मेरठ (ब्यूरो)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सरस्वती शिशु मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा आयोजित की जा रही है। कथा के अंतिम दिवस साध्वी पद्महस्ता भारती ने रूक्मिणी विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने इस प्रसंग में रूक्मिणी रूपी जीवात्मा का अपने प्रभु प्रियतम के प्रति विरह दर्शाया। साथ ही, यह भी प्रकट किया गया कि कैसे आत्मा की पुकार पर वह परमात्मा प्रभु उसे समस्त बंधनों से स्वतंत्र कर अपने कभी न टूटने वाले प्रणय सूत्रों में बांध लेते हैं।
राजा परीक्षित का प्रसंग सुनाया
साध्वी ने कहा कि राजा परीक्षित, भय व असुरक्षा से ग्रस्त हैं। जिसके समक्ष हर क्षण मृत्यु खड़ी थी। फिर भी परीक्षित की मुक्ति केवल हरि चर्चा या कृष्ण लीलाओं को श्रवण करने मात्र से नहीं हुई थी, अपितु पूर्ण गुरु श्री शुकदेव जी महाराज के द्वारा प्रभु के तत्व रूप को अपने अंदर जान लेने पर हुई थी। उन्होंने कहा कि शास्त्रानुसार अज्ञानता व सभी संशयों का नाश गुरु द्वारा दिव्य नेत्र प्राप्त होने पर ही होता है।
कृष्ण-अर्जुन का दिया उदाहरण
साध्वी ने भगवान कृष्ण व अर्जुन का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन का मोह व मोहजनित संशय नष्ट करने हेतु भी उसे यही कहा था। मैं तुझे दिव्य चक्षु प्रदान करता हूं। दिव्य चक्षु से परमात्मा के शाश्वत स्वरूप का दर्शन करते ही, उसकी समस्त दुर्बलताएं ऐसे विलीन हो गई, जिस प्रकार सूर्य के उदित होने पर कुहासा छट जाता है।
मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया था
राजा परीक्षित को भी शुकदेव जी ने ब्रह्मज्ञान प्रदान कर, दिव्य नेत्र जागृत कर उनके लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया था। साध्वी ने बताया कि दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आशुतोष महाराज द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर, असंख्य लोगों ने परीक्षित की ही तरह मुक्ति के मार्ग को पाया है।
भजनों पर झूमे भक्त
इस मौके पर भाव विभोर करने वाले मधुर संगीत से ओत-प्रोत भजन संकीर्तन को सुनकर श्रद्धालु मंत्र मुग्ध होकर झूमने को मजबूर हो गए। इस अवसर पर साध्वी पद्मप्रभा भारती, साध्वी अभिनंदना भारती, साध्वी बोध्या भारती, साध्वी सुमन भारती व गुरुभाई गौतम आदि ने भजन गाए।