मेरठ (ब्यूरो)। ब्रेस्ट फीडिंग सिर्फ बच्चों का पेट भरने का जरिया नहीं है बल्कि यह एक तरह की थेरेपी भी है। मेडिकल कॉॅलेज के बाल रोग विभाग में 100 बच्चों पर हुई एक स्टडी में इसका खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक मां के दूध से साथ ही उसका स्पर्श भी बच्चों के लिए बेहद जरूरी होता है। बे्रस्ट फीडिंग करने वाले बच्चों में किसी भी तरह के दर्द से रिकवर होने की क्षमता कई गुना होती है।
क्या कहती है स्टडी रिपोर्ट
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में दो वर्ष पहले ये स्टडी शुरू हुई थी। इसमें 50-50 बच्चों का एक ग्रुप तैयार किया गया था। सभी का जन्म मेडिकल कॉलेज में हुआ था। पहले ग्रुप में ऐसे बच्चों को शामिल किया गया, जिन्हें बॉटल या किसी दूसरे तरीके से मां का दूध उपलब्ध करवाया जा रहा था। दूसरे ग्रुप में ब्रेस्ट फीडिंग करने वाले बच्चों को शामिल किया गया। दो वर्ष तक चले इस प्रोजेक्ट में टीम ने दोनों ग्रुप्स की सभी बारीकियों का अध्ययन किया। फाइनल स्टडी में पाया गया कि जिन बच्चों को बॉटल से दूध दिया गया था उनमें कैनुएला, इंजेक्शन, सीरींज आदि के दर्द से निजात पाने में काफी समय लगा। जबकि दूसरे ग्रुप में इस तरह के दर्द से बहुत जल्दी रिकवरी पाई गई।
ऐसे होता है असर
एक्सपट्र्स बताते हैं कि मां का स्पर्श पाते ही बच्चे में कई तरह के हार्मोन रिलीज होते हैं। जो बच्चों को खास महसूस करवाने और खुश रखने में मदद करते हैं। मां के साथ स्किन टू स्किन टच से बच्चे में ऑक्सीटोक्सीन का प्रवाह होता है। इसे लव हार्मोन भी कहते हैं। यह मां और बच्चे के बंधन को मजबूत करता है। दर्द और तनाव कम करता है। एंडोर्फिन जिसे नेचुरल पेन रिलीवर भी कहा जाता है। साथ ही न्यूरोट्रांसमीटर जो खुशी और संतोष की भावना पैदा करता है। ये दोनों हार्मोंस मां और बच्चे दोनों को एक-दूसरे के स्पर्श से आराम देने का काम करते हैं।
मां के स्पर्श के फायदे
मां के स्पर्श से नवजात को सुरक्षा और सुकून का अहसास होता है। उसकी इमोशनल कंडीशन बेहतर होती है। वहीं यह बच्चे को गर्म बनाए रखता है। जो नवजात के लिए बहुत जरूरी होता है। डॉक्टर्स बताते हैं कि मां की गर्माहट से बच्चे के शरीर का तापमान नियंत्रण में रहता है। जन्म लेने के बाद बच्चा अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं कर पाता है। उसका तंत्र भी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है। ऐसे में स्किन-टू-स्किन टच से बच्चे का तापमान, उसकी हृदयगति और सांसों की गति पूरी तरह से नियमित रहती है। बच्चों को बेहतर नींद और विकास में ये बहुत सहायक होता है। वहीं ब्रेस्ट फीडिंग से बच्चों में सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। इससे दोनों में गहरा भावनात्मक संबंध भी स्थापित होता है।
इनका है कहना
हमने दो वर्षों तक मां के स्पर्श से बच्चों पर प्रभाव का अध्ययन करवाया। इसका रिजल्ट बेहद चौंकाने वाला रहा। बच्चों में ब्रेस्ट फीडिंग किसी थेरेपी की तरह ही काम करती है। हम महिलाओं को लगातार ब्रेस्ट फीडिंग के लिए जागरूक कर रहे हैं।
डॉ। नवरत्न गुप्ता, एचओडी, बाल रोग विभाग, मेडिकल कॉलेज
मां के साथ स्किन टू स्किन टच बच्चों के ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। छह महीने तक मां को खुद ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। बच्चों के बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास के लिए ये बहुत जरूरी है।
डॉ। रवि राणा, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
बच्चे मां के साथ गर्भ से ही जुड़े होते हैं। वहीं से ही मां का एहसास वह समझ लेते हैं। दुनिया में आने के बाद मां के साथ ही उसका पहला परिचय होता है। मां की गोद में वह खुद को सबसे अधिक सुरक्षित महसूस पाते हैं इसलिए ही मां के संपर्क में आते ही उनमें गुड हार्मोंस रिलीज होने लगते हैं।
डॉ। तरूण पाल, एचओडी, मानसिक रोग विभाग, मेडिकल कॉलेज