मेरठ (ब्यूरो)। हर साल की तरह इस साल भी स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 के लिए नगर निगम की तैयारियां अंतिम चरण में है। पिछले साल देश में 108वीं और प्रदेश स्तर पर 17वीं रैंक पर आने के बाद निगम की नजर में शहर पूरी तरह साफ हो गया। इसके बाद अब सभी प्रमुख मानकों पर नगर निगम इस बार खरा उतरने का दावा कर रहा है। लेकिन आम जनता की नजर से शहर के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो बाकी शहर आज भी गंदगी से जूझ रहा है। इन इलाकों में स्वच्छता सर्वेक्षण के अधिकतर सभी मानक अधूरे हैं। ऐसे में दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने एक सात दिवसीय अभियान की शुरूआत की है। जिसमें लोगों से बातचीत और रियल्टी चेक के आधार पर ये जानने का प्रयास किया जाएगा कि निगम क्षेत्र के कौन-कौन-से इलाके साफ-सफाई से वंचित हैं और क्यों। इतना ही नहीं, ये भी जानेंगे कि इस बार स्वच्छता सर्वेक्षण में कूड़ा कलेक्शन और निस्तारण समेत किन-किन बिंदुओं पर निगम की तैयारी अधूरी है।

9500 अंकों के लिए अधूरे प्रयास
गौरतलब है कि इस बार स्वच्छता सर्वेक्षण कुल 9500 अंकों का है। 9500 अंकों के सर्वेक्षण में अकेले 1705 अंक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की श्रेणी के हैं। इस श्रेणी में मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी सेंटर, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट, लीगेसी वेस्ट प्लांट, सीएंडडी वेस्ट प्लांट शामिल हैं। लीगेसी वेस्ट प्लांट को छोड़ दें तो बाकी सुविधाएं नदारद हैं। वहीं महानगर में प्रतिदिन उत्सर्जित कूड़े का निस्तारण 60 प्रतिशत से कम पाया जाता है तो सर्वेक्षण में शून्य अंक दिया जाएगा। यानि 60 प्रतिशत से ज्यादा कूड़े का निस्तारण करना अनिवार्य है लेकिन अपने शहर में कूड़े का निस्तारण शून्य है।

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के अंकों का ऐसे होगा बंटवारा
155 अंक गीले कचरे के प्लांट के लिए।
280 अंक गीले कचरे के निस्तारण के लिए।
155 अंक सूखे कचरे की रिसाइक्लिंग के लिए।
280 अंक सूखे कचरे के निस्तारण के लिए।
120 अंक सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट के लिए।
130 अंक मेडिकल वेस्ट निस्तारण की व्यवस्था के लिए।
150 अंक कचरे से निकले ईंट, पत्थर, मलबे से लैंडफिल करने के लिए।
160 अंक डंपिंग ग्राउंड तक कचरा पहुंचाने के लिए।
150 अंक प्लास्टिक प्रतिबंध के पालन के लिए।
100 अंक बल्क कूड़ा जनरेटर द्वारा कूड़ा निस्तारण के लिए।
25 अंक स्कूलों में गीला-सूखा कूड़ा अलग अलग निस्तारित करने के लिए।

कूड़ा कलेक्शन भी अधूरा
नगर निगम की आय बढ़ाने और जगह-जगह कूड़े के ढेर को खत्म करने के लिए तीन साल पहले डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के एवज में यूजर चार्ज वसूलने की प्रक्रिया शुरू की थी। मगर तीन साल बाद कुल 90 में से 73 वार्डों में ही डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन शुरू हो पाया। लेकिन इन वार्डों में भी 40 फीसदी से ज्यादा कूड़ा कलेक्शन नहीं हो पा रहा है। दिल्ली रोड और सूरजकुंड वाहन डिपो के 73 वार्ड बीवीजी कंपनी के पास हैं, जबकि कंकरखेड़ा वाहन डिपो के 17 वार्ड खुद निगम के पास हैं। लेकिन अधिकतर वार्ड में कूड़ा कलेक्शन अभी तक शत-प्रतिशत नहीं है। खासतौर पर उन मोहल्लों में जहां कि गलियों में कूड़ा कलेक्शन गाड़ी पहुंच ही नहीं पाती है।

इन कमियों पर ध्यान देने की जरूरत
नगर निगम को पिछले साल जीएफसी (गार्बेज फ्री सिटी) वन स्टार और ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) प्लस-प्लस प्रमाण-पत्र मिला है लेकिन शौचालयों पर लगा ताला और जगह-जगह कूड़ा आज भी फैला हुआ है।

निगम क्षेत्र में 146 अस्थायी खत्तों को खत्म करना था, मगर ये काम भी अधूरा पड़ा है।

डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन शत-प्रतिशत नहीं हो सका है।

220 एमएलडी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट होने के बाद भी शहर में सीवेज निस्तारण और जलभराव की समस्या को दूर नहीं हो पाई है।

लोहियानगर डंपिंग ग्राउंड होने के बाद भी शहर में प्रतिदिन 900 मीट्रिक टन कचरे का शत-प्रतिशत निस्तारण नही।

डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन यूजर चार्ज की वसूली भी बहुत जरूरी है, लेकिन अभी तक यूजर चार्ज शुरू ही नहीं हुआ है।

मंगतपुरम, लोहियानगर, मार्शल पिच, नंगलाताशी आदि इलाकों के डंपिंग ग्राउंड पर लीगेसी कूड़ा जमा है।

शहर में जलनिकासी की समस्या है। 300 से अधिक छोटे-बड़े खुले नाले हैं, जिनमें बहने वाला कूड़ा और गोबर जलनिकासी की बड़ी बाधा है।

लोहियानगर और मंगतपुरम में लगे कूड़े के पहाड़ को कम करने की कवायद अधूरी पड़ी है।

इनका है कहना
हमारे क्षेत्र में जगह-जगह कूड़ा आम सी बात है। एक अस्थाई खत्ता था, जो कभी-कभी साफ होता है बाकि पूरे साल कूड़े से अटा रहता है।
चांद

कूड़ा कलेक्शन के लिए लगाए गए डस्टबिन ही हमेशा ओवर फ्लो रहते हैं। सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा कलेक्शन बॉक्स ही नहीं हैं।
लोकेश चंद्रा

निगम को शहर में जगह-जगह रखे डस्टबिन पर गंभीरता से नजर रखनी चाहिए, कई-कई सप्ताह तक ये डस्टबिन खाली नहीं होते हैं।
अकरम गाजी

स्वच्छता सर्वेक्षण में इस बार बेहतर परिणाम होंगे। कई नए प्रयास इस बार किए गए हैं। कूडा निस्तारण के लिए अंडर ग्राउंड डस्टबिन, विलोपित कूड़ा स्थल जैसी कवायद की गई हैं।
डॉ। हरपाल सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी