मेरठ (ब्यूरो) । वाकई ये बड़े दुख की बात है कि शहरवासियों के लिए साफ पानी भी मयस्सर नहीं है। आप यकीन मानिए कि घरों में जो वॉटर सप्लाई हो रही है। वो दूषित है, इस कारण ये पानी ही आपकी सेहत के लिए हानिकारक है। नगर निगम की टंकियों में साफ-सफाई न होने से दूषित पानी आपके घरों में सप्लाई हो रहा है। पानी में लगातार बढ़ रही गंदगी के कारण अब शुद्ध पानी आरओ वाटर फिल्टर पर निर्भर हो चुका है। लेकिन शहर की 65 प्रतिशत जनसंख्या की क्षमता में अभी भी आरओ नही है। हालत यह है कि करीब 65 प्रतिशत लोग सिर्फ नगर निगम के ओवरहैड टैंक व हैंडपंप की सप्लाई पर ही निर्भर है।
एक साल टंकियों की सफाई नहीं
गौरतलब है कि नगर निगम और जल निगम की लापरवाही के कारण ओवरहेड टैंकों की एक साल से साफ-सफाई नहीं हुई है। इस कारण शहर की करीब 18 लाख की आबादी गंदा पानी पीने को मजबूर है।
सारे पहलुओं को तलाशेंगे
शहर में दूषित पानी की सप्लाई के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने &ये पानी हानिकारक है&य अभियान की शुरूआत की है। इसमें जल संरक्षण के लिए कार्यरत एनजीओ बूंद फाउडेंशन भी सहयोग करेगा।
सात दिनों तक चलेगा अभियान
शहर में पानी की शुद्धता जांचने और उसके पहलुओं को तलाशने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से 7 दिवसीय अभियान चलेगा। इसके तहत शहर के वीआईपी इलाकों से लेकर सार्वजनिक स्थलों के पेयजल की टीडीएस और अशुद्धियों की जांच होगी।
हर में 157 ओवरहैड टैंक
गौरतलब है कि महानगर की 18 लाख जनसंख्या को शहर में स्थापित 157 ओवरहैड टैंक से जलापूर्ति होती है। महानगर में संचालित ट्यूबवेल और पानी की टंकियों पर जल निगम यांत्रिक विभाग ने स्काडा लगवाए हुए हैं। इनमेें से कुछ टैंकों से जलापूर्ति का कार्य ठेकेदारों के हाथों में है तो कुछ को जल निगम और नगर निगम जलकल विभाग संचालित कर रहे हैं। नियम यह है कि ठेकेदार और दोनों ही विभागों को अपने अपने अधिकार क्षेत्र वाली पानी की टंकियों की सफाई करनी होती है। इसके लिए बकायदा ठेकेदारों को भुगतान किया जाता है।
टीडीएस की स्थिति हो रही असंतुलित
शहर में अगर गंगाजल को छोड़ दें तो बाकी ट्यूबवेल से भूगर्भ जल से ओवरटैंक भरे जाते हैं। लेकिन इसके लिए जरुरी है कि नियमित रूप से ओवरटैंक की सफाई की जाए और टैंक में भरे जाने वाले पानी की शुद्धता की जांच की जाए। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि ओवरटैंक तक यह जलापूर्ति बगैर नियमित जांच के हो रही है। इसके चलते किस प्रकार की अशुद्धियां पेयजल में मौजूद हैं इसकी जानकारी खुद निगम के पास नही हैं। वहीं पेयजल की टीडीएस सामान्य स्तर से कहीं अधिक बना हुआ है। जो कि शहर के लोगों को बीमारियों से ग्रस्त कर रहा है।
बेहिसाब क्लोरीन भरोसे शुद्धता
वहीं टैंक की सफाई के साथ साथ पानी के बैक्टीरिया मारने के लिए पानी में क्लोरीन यानि ब्लीचिंग पाउडर डाला जाना चाहिए। क्लोरीन डालने की जिम्मेदारी भी विभाग की ही है जिसको पूरा भी किया जा रहा है लेकिन यह क्लोरीन कितनी डाली जानी चाहिए इन मानकों का प्रयोग जलनिगम के स्तर पर नही हो रहा है। वहीं निगम की वेबसाइट पर अपडेट डाटा के अनुसार अंतिम क्लोरिन जांच रिपोर्ट भी खुद सितंबर 2022 में अपडेट हुई थी। यानि करीब 9 माह से क्लोरीन मात्रा की सही जांच भी नही की गई है। क्लोरिन की अधिक मात्रा भी सेहत के लिए हानिकारक साबित हो रही है।
अशुद्ध पेयजल के नुकसान
पानी में क्रोमियम, आर्सेनिक, लेड, कैडमियम आदि कैमिकल की अशुद्धियां पाई जाती हैं।
दूषित जल से सामान्यता हैजा, टायफाइड, अमीबिया, दस्त आदि बीमारियां होती हैं।
पानी में कैमिकल की अधिकता से कैंसर, लकवा और हृदय रोग होने के साथ ही गुर्दा और लिवर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
वही प्रदूषित पानी पीने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
क्लोरीनेशन से केवल जीवाणु नष्ट होते हैं जबकि पेयजल में विषाक्त धातुएं खत्म नही होती हैं।
ठेकेदारों को पानी की टंकियों की नियमित सफाई के निर्देश दिए हुए हैं। जिन टंकियों का संचालन नगर निगम कर रहा है, उनकी नियमित सफाई की जाती है।
दुष्यंत कुमार, सहायक अभियंता, जलकल