मेरठ (ब्यूरो)। जिले में हीमोफिलिया के मरीजों के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है। मेडिकल कॉलेज में हीमोफिलिया फैक्टर का टोटा है। मरीजों को बीते एक साल से प्रॉपर इलाज नहीं मिल रहा। वहीं अधिकारियों का कहना है कि फैक्टर के लिए लगातार डिमांड भेजी जा रही है। जितने फैक्टर उपलब्ध हंै, वही मुहैया करवाए जा रहे हैं।
दवा रेग्यूलर नहीं आ रही
हीमोफिलिया के मरीजों के लिए सरकार की ओर से मेडिकल कॉलेज में फ्री इलाज की सुविधा है। यहां बीते एक साल से दवा रेग्यूलर नहीं आ रही है। कंटयूनिटी न होने की वजह से एक बार में सभी मरीजों को दवा मुहैया नहीं हो पाती। मरीज ज्यादा हंै लेकिन दवा कम आती है। जब तक दवा का दूसरा लॉट आता है तब तक पहले मरीज के फैक्टर का रोटेशन आ जाता है। दूसरा मरीज बिना फैक्टर के ही रह जाता है। प्राइवेट अस्पतालों में एक बार की दवा का खर्चा 80 हजार तक है।
ये है स्थिति
आई ड्रीम टू ट्रस्ट के संस्थापक राजन चौधरी बताते हैं कि हीमोफिलिया के मरीजों को बीमारी की गंभीरता के अनुसार एक हफ्ते में दो से पांच तक फैक्टर लगते हैं। एमीवेटर मरीजों पर फैक्टर आठ और सात काम नहीं करता है, ऐसे मरीजों को हर दो से तीन घंटे तक में फैक्टर देने की जरूरत पड़ती है।
फैक्ट्स एक नजर में
263 मरीज रजिस्टर्ड हैं।
213 मरीज एडल्ट हैं।
50 मरीज बच्चे हैं।
5 से 10 बार मरीज को फैक्टर देना होता है।
13 क्लोटिंग ब्लड में से कोई एक भी फैक्टर कम होने हीमोफिलिया होता है।
ये बीमारी जेनेटिक या जन्मजात हो सकती है।
हीमोफिलिया के मरीज वाइल्ड, मोडरेट, सीवियर या एमीवेटर हो सकते हैं।
जोड़ों में असहनीय दर्द, नीले थक्के, घुटने में सूजन, खून का बहना बंद न होना, बच्चों में चलने के दौरान सूजन आना जैसेलक्षण मरीज में मिल सकते हैं।
नहीं शुरू हो सका अलग सेंटर
मेडिकल कॉलेज में हीमोफिलिया के मरीजों के लिए अलग से सेंटर बनाने की कवायद काफी सालों से चल रही है। अभी तक भी लेकिन से कागजों में ही अटका हुआ है। कई बार इसके लिए प्रस्ताव भी भेजे गए हैं। मशीनें भी आ गई है लेकिन तकनीकी कारणों के चलते सेंटर शुरू नहीं हो पा रहा है।
हीमोफिलिया के मरीजों के लिए फैक्टर प्रॉपर नहीं आ रहे हैं। एक साल से मरीजों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कई मरीजों की स्थिति चिंताजनक भी हो रही है। हम लगातार अधिकारियों से संपर्क कर दवा रेग्यूलर करने का प्रयास करवा रहे हैं।
राजन चौधरी, संस्थापक, हीमोफिलिया सोसाइटी
इलाज के लिए हमें काफी परेशान होना पड़ता है। मेरठ में दवा और फैक्टर दोनों ही नहीं मिलते हैं। हमें दिल्ली जाकर इलाज करवाना पड़ रहा है।
निसार, मरीज, हीमोफिलिया
मेडिकल में दवा मिलती नहीं है। फैक्टर भी कभी कभी ही मिलते हैं। हमें दिल्ली जाकर बेटे के लिए दवा लानी पड़ती है।
फुरकान, मरीज के पिता
हमने फैक्टर्स की डिमांड भेजी हुई है। फिलहाल फैक्टर आठ और सात उपलब्ध नहीं हैं। सिर्फ फैक्टर नौ उपलब्ध है।
डॉ। योगिता, नोडल अधिकारी, हीमोफिलिया
मरीजों को हर संभव सुविधा देने का हम प्रयास कर रहे हैं। जो भी दवा आती है, वह तुरंत ही मरीजों को दी जाती है ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो।
डॉ। नवरत्न, नोडल पीडियाट्रिक, हीमोफिलिया