मेरठ (ब्यूरो)। यातायात संचालन के साथ ही सड़क पर सुरक्षित सफर की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी संभागीय परिवहन विभाग के कंधों पर है। इतना ही नहीं, विभाग के द्वारा फिटनेस के तहत पूरी जांच के बाद वाहनों को सड़कों पर संचालन के लिए उतारा जाता है। वहीं वाहन चलाने की योग्यता परखने के बाद आवेदक को डीएल जारी करने का प्रोसेस पूरा होता है। ये तो सभी जानते हैैं। मगर आप जो नहीं जानते वो मैैं बताता हूं कि कैसे हर साल हाईटेक व्यवस्थाएं लागू होने के बावजूद विभाग की कार्यप्रणाली में जरा-सा बदलाव भी नहीं हुआ है। आज भी वाहनों की फिटनेस से लेकर डीएल प्रक्रिया तक में दलाल राज हावी है। जिसके चलते अधूरे मानकों पर ही वाहनों की फिटनेस कर दी जाती है। वहीं, बिना ड्राइविंग टेस्ट के ही डीएल जारी कर दिया जाता हैऔर तो और ड्राइविंग स्कूल से लेकर पॉल्यूशन सेंटर तक की लापरवाही के चलते अनट्रैंड ड्राइवर और आयु पूरी कर चुके वाहन सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं। इसी के मद्देनजर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने 'अधूरे मानक अनफिट सफरÓ नाम से एक सात दिवसीय अभियान शुरू किया है। जिसमें रियल्टी चेक और लोगों से बातचीत के आधार पर ये जानने की कोशिश की जाएगी कि आखिर संभागीय परिवहन विभाग में व्यवस्था क्यों नहीं सुधरती और जो ओवरऑल खामियां हैैं, उन्हें दूर करने के लिए आज तक क्या-क्या प्रयास किए गए हैैं।
नाम का ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल
गौरतलब है कि करीब पांच साल पहले ड्राइविंग लाइसेंस के आवेदकों को ड्राइविंग ट्रेनिंग और बेसिक यातायात के नियमों की जानकारी देने के लिए साकेत में ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल खोला गया था। इस कार्यालय में डीएल आवेदकों की ड्राइविंग स्किल जांच के लिए बकायदा ड्राइविंग ट्रैक भ्ीा तैयार किया गया था जिसको विभिन्न सेंसर से लैस होना था लेकिन आज तक यह स्कूल सिर्फ नाम का बना हुआ है। लगभग चार करोड़ रुपये की लागत से आईटीआई परिसर में बनी इस बिल्डिंग के क्लास रूमों में ईवीएम भरी हुई हैं और ट्रैक जर्जर हो चुका है। क्लास रूम में स्मार्ट बोर्ड, वाहन चलाने के लिए लाए गए हैवी व्हीकल सिम्यूलेटर तक धूल फांक रहे हैं लेकिन इनका प्रयोग नही हो रहा है।
ऑटोमेशन सिस्टम ही नहीं
मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर पर न तो ऑटोमेशन सिस्टम है और न ही आवेदक से चलवाने के लिए कोई वाहन है। अगर किसी को अपना चौपहिया वाहन का स्थाई हैवी लाइसेंस बनवाना है तो उसको अपना वाहन लेकर ही ट्रेनिंग सेंटर पहुंचना पड़ता है। जबकि नियमानुसार ट्रेक ऑटोमेशन सिस्टम से लेस होना चाहिए। ताकि आरआई अपने कमरे में बैठकर ही ट्रैक पर वाहन चलाने वाले को देख सके।
फिटनेस ट्रैक की अधूरी कवायद
वहीं करीब 7 साल पहले आरटीओ कार्यालय में वाहनों की फिटनेस के लिए फिटनेस ट्रैक तैयार किया गया था जो आज तक अधर में पड़ा हुआ है। इस फिटनेस ट्रैक को अपडेट करने के लिए 2017 में समाज कल्याण विभाग से करीब 20 लाख रुपए का बजट जारी किया गया था। जिससे ट्रैक पर आरआई केबिन, शेडो समेत कंप्यूटराज्ड सिस्टम कैमरे, सेंसर आदि लगना था। लेकिन अब तक केवल फिटनेस ट्रैक और आरआई केबिन को तैयार किया गया है। आज भी गाडिय़ों को ट्रैक पर खड़ा कर ऊपरी तौर पर ही जांचा जाता है।
ड्राइविंग टेस्ट के लिए साकेत कार्यालय में गाड़ी लेकर जाना होता है लेकिन ट्रैक पर किसी प्रकार की सुविधा नही है।
हसीन सैफी
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आज भी एजेंट की सुविधा लेनी पड़ती है। हर काउंटर पर एजेंट ही मौजूद रहते हैं।
संजीव मिश्रा
ड्राइविंग क्लास पहले पुराने कार्यालय में तो चल रही थी अब नए कार्यालय में कोई सुविधा नही है।
परू गुप्ता
डीएल और फिटनेस के लिए विभागीय स्तर पर पारदर्शी प्रक्रिया के तहत पूरी जांच करके ही डॉक्यूमेंट जारी किया जाता है। बाकि लगातार प्रयास किया जा रहा है कि जो व्यवस्थाएं हैं, वह पूरी तरह और जल्द से जल्द लागू हो।
राहुल शर्मा, आरआई