मेरठ (ब्यूरो)। मिसाइल अटैक और शैलिंग के बीच स्टूडेंट्स ने पोलैंड, रोमानिया और हंगरी बॉर्डर पार कर घर वापसी की जो कहानी बयां की, उसे सुनकर किसी के भी रौंगटे खड़े हो जाएंगे।
25 किमी। पैदल चली मुस्कान
केसरगंज निवासी मुस्कान सिद्दीकी खारकीव से सटे पोलटावा सिटी से एमबीबीएस कर रही हैं। उनका एमबीबीएस का पहला ही वर्ष है। मुस्कान ने बताया कि शुक्रवार रात पोलैंड से भारत लौटी तो परिवार के सदस्यों के चेहरे मुस्कान और आंखे आंसुओं से भर आई। बताया कि यूक्रेन में पोलैंड बॉर्डर पार करने के लिए वो 24 किमी। पैदल चलीं। इस दौरान खाने-पीने के लिए भी उनके पास कुछ नहीं था। एक समय तो ऐसा लगा कि घर जिंदा लौटेंगे या नहीं। मगर परिवार से मिले हौसले ने टूटने नहीं दिया और कदम मंजिल की तरफ बढ़ते रहे। बेटी घर लौटी तो उनके पिता अयाज सिद्दीकी व छात्रा मुस्कान ने भारत सरकार का शुक्रिया किया। सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने शनिवार को घर पहुंचकर छात्रा व परिवार का हौसला बढ़ाया।
बस चिप्स और पानी के सहारे रही श्वेता
गंगानगर निवासी श्वेता सैनी एयरफोर्स के हवाई जहाज से शनिवार सुबह हिंडन एयरबेस पहुंची। जहां उनके पिता डॉ। रमेश सैनी उनको लेने पहुंचे। श्वेता सैनी ने बताया कि यूक्रेन के खारकीव में युद्ध के दौरान कर्नाटक के छात्र की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद ही हम वहां से निकले। हर तरफ शैलिंग और मिसाइल अटैक के डर के बीच रोमानिया बॉर्डर तक पहुंचना नामुमकिन लग रहा था। चिप्स व पानी पीकर कई दिन तक जीने को मजबूर हुए। बस से लवीब पहुंचे, जहां से पोलैंड बॉर्डर पार करते हुए शेल्टर होम पहुंची। एटीएम कार्ड होने के बावजूद कैश नहीं निकाल सकते थे, जिससे परेशानी और बढ़ गई। साथियों के पास भी कैश खत्म हो गया। एयर अटैक के अलर्ट के चलते बज रहे सायरन सुन लग रहा था कि अगली मिसाइल ऊपर ही गिरने वाली है। मगर बॉर्डर पार किया तो खुलकर सांस ली और लगा कि अब घर पहुंच जाऊंगी।
माइनस छह डिग्री में हाथ-पैर सुन्न
रोहटा रोड सरस्वती विहार निवासी स्नेहाशीष मालाकर भी दो दिन पहले अपने घर पहुंचे। इवानो फ्रंकिवस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रहे स्नेहाशीष ने बताया 24 फरवरी को यूक्रेन में हमले शुरू हो गए थे। हम साथी छात्रों के साथ 26 फरवरी को बसों से रोमानिया बॉर्डर के लिए निकले। मगर बॉर्डर पर खुले आसमान के नीच माइनस छह डिग्री में 24 घंटे गुजारने पड़े तो पूरा शरीर सुन्न हो गया। पहले कभी ऐसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा था। साथ की छात्राएं जब बेहोश होने लगीं तो लगा कि सफर कहीं यहीं खत्म न हो जाए। मगर यूक्रेन की एनजीओ ने छात्राओं का इलाज किया। मगर बॉर्डर पर 20 यूक्रेनियन के साथ दो भारतीय छात्रों को ही बॉर्डर पार कराया जा रहा था। जिससे समस्या और बढ़ गई। अगले दिन रोमानिया बॉर्डर पार किया तो जान में जान आई। यूरेशिया कंपनी के सीईओ डॉ। मसरूर ने छात्रों की मदद की। स्नेहाशीष के पिता संतु मालाकर आर्मी से रिटायर्ड हैं। उन्होंने भारत सरकार का शुक्रिया करते हुए कहा कि थोड़ा देर जरूर हुई, लेकिन छात्र सुरक्षित अपने घर पहुंच गए।
30 किलो सामान लादकर चले ताबिश
एल-ब्लॉक चुंगी स्थित इकबालनगर निवासी मोहम्मद ताबिश व उनके चचेरे भाई शारिकुल इस्लाम मेरठ पहुंच गए हैं। शारिकुल इस्लाम ने बताया 30 किग्रा सामान लेकर रोमानिया बॉर्डर पर पहुंचे। जाम के कारण 11 किमी। पहले ही उतरना पड़ा, जिसके बाद पैदल चलकर बॉर्डर पार किया। वो यूक्रेन की राजधानी कीव से एमबीबीएस कर रहे हैं। एक तो युद्ध के हालात और दूसरी तरफ पीने का पानी भी माइनस 6 डिग्री में जम गया। जिससे पीने के पानी को भी तरसना पड़ा। पिता मो। असलम ने बताया परिवार के सभी सदस्य परेशान थे, युद्ध के हालातों में बच्चों का घर तक पहुंचना किसी जंग से कम नहीं था।
पोल्टावा से बस से निकले तो बॉर्डर पर पहुंचे पैदल
पोलटावा से एमीबीबीएस कर रहे मोहम्मद ताबिश ने बताया कि वो 2 मार्च को भारत पहुंचे। रोमानिया बॉर्डर तक का रास्ते में सांसें अटकी ही रही। मिसाइल के धमाकों की आवाज से हर पल मौत का डर सता रहा था। कौैन जाने कब कौन सी मिसाइल या तोपे के गोले का निशाना हम बन जाएं। वहीं माइनस टेंप्रेचर में कई सौ किमी। का सफर तय किया। मुंह सुखने लगा तो पीने के पानी का भी इंतजाम नहीं था। ऐसे में भूखे-प्यासे हम साथी छात्रों के पास बस एक-दूसरे को संभालने के लिए हौसला ही बचा था। परिजनों से लगातार फोन पर बात हो रही थी तो लग रहा था कि बस घर पहुंच जाएं। शुक्र रहा कि रूस ने छात्रों की बसों पर लगे तिरंगे का सम्मान किया और बसों को निशाना नहीं बनाया।
ऑपरेशन गंगा बना छात्रों के लिए वरदान
रूस और यूक्रेन के बीच जब युद्ध शुरू हुआ तो लगा कि ये क्या हो गया। अब घर कैसे लौटेंगे, लौटेंगे भी कि नहीं। हर तरफ धमाके और बज रहे सायरन दिमाग को सुन्न कर रहे थे। ऐसे में सभी स्टूडेंट्स एक-दूसरे को हिम्मत बंधा रहे थे। युद्ध के हालातों में भारत सरकार द्वारा चलाया गया गया अभियान ऑपरेशन गंगा यूक्रेन में फंसे स्टूडेंट्स के लिए वरदान साबित हुआ। मगर जब छात्रों ने भारत सरकार के इस अभियान की सराहना की है। मेरठ लौटी अनुष्का ने कहा कि ऑपरेशन गंगा के कारण छात्रों को बिना टिकट और बिना खर्च के भारत लाया गया। देश के 20 हजार से ज्यादा छात्रों को लाने में इस अभियान की अहम भूमिका रही।