मूल आवंटी को दरकिनार कर एक प्लाट की हो गई कई बार बिक्री
म्यूटेशन कराने के लिए आए तो हुआ मामले का खुलासा
एमडीए के तत्कालीन कर्मचारियों की मिलीभगत से हुआ खेल
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MEERUT : पॉवर ऑफ अटॉर्नी का दुरुपयोग मेरठ विकास प्राधिकरण में पिछली सालों में जमकर हुआ है। अब जब म्यूटेशन (नामांतरण) की बारी आई तो खेल का खुलासा हो रहा है। मूल आवंटी को दरकिनार कर एक प्लाट की कई-कई बार बिक्री हो गई, वहीं, एक केस में तो मूल आवंटी की मृत्यु के बाद उसके नाम से पावर ऑफ अटार्नी कर दी गई। यह खुलासा तब हुआ जब आवंटी के पुत्र ने प्लाट पर दावा करते हुए प्राधिकरण में नामांतरण के लिए आवेदन किया।
हो रहा गहन परीक्षण
एमडीए सचिव राजकुमार ने बताया कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी के बिना हुई प्लाट्स की खरीद-फरोख्त में म्यूटेशन के दौरान गहन परीक्षण किया जा रहा है। मूल आवंटी को दरकिनार कर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एक ही संपत्ति के कई मालिकान बदले। ऐसे सभी केसेस को शार्ट लिस्ट किया जा रहा है। कड़ी कार्रवाई होगी।
लगातार आ रहे केसेज
मुख्तारनामे के आधार पर हुए बैनामों की जांच के आदेश जहां एमडीए सचिव राजकुमार ने दिए। वहीं दूसरी ओर म्यूटेशन के लिए आ रहे ऐसे केसेज को चिह्नित कर लिया है जिनकी खरीद-फरोख्त का आधार मुख्तारनामा है। सोमवार को भी एक व्यक्ति म्यूटेशन के लिए सचिव पर दबाव बना रहा था, पड़ताल में निकलकर आया कि इस प्लाट की पॉवर ऑफ अटॉर्नी भी चंडीगढ़ में हुई है।
गहरी हैं जड़ें
एमडीए के संपत्ति अनुभाग में इस भ्रष्टाचार की जड़ें धंसी हैं। गत वर्षो में म्यूटेशन के दौरान ऐसे प्रकरणों को नजरअंदाज किया जाता था तो वहीं अब इनके गहन परीक्षण के आदेश सचिव ने दिए हैं। हाल ही में नलिनी कुलश्रेष्ठ के केस में ग्वालियर सब रजिस्ट्रार कार्यालय के फर्जी होने की आशंका पर प्राधिकरण पुष्टि करा रहा है। जानकारों की मानें तो गत वर्षो में एमडीए कर्मचारियों की मिलीभगत के बाद मूल आवंटी को दरकिनार कर पॉवर ऑफ अटॉर्नी की बिना पर बड़े पैमाने पर संपत्ति की खरीद-फरोख्त हुई है।
केस नंबर-1
दीपक मित्तल पुत्र ओम प्रकाश मित्तल निवासी-चंड़ीगढ़ ने एमडीए को मार्च 2017 में एक शिकायती पत्र सौंपा जिसमें उसने आरोप लगाया कि उसके पिता की मृत्यु के बाद फर्जी पॉवर ऑफ अटॉर्नी करके न सिर्फ गंगानगर स्थित उच्च आय वर्ग श्रेणी के प्लॉट को कब्जा लिया गया बल्कि उसकी कई बार बिक्री भी कर दी। जानकारी के मुताबिक प्राधिकरण ने नवंबर 1990 को आवंटित प्लाट की किस्त जमा करने के लिए मूल आवंटी के चंड़ीगढ़ के पतों पर कई बार नोटिस दिए किंतु नोटिस का कोई जबाव नहीं मिला। एकाएक अगस्त 2014 में दिल्ली के यमुना विहार निवासी विजय कुमार पुत्र शिखर चंद्र, मूल आवंटी द्वारा की गई पॉवर ऑफ अटॉर्नी लेकर सामने आ गया और प्राधिकरण की तत्कालीन कर्मचारी रजनी कनौजिया के साठगांठ कर प्लाट की रजिस्ट्री करा ली। एमडीए सचिव राजकुमार की जांच में निकलकर आया कि इस प्लाट की फर्जी पॉवर ऑफ अटॉर्नी 27 अगस्त 2014 दिल्ली निवासी विजय कुमार पुत्र शिखर चंद्र के नाम दिल्ली के ही सब रजिस्ट्रार कार्यालय तीस हजारी में कर दी गई। जांच में यह भी निकल कर आया कि इस फर्जी खरीद-फरोख्त में विजय के साथ भोपाल सिंह पुत्र राम सिंह, पवन कुमार पुत्र फूल सिंह, सुमनलता पुत्री बाबूराम भी शामिल हैं। तत्कालीन कमिश्नर डॉ। प्रभात कुमार के आदेश के बाद सभी के खिलाफ थाना सिविल लाइन्स में मुकदमा दर्ज है तो वहीं कर्मचारी रजनी कनौजिया को टर्मिनेट कर दिया गया।
केस नंबर-2
गंगानगर प्लॉट नंबर के-177, मूल आवंटी सुभाष सिंह पुत्र जिले सिंह, निवासी बी-413 गंगानगर। 28 जुलाई 1999 को इस प्लाट का आवंटन सुभाष सिंह के नाम मेरठ विकास प्राधिकरण ने गंगानगर योजना के विस्तारीकरण के बाद किया। 300 मीटर के उच्च आय वर्ग श्रेणी के इस प्लाट की पॉवर ऑफ अटॉर्नी (मुख्तारनामा) सुभाष सिंह ने 11 नवंबर 2004 को अनिल मित्तल पुत्र प्रेम सुंदर मित्तल, निवासी बी-46, सम्राट पैलेस, गढ़ रोड के नाम कर दी। यह मुख्तारनामा मप्र के ग्वालियर में हुआ और प्रयोग में लाए गए स्टांप की खरीदारी दिल्ली से हुई। मुख्तारनामे की बिना पर अनिल मित्तल ने 23 अप्रैल 2005 को इस प्लाट की रजिस्ट्री विमलावती पत्नी टेकचंद्र अग्रवाल, निवासी-किला परीक्षितगढ़ के नाम कर दी। विमलावती ने एक बार फिर इस प्लाट की बिक्री 19 जुलाई 2007 को मोदीनगर निवासी मंजू देवी के नाम कर दी। और मंजू देवी ने यह प्लाट पुरानी मोहनपुरी निवासी नलिनी कुलश्रेष्ठ को 21 अप्रैल 2009 को बेंच दिया।