत होती हम पहुुंच जाते। शुरु में न तो साधन थे न ही समझ थी। मेरे साथ बस मेरे पापा की सीख थी। मैंने हार नहीं मानी। बस आगे बढ़ती गई। धीरे-धीरे मेरे काम को पहचान मिलती गई और मेरा कारवां भी बढ़ता गया। हाल ही में नगर निगम ने मुझे अपना बांड अंबेसडर भी चुना। हियर द साइलेंस फाउंडेशन की संस्थापक नेहा वत्स कक्कड़ युवा पीढ़ी के लिए मिसाल है। यंग ऐज में ही कई बड़े अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकी हैं बल्कि समाज को भी एक दिशा देने का प्रयास कर रही हैं। शिक्षा, पर्यायवरण, स्वच्छता, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में वह सक्रिया हैं। नेहा कहती हैं कि मैं लडख़ड़ा भी जाती हूँ ,फिर संभलती हूँ, फिर चलती हूँ मैं इतना ही कहूँगी मैं अभी सफऱ में हूँ।।

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बुजुर्गों की बनी बेटी

बच्चे अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं। कई बार कुछ बुजुर्ग मजबूरीवश भी यहां रहने को मजबूर हो जाते हैं। वजह जो भी हो वह अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं। अपने बच्चों से मिलने की आस उन्हें मरते दम तक नहीं छूटती। मैंने इस पीड़ा को महसूस किया और ऐसे बुजुर्गों को समय देना शुरु किया। एनजीओ के माध्यम से वृद्धाश्रम में हर फेस्टिवल को सेलिबे्रट करना शुरु किया। कपड़े, मिठाइयों के साथ ही हम उनके बीच गीत-संगीत के कार्यक्रमों का भी आयोजन करते हैं। हेल्थ कैंप लगाते हैं। मैंने सबको परिवार की तरह स्नेह दिया और उन्होंने मुझे बेटी बना लिया। समाज से इतना स्नेह और अपनापन मिलेगा मैंने सोचा भी नहीं था।

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आसान नहीं रहा सफर

मेरा सफर बिल्कुल आसान नहीं था। हमारा परिवार बहुत सम्पन्न नहीं था। मेरी उम्र 16-17 वर्ष थी कि पापा बीमार हो गए। पापा को डायलिसिस यूनिट पर आना पड़ा। एक डायलिसिस प्रोसेस में काफी खर्च आता था। पापा को तकलीफ भी होती थी। उस वक्त बहुत कम अस्पतालों में ये सुविधा उपलब्ध थी। काफी इलाज करवाया लेकिन पापा गुजर गए। मैं और भाई पढ़ाई कर रहे थे। फाइनेंसियल क्राइसिस आ गया था। मां ने लेकिन हमारी पढ़ाई पर कोई आंच नहीं आने दी। मैंने भी घर पर ही ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया। वो दिन काफी मुश्किलों भरे थे। कई चुनौतियां सामने थीं। पर मैंने अपना सपना कहीं छूटने नहीं दिया।

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शादी के बाद पूरी की पढ़ाई

पापा के बाद मुझे कोई मार्गदर्शक नहीं मिला। किसी तरह ग्रेजुएशन पूरी की। फिर शादी हो गई। मेरा पूरा जीवन बदल गया। घर-परिवार की जिम्मेदारी के बीच सपना पूरा करना मुश्किल ही लग रहा था। बेटा हुआ तो जिम्मेदारी और बढ़ गई। मेरे पति लेकिन मेरे मन की बात जानते थे इसलिए उन्होंने मुझे सबसे पहले आगे बढऩा का हौंसला दिया। मैंने आगे की पढ़ाई की और पीजी और एमफिल की शिक्षा पूरी की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कंटिन्यू की। मैंने पति से अपना सपना भी शेयर किया तो उन्होंने यहां भी मेरी मदद की। मुझे प्रेरित किया और आगे बढऩे ही हिम्मत दी। इसी के परिणाम स्वरूप हियर द साइलेंस फाउंडेशन अस्तित्व में है।

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।।।।ताकि न छूटे किसी भी बच्चे की पढ़ाई

शुरुआती दिनों में जिस चीज का अभाव मुझे रहा वो अन्य किसी बच्चे को नहीं होना चाहिए। इसके लिए भी हर संभव प्रयास करती हूं। आज भी समाज में ऐसे लाखों बच्चे हें जिन्हें थोड़ा भी रास्ता मिले तो वह अपने साथ दूसरे के जीवन को भी रोशन कर सकते हैं। ऐसे ही बच्चों को समय-समय पर साधन जुटाती हूं। जरुरतमंद बच्चों की पढ़ाई न छूटे इसलिए उन्हें सिलेबस, फीस या जो भी चाहिए होता है हम तत्काल उपलब्ध करवाते हैं। गरीब बच्चों के घरों में जहां इंर्वटर नहीं हैं उनके लिए इमरजेंसी लाइट की व्यवस्था भी करवाते हैं।

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सहभाग से ही होगा बदलाव

मैं समाज में बदलाव से ज़्यादा किसी भी सकारात्मक परिणाम के लिए पब्लिक पार्टिसिपेशन पर विश्वास रखती हूँ। हमारी संस्था में आज दो सौ से भी अधिक लोग जुड़े हैं। हम प्रयास करते हैं कि उन लोगों की उस खामोशी को सुने जो जरूरतमंद हैं। ऐसे लोग जो अपनी समस्या न तो किसी को सुना पाते हैं न कोई देख पाता है।सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानियों से लोग जूझ रहे हैं। मैं मानती हूं कि समाज को समाज के अपनेपन की ही ज़रूरत हैं। जब समाज से सकारात्मक लोग एक हो जाते हैं तब किसी निर्बल व्यक्ति को भी सबल बनाया जा सकता है।