मेरठ (ब्यूरो)। जैसे रंगों का त्योहार होली बिना होलिका दहन के अधूरा है, ठीक वैसे ही होलिका दहन में लड़कियों की आहूतियों से परहेज बिना पर्यावरण संरक्षण भी संभव नहीं है। अगर लकडिय़ों की जगह गोबर के उपलों और गोबर की लकडिय़ों से ईको फ्रेंडली होली मनाई जाए तो होलिका दहन की परंपरा भी कायम रहे और पर्यावरण संरक्षण का रास्ता भी साफ हो, शहर के पर्यावरणविद् हो या समाजसेवी, सब यही संदेश देकर लोगों को जागरूक करने में जुटे हैैं।

एक मोहल्ला एक होलिका
बूंद फाउंडेशन के अध्यक्ष रवि कुमार के मुताबिक शहर में इस साल 1500 से अधिक स्थानों पर होलिका दहन किया जाएगा। इनमें अधिकतर सभी मोहल्लों और गलियों में छोटी-छोटी होलिका से लेकर शहर के प्रमुख चौराहों से लेकर पार्क में होलिका दहन स्थल शामिल हैं। इन होलिका दहन स्थलों पर हर साल लाखों टन लकडिय़ों समेत सूखी झाडिय़ां और कूड़ा तक जलाया जाता है। इसी परंपरा के चलते हर साल लकडिय़ों का दोहन बढ़ता जा रहा है। जिसे रोकने के लिए पर्यावरणविदों ने एक उपाय ढूंढ निकाला है। इसके तहत एक मोहल्ला एक होलिका के लिए लोगों को जागरुक किया जा रहा है। ताकि लोग जगह-जगह होलिका दहन करने के बजाए एक जगह एकत्र होकर होलिका दहन करें और प्रेम सौहार्द के साथ होलिका दहन बिना पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना संभव हो सके।

ईको फ्रेंडली होलिका दहन
क्लब 60 के सदस्य हरि विश्नोई के मुताबिक होलिका दहन में लकडिय़ों को जलने से रोकने के लिए शहर में एक नई मुहिम शुरू की गई है। जिसके तहत गाय के गोबर से बनी लकडिय़ां और उपले बनाकर लोगों को दिए जा रहे हैैं। जिससे इको फ्रेंडली व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए होलिका दहन किया जाए।

हमने लोगों को जागरूक किया कि होलिका दहन में लकड़ी के इस्तेमाल से परहेज करें लेकिन उपलों के अलावा लोगों के पास कोई ऑप्शन नहीं था। मगर आज हमारी टीम एक मोहल्ला एक होलिका के लिए लोगो को 500/रू प्रति कुंतल के हिसाब से गाय के गोबर से तैयार लकडिय़ां उपलब्ध करा रही है। आज करीब हमारे पास 10 से ज्यादा होलिका के लिए 10 कुंतल लकडिय़ां उपल्ब्ध कराने का ऑर्डर है।
रवि कुमार, बूंद फाउंडेशन अध्यक्ष

शहर में पर्यावरण जागरुकता के प्रति काम कर रही क्लब 60 की टीमहोलिका दहन के नाम पर कटने वाले पेड़ों को बचाने के लिए गाय के गोबर से बने उपले व लकडिय़ों के उपयोग के प्रति लोगों को जागरुक करने का काम रही है। होलिका दहन के लिए हमारी टीम ने बड़ी संख्या में इस बार उपले बनवाएं हैैं। जिन्हें हम शहर के विभिन्न स्थानों पर होलिका दहन के लिए भिजवाएंगे।
हरि विश्नोई, सदस्य, क्लब 60

पिछले वर्ष हमने कई होली स्थलों के लिए सैकड़ों की संख्या में गोबर के उपले वितरित किए थे। हम गोबर के उपलों के वितरण के साथ ही शहवासियों को होलिका दहन के दौरान लकडिय़ों के इस्तेमाल से रोकने के लिए जागरूक भी करते हैैं। लोगों को समझाते हैैं कि गोबर के उपलों के इस्तेमाल से पेड़ों का कटान कम होगा और पर्यावरण संरक्षण भी हो सकेगा।
आलोक सिसौदिया, समाजसेवी

पर्यावरण संरक्षण के साथ ही लोगों को जागरूक करने की हमारी कोशिश रंग लाने लगी है। गोबर से बने उपले और लकडिय़ां के इस्तेमाल को लेकर लोग जागरूक हो रहे हैैं। पहले बड़ी संख्या में होलिका दहन में पटाखें और टायर डालकर जलाया जाता था। मगर अब ये सीमित हो गया है। मेरी लोगों से अपील है कि होलिका दहन को ईको फ्रेंडली बनाएं और समाज को एक जागरूक संदेश दें।
प्रह्लाद अग्रवाल, समाजसेवी