केस 1
आदित्य (23 साल) ने अपने एक दोस्त को वीडियो गेम खेलते देखा, उसे भी शौक लगा और उसने फोन में वही गेम डाउनलोड कर लिया। शुरू में वह एक से दो घंटे खेलता लेकिन धीरे-धीरे उसका पूरा ध्यान उसी गेम में जाने लगा। वह एक कमरे में कैद रहने लगा और हर वक्त गेम खेलता। कोई कुछ कहता तो एकदम एग्रेसिव हो जाता। काउंसलिंग हुई तो पता चला कि वीडियो गेम ने उसके दिमाग को जकड़ लिया था। हालांकि सही समय पर थेरेपी से वह ठीक हो गया।
केस 2
सिमरन (5 वर्ष) की मम्मी अक्सर उसे फोन पकड़ा देती। बच्ची भी मन बहलाने के लिए गेम खेलने लगी। तरह-तरह के गेम उसके मन को भाने लगे। हफ्ते भर में ही वह वीडियो गेम की एडिक्ट हो गई। कोई फोन ले लेता तो रो-रोकर घर सिर पर उठा लेती। उसकी इस लत से परेशान उसके माता-पिता ने चाइल्ड काउंसलर की मदद ली। मोबाइल पर गेम खेल-खेलकर बच्ची के दिमाग का पूरा न्यूरॉन सिस्टम प्रभावित हो गया था।
केस 3
दीपाली (35 वर्ष) की गेमिंग आदत ने उनकी पर्सनल और सोशल लाइफ डिस्टर्ब कर दी थी। एक दो बार खेले गए वीडियो गेम की उसे लत लग चुकी थी। इससे उसका घर और ऑफिस दोनों प्रभावित होने लगे। वीडियो गेम खेलने की दीवानगी धीरे-धीरे इस हद तक बढ़ी गई कि एक दिन उसने नौकरी तक छोडऩे का फैसला कर लिया। हालांकि किसी तरह परिजनों ने उसे समझाया। कई बार काउंसलिंग सेशन हुए। तब जाकर उसकी ये लत छूटी।
मेरठ (ब्यूरो)। वीडियो गेम की लत लोगों को बीमार बना रही है। सिमरन, दीपाली और आदित्य चंद उदाहरण हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट की मानें तो हर माह 15 से 20 केस काउंसलर्स के पास पहुंच रहे हैैं। इसका सीधा-सा मतलब है कि शहरवासियों में गेम्स के प्रति दीवानगी तेजी से बढ़ रही है। मोबाइल और टीवी पर खेले जाने वाले गेम्स के लोग आदि हो गए हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इन गेम्स के चलते लोग पूरा-पूरा दिन बर्बाद कर रहे हैं। उनके दिमाग को भी इन गेम्स ने हैक कर लिए हैं। जिससे उनके कार्य करने की क्षमताएं प्रभावित हो रही है। उनका व्यवहार भी हिंसात्मक होता जा रहा है। इस प्रवृत्ति को मनोचिकित्सक भी काफी खतरनाक मान रहे हैं। वीडियो गेम्स के नुकसान और इससे होने वाले खतरों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ही हर वर्ष 11 सितंबर को वल्र्ड वीडियो गेम-डे आयोजित किया जाता है
वीडियो गेम में भी एक लत है
एक्सपट्र्स बताते हैं कि वीडियो गेम की लत किसी बीमारी से कम नहीं है। शराब से कहीं अधिक एडिक्शन इस तरह के गेम्स में दिखाई देता है। एक बार खेलने के बाद लोग इसमें डूब जाते हैं। इससे उनका दिमाग और शरीर दोनों ही कमजोर होता है। मनोचिकित्सक बताते हैं कि वीडियो गेम के एडिक्ट लोगों में एग्रेसिव नेचर, लोनलीनेस, डिप्रेशन देखने में आता है। आजकल हर हाथ में स्मार्टफोन है। सोशल मीडिया एप्स के जरिए तमाम ऑनलाइन गेम्स अब लोगों की पहुंच में आ रहे हैं। एक बार खेलने के बाद लोग जल्दी से इसे नहीं छोड़ पाते हैं।
