- समाज में पुरुषवादी मानसिकता को जड़ से खत्म करना होगा, तभी रुक पाएगी छेड़छाड़

- आई नेक्स्ट के गु्रप डिस्कशन में मानसिकता बदलने पर जोर, परिवार से होगी शुरुआत

Meerut : छेड़छाड़ की घटनाओं के लिए सिर्फ पहनावे या लड़कों को दोष देना उचित नहीं है। सोच अच्छी होगी तभी समाज अच्छा होगा। इसकी शुरुआत परिवार से होगी। 'इज्जत करो' अभियान के तहत शनिवार को आई नेक्स्ट ऑफिस में आयोजित गु्रप डिस्कशन में महिलाओं ने खुलकर अपने विचार रखे। सभी ने माना कि बच्चों में संस्कार और लड़कियों में आत्मविश्वास की कमी से छेड़छाड़ बढ़ रही है।

समझनी होगी जिम्मेदारी

महिलाओं का कहना था कि छेड़छाड़ रोकने के लिए पेरेंट्स को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। संस्कार परिवार से पनपते हैं। माता-पिता दोनों की ही जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दें कि वह सभी को सम्मान दृष्टि से देखें। गलत सोच की शुरुआत घर से ही होती है। पेरेंट्स बच्चों को गलत एक्टिविटी को नजरअंदाज करते हैं या बढ़ावा देते हैं। बच्चा देखता है कि परिवार से महिलाओं को कितना इज्जत और प्यार मिल रहा है। बच्चों को स्कूलों में भी संस्कार देने होंगे। बच्चा काफी समय स्कूल में बिताता है। बहुत कम स्कूल ऐसे होंगे जहां संस्कारों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

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बदलना होगा परिवार का माहौल

मनोवैज्ञानिक की दृष्टि से देखा जाए तो बच्चों में परिवार से ही पुरुषवादी सोच उत्पन्न होती है। एक बच्चा अपने देखता है कि परिवार में महिलाओं को कितना सम्मान व प्यार मिल रहा है, तो वही सब सीख कर वह बड़ा होता है। यहीं से बच्चों में पुरुषवादी सोच उत्पन्न होने लगती है। यही सोच समाज में बड़ा रूप लेती है, जिसे खत्म करने के लिए हमें अपने पारिवारिक माहौल को बदलना होगा।

-डॉ। अनिता मोरल, मनोवैज्ञानिक

वैल्यू एजुकेशन को बढ़ावा दें

छेड़खानी की घटनाओं का बढ़ना कहीं न कहीं बीमार मानसिकता का ही नतीजा है। इसके लिए परिवार को और स्कूल को दोनों को ही बच्चों को अच्छे संस्कार देने की आवश्कता है। शुरू से ही बेटे-बेटी के फर्क को दूर रखना होगा, वहीं स्कूलों को भी चाहिए की वे वैल्यू एजुकेशन के जरिए बच्चों को जागरुक करें वह अच्छे संस्कार दें।

-डॉ। पूनम देवदत्त, सीबीएसई काउंसलर

सभी को बराबर सम्मान करें

लड़कों की सोच होती है कि मेरी बहन मेरी बहन है और दूसरों की बहन मेरी बहन नहीं। जिस दिन यह सोच खत्म हो जाएगी, तभी से समाज में सुधार आना शुरू हो जाएगा। पेरेंट्स को बेटा-बेटी का फर्क किए बिना दोनों पर शुरू से ही नजर रखनी होगी और एक सम्मान दृष्टि से देखना होगा। ताकि उनमें इस तरह की भावना उत्पन्न न हो।

-अलका तोमर, गोल्ड मेडलिस्ट कुश्ती खिलाड़ी

ब्लेम गेम खेलना ठीक नहीं

अक्सर छेड़छाड़ को लेकर ब्लेम गेम देखने को मिलता है। लोग अपनी वास्तविक जिम्मेदारियों को नहीं समझते हैं। कभी पहनावे का दोष, कभी समय का दोष या फिर कभी प्रोफेशन में दोष निकालते हैं, लेकिन वास्तव में हम खुद की जिम्मेदारी को नहीं समझते। अगर पेरेंट्स और स्कूल अपनी जिम्मेदारियों को समझें और शुरू से ही बच्चों में सम्मान की भावना विकसित हो तो समाज से छेड़छाड़ की बीमारी खत्म हो सकती है।

-मोहिनी लाम्बा, डायरेक्टर, अमेरिकन किड्स स्कूल

खुद को बेचारी न बनाएं

इन घटनाओं से कपड़ों का कुछ भी मतलब नही हैं। लड़कियों को ब्लेम करना समाज की मानसिकता बन गई है। इस मानसिकता का बड़ा कारण हम लड़कियां खुद ही हैं, जो खुद को बेचारी समझती हैं। हर लड़की को शुरू से कम बोलना, कम बाहर निकलना सिखाया जाता है, जिससे वे खुद को बेचारी समझने लगती हैं। समाज भी ग‌र्ल्स को लाचार मानता है, लेकिन अब हमें खुद को सशक्त बनाना होगा ताकि समाज में ग‌र्ल्स को लाचार समझने का भ्रम दूर किया जा सके।

-प्राची मिश्रा, गीतांजलि संस्था

ग‌र्ल्स को हिम्मती बनाए परिवार

पुरुषों का साथ हो तो किसी की हिम्मत नहीं कि वो महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करे। अगर किसी महिला के साथ कुछ घटित होता है और वह आवाज उठाने की सोचती है तो घर में ही हंसी का पात्र बनकर हिम्मत हार जाती है। घटना होने पर ग‌र्ल्स की हिम्मत बंधाई जाए और उसे सहयोग किया जाए तो महिलाएं खुद को सशक्त समझ पाएंगी।

-संगीता राहुल, पूर्व पार्षद, ब्रह्मपुरी

सही-गलत की पहचान करना सिखाएं

अक्सर हम सोसायटी में अपने स्टेटस को हाईफाई दिखाने के चक्कर में बच्चों को हर सुविधा देते हैं, लेकिन यह ध्यान नहीं देते कि हमारा बच्चा उस सुविधा का कितना सही और कितना गलत यूज कर रहा है। पेरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों को सुविधाएं देने के साथ उन पर नजर रखें। इसके साथ ही मां की जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चों में आने वाले हर चेंज के बारे में उन्हें समय-समय पर बताती रहें। ताकि वह सही व गलत की पहचान कर सकें।

-डॉ। अनिता पुंडीर, एचओडी बीएड, श्री बालाजी डिग्री कॉलेज

सिंगल फैमिली में कम हुई गाइडेंस

पहले ज्वाइंट फैमिली होती थी, जिसमें दादा-दादी, चाचा-चाची या बुआ, जो पेरेंट्स के जॉब पर जाने के बच्चों पर नजर रखते थे। उन्हें अच्छे बुरे की पहचान करना सिखाते थे, लेकिन अब ज्वाइंट फैमिली कम होने से बच्चों की गाइडेंस कम मिल रही है। अब तो दादा-दादी की जगह मेड या फिर टीवी और इंटरनेट ही बच्चों के साथ होता है।

-मीनल गौतम, प्रांत छात्रा प्रमुख, एबीवीपी

सोच बदलना होगा

अक्सर लड़कियों को बताया जाता है कि बेटी से ही परिवार की इज्जत है, इसलिए अपनी मान-मर्यादा का ख्याल रखना। कभी किसी लड़के को नहीं कहा जाता। परिवारों में शुरू से ही लड़कों को बढ़ावा दिया जाता है। कई फैमिली में तो कहा जाता है कि लड़का कुछ भी कर ले, फर्क नहीं पड़ता, लेकिन लड़कियों को अपने कदम फूंक-फूंक कर रखने चाहिए। अगर शुरू से इस तरह की सोच परिवारों में आएगी तो पुरुषवादी सोच को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए इस सोच को बदलना होगा।

-वैशाली गोयल, छात्रसंघ कोषाध्यक्ष आरजी कॉलेज

सिस्टम को बदलना बेहद जरुरी

समाज से बीमार मानसिकता के साथ सिस्टम को भी बदलने की आवश्यकता है। अगर सिस्टम में बदलाव आएगा, तभी समाज में बदलाव आएगा। अगर कोई लड़की अपनी आवाज बुलंद करती है तो कहीं न कहीं सिस्टम उसकी आवाज को दबा देता है, जिसके कारण वह चुप होकर ही रह जाती है। इसलिए सिस्टम को भी समझना होगा कि वह बेटियों की आवाज को बुलंद करने में सहयोग दे।

-भारती सोम, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, आरजी कॉलेज

हमें सिस्टम से लड़ना होगा

अक्सर लड़कियां अपने साथ गलत होने पर पलटकर जबाव नहीं देती। क्योंकि उनके मन में शुरू से ही डर बैठा दिया जाता है। कुछ भी हो दोष लड़कियां का ही माना जाता है। इसलिए परिवार की मान-मर्यादा के लिए उन्हें चुप रहना पड़ता है, लेकिन यह बिल्कुल गलत है। इसके लिए हमें सिस्टम, समाज की सोच और गलत धारणाओं से लड़ना होगा और अपनी आवाज को बुलंद करना होगा।

-गुंजन प्रजापति, एमए स्टूडेंट आरजी कॉलेज