-कारगिल युद्ध में मेजर डीपी सिंह के बगल में फटा था दुश्मन का गोला
-कर दिया था मृत घोषित, एक सैन्य चिकित्सक ने बचाई फौजी की जान
Meerut : जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। अलग-अलग तरह की परिस्थितियां सामने आती हैं, जिनका सामना करने की अधूरी तैयारी के चलते हम उसे समस्या के रूप में देखने लगते हैं। पर जब हम पूरी तैयारी से हालात का सामना करने को खड़े होते हैं, तब वही परिस्थितियां हमें चुनौती नजर आती हैं, जिसे हमें जीतना होता है। यह कहना है मेजर डीपी सिंह का, जिनके जज्बे के आगे मौत ने भी घुटने टेक दिए।
प्रेरणा स्त्रोत बन
कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान मौत के जबड़े से एक पांव लेकर लौटे मेजर डीपी सिंह युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन चुके हैं। गुरुवार को आर्मी पब्लिक स्कूल की ओर से चार्जिग रैम ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में मेजर डीपी सिंह छात्र-छात्राओं से रूबरू हुए।
बगल में गिरा था बम
वर्ष 1997 में आईएमए से सेना में भर्ती के महज एक वर्ष कुछ महीने बाद शुरू हुई कारगिल की लड़ाई में ऑपरेशन विजय में मेजर डीपी सिंह को भी शामिल होने का गौरव मिला। सेवन हॉर्स यूनिट के साथ वह 15 जुलाई को चिकननेक इलाके में तैनात थे। दुश्मन का एक गोला उनके बगल में आकर गिरा तो आंखों के साथ ही जीवन में भी अंधेरा छाने लगा। अस्पताल में पहुंचते ही डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया। कर्नल रैंक के एक अन्य डॉक्टर ने परीक्षण किया और मौत से उनकी जिंदगी को छीन लाए। दाहिना पांव चला गया। आज भी शरीर के ज्यादातर अंग जख्मी हैं। शरीर में अब भी बम के करीब 50 स्पि्लंटर मौजूद हैं। मेजर डीपी सिंह का कहना है कि कई लोगों के खून से मेरा जीवन बचा है, मेरे शरीर में परिवार नहीं, देश का खून दौड़ रहा है।
थक गया, इसलिए खड़ा हो गया
मेजर डीपी सिंह कहते हैं कि फौज में मिली ट्रेनिंग ने पांव पर खड़े होने के लिए प्रेरित किया। यह जाना कि विकलांगता कोशिश नहीं करने वालों में होती है, जबकि वह चैलेंजर बनना चाहते थे और बने। दशक दर्द में गुजारने के बाद पहला हाफ मैराथन वर्ष 2009 में दौड़े, जो कि देश का पहला पराक्रम बना और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। सेना की ओर से एक ब्लेड मिला और स्पीड बढ़ती चली गई। सन 2013 व 2014 में आयोजित मैराथन का प्रदर्शन भी लिम्का बुक में दर्ज हुआ।
जीवनदाता से मिलने की तमन्ना
मेजर डीपी सिंह बताते हैं कि उन्हें जीवन देने वाले सैन्य चिकित्सक का वह नाम भी नहीं जानते हैं। उनसे मिलने की तमन्ना उनके दिल में बढ़ती जा रही है। उक्त चिकित्सक को अपनी उपलब्धियां समर्पित कर रहे हैं।
और भी हुए प्रेरित
वर्ष 2011 में अपने जैसे कुछ लोगों के साथ मिलकर मेजर डीपी सिंह ने 'द चैलेंजिंग वन्स' नामक ग्रुप बनाया। वर्तमान में इस ग्रुप से करीब 800 लोग जुड़े हैं, जिनमें 90 सदस्य दौड़, स्वीमिंग, राइडिंग व पैरा ओलंपिक आदि में हिस्सा ले रहे हैं।