केस-1
64 वर्षीय जागृति विहार निवासी रामबीर डिमेंशिया से ग्रस्त हैं। किसी तरह मेडिकल कॉलेज पहुंचे। यहां उन्होंने बताया कि बेटा उनकी बीमारी की ओर ध्यान नहीं देता है। प्राइवेट नौकरी से रिटायर हुए हैं इसलिए उनके पास पेंशन भी नहीं है। किसी तरह से अस्पताल पहुंचे। अब किसी वृद्धाश्रम में रहना चाहते हैं।
केस-2
71 वर्षीय सुमन वृद्धाश्रम में रहती हैं। मेडिकल कॉलेज से उनका इलाज चल रहा है। दो साल पहले बेटा यहां छोड़ गया था। पति की मृत्यु के बाद से यहीं रह रही हैं। उनका कहना है कि जब तक पति थे तब तक खर्च चल रहा था। उनके जाने के बाद बच्चों ने बेकार समझकर छोड़ दिया।
केस-3
कमलेश 67 वर्ष की हैं। डिमेंशिया और डिप्रेशन की शिकार हैं। वह बताती हैं कि उनके तीन बेटे और तीन बहुएं हैं। किसी के पास भी उनके लिए समय नहीं हैं। सब अपने काम में बिजी रहते हैं। पति का देहांत हो गया है। बच्चों पर ही निर्भर हैं। इलाज के लिए भी अकेले ही आती हैं।
मेरठ (ब्यूरो)। नौकरी के बाद रिटायर होने वाले बुजुर्गों को उनके अपने ही बीमार बना रहे हैं। उनमें कई तरह की मानसिक बीमारियां पनप रही हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव पर आकर बेटों-बहुओं की अनदेखी उनके लिए असहनीय साबित हो रही है। कमलेश, सुमन और रामबीर सिर्फ उदाहरण भर हैं। मेडिकल कॉलेज में हुई स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक अकेलेपन के शिकार 70 फीसदी बुजुर्गों की यही स्थिति है। बच्चों की अनदेखी और रिटायरमेंट के बाद उन्हें अनुपयोगी मानकर किया जाने वाला व्यवहार उनके मन को छलनी कर रहा है।
ये है स्टडी रिपोर्ट
मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में उपेक्षित और लाचार मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ओपीडी में बीते छह महीने में पहुंचे एक हजार बुजुर्ग मरीजों पर स्टडी की गई। इनमें 70 प्रतिशत मरीजों में डिप्रेशन, अल्जाइमर, सुसाइडल रिस्क, डिमेंशिया जैसी मानसिक बीमारियां पाई गईं। सभी की उम्र 62 वर्ष से अधिक थी। इन मरीजों ने जांच के दौरान बताया कि बेटे और बहुओं का व्यवहार उनके प्रति पूरी तरह से उदासीन हो गया है। जब तक नौकरी थी, उन्हें किसी बात की परेशानी नहीं हुई। मगर अब घर पर रहते हैं तो बहुएं परेशान हो जाती हैं। सारा दिन अकेलेपन में गुजारना पड़ता है। इनमें कुछ ऐसे भी मिले, जो बीमारी की वजह से कहीं आ-जा नहीं सकते थे। जिसकी वजह से उनके बच्चों ने उन्हें बेकार मान लिया। वह घर में सिर्फ एक कमरे तक ही सीमित रह गए।
काउसंलिंग में निकला दर्द
मेडिकल कॉलेज बीमारी का इलाज करवाने पहुंच रहे इन बुजुर्गों के साथ बातचीत करने वाला घर में कोई नहीं हैं। काउंसलिंग के दौरान डॉक्टर्स के साथ बातचीत में इनके मन की पीड़ा बाहर निकलती है। डॉक्टर्स बताते हैं कि इन मरीजों में 65 प्रतिशत ऐसे हैं, जो किसी न किसी प्राइवेट सर्विस से रिटायर हुए हैं। अब फाइनेेंशियल और फिजिकल तौर पर वह कमजोर हो गए हैं। जिसके बाद परिवार इन्हें सिर्फ बोझ मान रहा है। इनके मन में जीने की ललक तक खत्म हो गई है।
रोज सामने आ रहे मामले
मेडिकल कॉलेज की तरह जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में भी ऐसे मामले हर दिन पहुंच रहे हैं। डॉक्टर्स का कहना कि महिलाओं के मुकाबले ऐसे बुजुर्ग पुरुषों की संख्या अधिक है। अधिकतर की उम्र 65 से 70 साल के बीच में है।
इनका है कहना
माता-पिता के साथ बच्चों का गलत व्यवहार, उन्हें रिटायरमेंट के बाद बेकार मानना, अनदेखी और खराब व्यवहार मानसिक रोगी बना रहा है। बुजुर्गों में इस वजह से कई तरह की बीमारियां मिल रही हैं जो उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं हैं। अवसाद की वजह से उनकी सोचने-समझने की शक्ति भी कम हो गई है।
डॉ। तरूण पाल, एचओडी, मेंटल हेल्थ विभाग, मेडिकल कॉलेज
बच्चों का व्यवहार माता-पिता के प्रति काफी असंवेदनशील होता जा रहा है। वह अपने हिसाब से जिंदगी जीना चाहते हैं, इसलिए बुजुर्ग उन्हें बोझ लगते हैं। किसी तरह की रोक-टोक बहुएं सहन नहीं कर पाती हैं। बेटों को भी फुर्सत नहीं है।
डॉ। कमलेंद्र किशोर, मनोचिकित्सक, जिला अस्पताल