- मेरठ में मैगी का मंथली कारोबार 80 लाख से एक करोड़

- सिटी में मैगी के होलसेलर की संख्या करीब 40

- कई रिटेल की दुकानों में पिछले एक हफ्ते से नहीं बिकी मैगी

- पेरेंट्स ने भी बच्चों को मैगी खाने से किया इनकार

- पेरेंट्स बच्चों के लिए ढूंढ रहे हैं दूसरे ऑप्शन

Meerut : क्ख् साल का टिंकू पिछले एक हफ्ते से मैगी खाने की जिद कर रहा है, लेकिन उसकी मम्मी बनाकर नहीं दे रही है। ताज्जुब की बात तो ये है कि जो मैगी के पैकेट घर में रखे हुए थे, उन्हें भी वापस दुकानदार को देकर आ गई हैं। ये कहानी सिर्फ रिंकू या उसकी मदर नहीं बल्कि हजारों परिवारों की कहानी है। जबसे मैगी में मिलावटी हानिकारक तत्व मिले हैं। लोगों में मैगी के प्रति तब से और डर बैठ गया है, जब से उन्होंने माधुरी दीक्षित तक को इस बाबत नोटिस मिलने की खबरें पढ़ी हैं। वैसे मेरठ जैसे शहर में पिछले दस दिनों में मैगी के कारोबार में काफी गिरावट देखी गई है। लोग मैगी के इस प्रकरण को अपने-अपने नजरिये से देख रहे हैं

ख्0 से फ्0 फीसदी तक गिरा कारोबार

जब से मैगी के बारे में लोगों ने सुना है, तब से लोगों ने मैगी को हाथ लगाना तक बंद कर दिया है। दुकानों पर मैगी का स्टॉक वैसा ही पड़ा है। जैसा कि एक या दो हफ्ते पहले था। दुकानदार अमित गुप्ता ने बताया कि पिछले एक हफ्ते से उनके यहां पर एक भी मैगी का पैकेट नहीं बिका। वरना रोजना मेरी दुकान से 80-80 पैकेट के दो कार्टन बॉक्स बिक जाते थे। वहीं सिटी बेकर्स के मालिक जय किशन के अनुसार हमारी दुकान पर करीब फ्0 फीसदी का असर पड़ा है। इसका रीजन है लोगों का ज्यादा अवेयर होना है। वैसे भी डेली मीडिया में आ रहा है। इसलिए लोग भी थोड़ा बच रहे हैं। वैसे मुझे नहीं लगता है नेस्ले जैसी कंपनी कंज्यूमर्स के कोई धोखा करेगी। क्योंकि नेस्ले का ये प्रोडक्ट काफी सालों से हिट है और हर घर में पाया जाता है।

80 से एक करोड़ रुपए तक कारोबार

वहीं होलसेल मार्केट में मैगी के कारोबार के बारे में जानकारी हासिल की गई तो मंथली कारोबार 80 से एक करोड़ रुपए तक का है। होलसेलर अनिल कुमार ने बताया कि अब से क्0-क्ख् दिन पहले तक मैगी से बैटर कोई प्रोडक्ट नहीं था लोगों के लिए, लेकिन जब से ये मामला सामने आया है, तब से लोगों के मन से हट गया है। होलसेल मार्केट में करीब मंथली कारोबार एक करोड़ रुपए तक का है। वैसे इससे ज्यादा भी हो सकता है, क्योंकि रिटेल का कारोबार भी अलग से है। वहीं होलसेलर वैभव की मानें तो उनके यहां तो पिछले एक हफ्ते से मैगी की डिमांड ही खत्म हो गई है। अगर सिटी में मैगी के होलसेलर की बात की जाए तो संख्या ब्0 के करीब है।

नहीं उठा रही कंपनी माल

कई रिटेल स्टोर्स ऐसे हैं, जहां मैगी की बिक्री पूरी तरह से जीरो हो गई है। ऐसे में वो माल वापस करने को कह रहे हैं तो डिस्ट्रीब्यूटर और कंपनी माल नहीं उठा रही है। एल्फा पेस्ट्री शॉप के मालिक अमित गुप्ता ने बताया कि मैं डिस्ट्रीब्यूटर और कंपनी को कई बार फोन कर मैगी उठाने के लिए कह चुका हूं, लेकिन कोई माल नहीं उठा रहा है। डिस्ट्रीब्यूटर सभी दुकानदारों का समझाने में जुटे हैं कि सब क्भ् दिनों में ठीक हो जाएगा।

वापस कर रहे हैं लोग मैगी

वहीं दुकानदारों को लोग मैगी वापस करने के लिए आ रहे हैं। दुकानदार अरुण कुमार ने बताया कि मैगी को लेकर कई दिक्कतें सामने आने लगी हैं। जो लोग अपने घरों में महीने भर का स्टॉक लेकर रखते हैं वो वापस करके चले गए हैं। अधिकतर लोगों को उनके बदले या तो दूसरा सामान देना पड़ा या फिर पैसे वापस करने पड़े। कोई भी मैगी को अपने घर पर रखने को तैयार नहीं है।

बच्चों को मैगी बिल्कुल मना

वहीं पेरेंट्स भी मैगी को पूरी तरह से सतर्क हो गए हैं। रजबन निवासी सुनील पाली का कहना है कि बच्चे रोज मैगी खाते हैं। इसलिए मैं वॉलमार्ट से महीनेभर का स्टॉक लाकर रख देता हूं। जब से मैगी के बारे में पता चला है कि तब से सभी पैकेट को अलग रख दिया गया है। बच्चों समेत सभी फैमिली मेंबर्स को इसे खाने के लिए मना कर दिया है। नौचंदी निवासी शीलू शर्मा कहती हैं, मेरी बेटी और बेटा दोनों ही मैगी के बड़े दीवाने हैं। भले ही उन्हें रोटी न मिले लेकिन मैगी मिल जाए तो ठीक है। लेकिन जब से मैगी के बारे में अखबार में पढ़ा है तब से मैगी को घर में लाने की पाबंदी लगा दी गई है।

ये है मामला

पिछले दिनों यूपी के बाराबंकी जिले से मैगी के क्ख् अलग-अलग सैंपल लेकर केंद्र सरकार की कोलकाता स्थित लैब में टेस्ट कराया गया। रिपोर्ट आई तो मैगी के इन पैकेटों में लेड की मात्रा क्7.ख् पा‌र्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) पाई गई है, यह स्वीकार्य सीमा से लगभग सात गुना ज्यादा है। एफडीए के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल डीजी श्रीवास्तव के मुताबिक मैगी नूडल्स में लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामैट (एमएसजी) की मात्रा खतरनाक स्तर पर पाई गई है। लेड की स्वीकार्य योग्य सीमा 0.0क् पीपीएम से ख्.भ् पीपीएम के बीच है। एफडीए ने ये सारी जानकारी एक चिट्टी लिख एफएसएसएआई को दी थी।

तो कुछ इस तरह की है मैगी की सच्चाई

मैगी बनाने वाली कंपनी कई तरह का दावा करती है कि मैगी में सीसे यानी लेड (एक तरह का मेटल) की मात्रा 0.0क् से ख्.भ् पीपीएम के बीच होती है। जबकि हकीकत ये है कि जब जांच की तो मैगी में क्7.ख्0 पीपीएम लेड पाया गया। आपको बता दें कि लेड या सीसा का इस्तेमाल मकान बनाने, बैट्री, रेडिएशन प्रोटेक्शन, बंदूक की बुलेट और छर्रे बनाने में होता है।

लेड वाली मैगी से होने वाली बीमारियां

- किडनी फेल होने का खतरा

- बच्चों की हड्डियों और मांसपेशियों का विकास रुक जाना।

- नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचना।

- एकाग्रता में कमी आती है।

- सीखने की क्षमता घटती है ओर दिमाग कमजोर होता है।

ये दावा भी हुआ फेल

मैगी के पैकेट पर आपको साफ लिखा हुआ नजर आएगा कि नो एडेड एमएसजी (मोनोसोडियम ग्लूटामेट)। जबकि जांच मे एमएसजी पाया है। एसएसजी एक तरह का केमिकल एसिड है। जो स्वाद चढ़ाने के लिए यूज होता है। इससे कई तरह की बीमारियों का खतरा होता है।

एमएसजी वाली मैगी से होने वाली बीमारियां

- सबसे ज्यादा बच्चों को नुकसान करता है।

- माईग्रेन सिरदर्द

- हार्टबीट नॉर्मल से ज्यादा रहना

- लाल दाने और खुजली

- कैंसर

- पसीना आना

- हाई ब्लड प्रेशर

- चेहरे की स्किन डेड पड़ना।