हौसले हारते कहां हैं,
गमों में टूटते कहां हैं,
खोज ही लेते हैं मंजिल अपनी,
हुनरमंद हारते कहां हैं।
मेरठ ब्यूरो।कहते हैं कि संघर्षों में ही व्यक्ति की असली परीक्षा होती है। ऐसी ही कुछ कहानी है मेरठ की रहने वाली लवीना जैन की। वे और उनके पति कैंसर से पीडि़त हैं, लेकिन न तो उन्होंने किसी से कोई शिकायत की और न ही हारीं। बस विपरीत परिस्थितियों में बिजनेस शुरू किया, आज वो दूसरों के लिए मिसाल बन गईं। लवीना का सफर इतना भी आसान नहीं था, आइए सुनते हैं लवीना के संघर्ष की कहानी,उनकी ही जुबानी
कैंसर की खबर ने बदला जीवन
मेरा घर गंगानगर में है। मेरे पति का नाम संदीप जैन है। मेरी कहानी तीन दशक पुरानी है। जब मेरे परिवार की दिशा ही बदल दी। मेरे पति का ट्रांसपोर्ट का काम था। वह बहुत अच्छा चल रहा था। सब कुछ सही था। पर एक दिन ऐसी खबर सामने आई जिससे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। एक दिन हमें पता चला कि मेरे पति को मुंह का कैंसर है। कैंसर का नाम सुनकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। खैर हिम्मत नहीं हारी, पति का इलाज शुरू हो गया। मेरठ से लेकर मुंबई तक कई डॉक्टरों को दिखाया। इसी बीच उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनेस खत्म हो गया। वहीं, परिवार को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब यह पता चला कि मुझे ही ब्रेस्ट कैंसर हो गया। एक घर में दो कैंसर मरीज, हम टूट गए थे। सोच रहे थे कि अब क्या होगा। बच्चों का क्या होगा, जीवन कैसे चलेगा। हम दोनों टूट गए थे।
रिश्तेदारों ने भी साथ छोड़ा
मेरे और मेरे पति को कैंसर की बीमारी थी। ये आसान नहीं था, रिश्तेदार देखने तो आते, सांत्वना भी देते, लेकिन सहयोग कोई नहीं करता। धीरे-धीरे उन्होंने भी पूछना बंद कर दिया। जो भी जमा पूंजी थी, वो खत्म हो गई थी। पर कुछ लोग ही ऐसे थे, जिन्होंने हमारा मनोबल बढ़ाया।
कॉलेज से सीखे हुनर का फायदा
हालात कठिन थे, हमारा संघर्ष जीने का तो था ही, साथ ही बच्चों के भविष्य का भी था। हमारा सब कुछ खत्म हो गया था, बस एक उम्मीद थी कि कुछ न कुछ करेंगे। ऐसे हार नहीं मानेंगे। मैं कुछ नया करने की सोची, जिसमे पूंजी भी कम लगे और आमदनी का जरिए भी बने। जब मैं इंटर में पढ़ती थी, तब मेरे पास होमसाइंस तो नहीं थी, लेकिन अपनी सहेलियों के साथ अक्सर होम साइंस की क्लास अटेंड कर लेती थी। वहां मैने अचार और शरबत बनाना भी शौक शौक में सीखा था। यह आइडिया मुझे क्लिक किया। क्योंकि अचार और शरबत का बिजनेस शुरू किया जाए। मैंने मोदीपुरम स्थित फूड डिपार्टमेंट से 100 दिन तक अचार बनाने की प्रॉपर ट्रेनिंग ली।
अचार के बिजनेस से बनी पहचान
मैंने घर में सबसे पहले आम का अचार बनाना शुरू किया। अब उसे बेचा कैसे जाए। इसके लिए मैं महिलाओं की किटी पार्टी में जाने लगी। मैने अपना प्रोडक्ट दिखाया। इसकी शुरुआत सिर्फ 1500 रुपए में हुई थी। धीरे-धीरे यह सिलसिला आगे बढ़ा। डिमांड बढऩे लगी तो प्रोडक्शन भी बढ़ा। अब मेरे साथ आठ महिलाएं कार्य करती हैं। इसके साथ ही करीब 33 महिलाएं भी पार्ट टाइम जुड़ी हैं। कड़ी मेहनत के बदौलत आज उनकी कंपनी का सालाना 30 लाख रुपए का टर्नओवर है।
आंखों में आ जाते हैं आंसू
अब जब मुझे बीता समय याद आता है तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। एक वो वक्त था जब लोग मुझसे बात करने से कतराते थे। अब वही, मुझे घर बुलाते हैं। बिजनेस आइडिया पूछते हैं। मेरे संघर्ष की यह यात्रा कठिन जरूर है, पर हौसलों को हारने वाली नहीं है। आज मैं परिवार का भरण पोषण कर रही हूं। साथ ही कई लोगों को जॉब भी दे रही हूं।