मेरठ (ब्यूरो)। श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर असौड़ा हाउस में अभिषेक व शांति धारा की गई। प्रचार संयोजक रचित जैन ने बताया कि सोमवार को शांतिधारा मुनि श्री 108 ज्ञानानंद महाराज द्वारा कराई गई। जिसमें सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य रमेश चंद्र जैन संजय जैन परिवार को मिला एवं कुबेर का सौभाग्य अजय जैन नीलम जैन परिवार को प्राप्त हुआ। जिसके बाद भक्ततांबर महामंडल विधान पंडित नमन द्वारा संगीत में धुनों द्वारा कराया गया। जिसमें मंदिर परिसर में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं ने एक-एक कर 48 अर्घ मांडले पर अर्पित किए।
उपासक के बताए गुण
कार्यक्रम में मुनि श्री ज्ञानानंद महाराज ने भक्तामर विधान के मध्य धर्म के उपासक के गुण बताए। उन्होंने अपने प्रवचनों में कहा कि क्षमावान, करुणावान ऐसे धर्म के उपासक हैं तो हम शत्रु से क्षमा मांग लें। एक बार बोले, मेरे शरीर में रहने वाले जीवाणुओं मैंने आपको कष्ट पहुंचाया है, दिल दुखाया, आप मुझे क्षमा कर दो। असाता को साता में परिवर्तित करने के लिए और शत्रुता को मित्रता में रूपांतर करने के लिए भक्ततामर की आराधना एक सफल उपाय है। उन्होंने कहा कि श्रद्धा ही वास्तविक भक्ति को जन्म देती है। अपनी श्रद्धा के देवता का निर्माण हृदय में करना चाहिए। श्रद्धा होगी तो भक्ति होगी और तभी विवेक जगेगा। देव शास्त्र गुरु श्रद्धा के मुख्य केंद्र हैं।
धर्म का दिया संदेश
ज्ञानानंद ने प्रवचन करते हुए कहा कि मेरी वाणी से प्रभावित होकर जैन मंदिर के सेवकों ने रात्रि भोजन त्याग दिया। उन्होंने धर्म सभा में मौजूद सभी को धार्मिक संदेश देते हुए कहा कि जो लोग रात्रि के समय भोजन करते हैं, वह इसका समूल रूप से त्याग कर दें, रात को भोजन त्यागने को भगवान की भक्ति में शामिल माना जाता है।
श्रद्धालुओं को भोजन कराया
महाराज ने कहा कि बीमार व्यक्ति दवा से ठीक ना हो, दुआओं से भी ठीक हो जाता है। दुआओं का अर्थ, भगवान की भक्ति है। इसका साक्षात उदाहरण बताते हुए कहा कि जब डॉक्टर मरीजों के लिए दवाइयों में फेल हो जाता है, तब भगवान की भक्ति ही काम आती है, जिसको दुआ कहते हैं। अंत में सभी श्रद्धालुओं को भोजन कराया गया, जो मंदिर परिसर में विनोद रमेश सुभाष अनिल हेमचंद्र नितिन आयुष शोभा आभा रीमा अक्षिता अनन्या आदि उपस्थित रहे।