कीमती समय कर रहे बर्बाद
मनोचिकित्सक बताते हैं कि ऑनलाइन खेले जाने वाले गेम्स को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि हर एक लेवल, अगले लेवल को खेलने के लिए जबरदस्त तरीके से बांध कर रखता है। छोटे से बड़े हर वर्ग के लिए इंटरनेट पर गेम्स उपलब्ध हैं। अपनी क्षमताओं और उम्र के हिसाब से लोग इन्हें चुन लेते हैं। छोटे बच्चे चीजों को व्यवस्थित करने, युद्ध करने, हर्डल्स पार करने, लूडो या अन्य तरह के गेम्स में उलझ जाते हैं। वहीं बड़ी उम्र के लोग आइक्यू टेस्ट के नाम पर एक के बाद एक लेवल को पार करने का चैलेंज एक्सेप्ट करते जाते हैं। वर्चुअल कंप्टीटर से जीतने की होड़ और अधिक से अधिक रिवाड्र्स के पीछे वह अपना कीमती समय बर्बाद करने लगते हैं। एक्सपट्र्स यह भी बताते हैं कि एक बार इन गेम्स में घुसने के बाद लोग अपनी गेम्स की आईडी को ही रियल मान बैठते हैं। साथ ही उन्हें गेमिंग जोन ही रियल वल्र्ड लगने लगता है। उनकी दुनिया गेम में ही समाहित हो जाती है। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक वह अगले लेवल को पार करने में जुटे रहते हैं। यहां तक की इन गेम्स को खेलने के लिए लोग अपनी नींद के साथ भी कंप्रोमाइज करने लगते हैं। जिससे उनका पूरा लाइफ पैटर्न बिगड़ जाता है।
गेम्स से रहें सावधान
एक्सपट्र्स बताते हैं कि किसी भी साइट पर खेले जाने वाले गेम से सावधान रहना चाहिए। ब्लू व्हेल, मोमो समेत कई तरह के गेम इस तरह का जाल बुनते हैं कि टास्क को पूरा करते-करते बच्चे सुसाइड तक अटेम्प्ट करने लग जाते हैं। इस तरह के गेम बहुत हानिकारक है। इनसे खुद को और बच्चों को बचाकर रखें।
गेम्स से ये हो रहे नुकसान
मेमोरी लॉस
अकेलापन
एग्रेशन
डिप्रेशन
बिहेवियोर डिसऑर्डर
मूड स्विंग्स
वीक आई साइट
स्ट्रेस
स्लीप डिसऑर्डर
सुसाइड टेंडेंसी
इनका है कहना
वीडियो गेम्स काफी घातक होते हैं। खास तौर से बच्चों को इससे बचाना जरूरी है। इस तरह के गेम्स खेलने से बच्चे हिंसात्मक प्रवृत्ति के शिकार होने लगते हैं। उनका कॉन्शियस लेवल बहुत कम होने लगता है। साथ ही मेमोरी लॉस जैसी स्थिति भी पैदा हो जाती है। जितना हो सके बच्चों को मोबाइल या टीवी से दूर रखना चाहिए।
डॉ। रवि राणा, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
वीडियो गेम्स में अन्य किसी नशे से कहीं अधिक नशा होता है। जितना हो सके इससे दूर रहें। इस तरह के गेम्स टाइम के साथ जीवन को भी बर्बाद करते हैं। लोगों को यह समझना होगा कि इन्हें खेलकर कुछ हासिल नहीं होता। व्यक्ति अपना काम का छोड़ देता है और इनमें खो जाता है। जिससे उसका आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और व्यक्तिगत नुकसान होता है।
डॉ। तरुण पाल, एचओडी, मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज