मेरठ (ब्यूरो)। महिला सशक्तिकरण की बात हो तो बेटियां फाउंडेशन का नाम हर जुबान पर खुद ही आ जाता है। ये फाउंडेशन 2004 से बेटियों के उत्थान के लिए काम कर रहा है। बात चाहे बेटियों की पढ़ाई की हो या उनके करियर की, उनके अधिकारों की हो या उनकी काउंसलिंग कीफाउंडेशन की संस्थापक अंजू पांडेय उनके साथ खड़ी दिखती हैं। आज फाउंडेशन के साथ 30 महिलाएं जुड़कर बेटियों को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैैं।
एक पल ने बदली जिंदगी
बात साल 2004 की है, जब मैं अपने पैट डॉग को डॉक्टर के लेकर गई थी। तब मैनें देखा कि वहां खड़े एक सज्जन बुरी रो रहे थे। हमने डॉक्टर से पूछा इसको क्या हुआ, तो डॉक्टर ने कहा इसके तीन बच्चे हैं और उनका नाम स्कूल से काट दिया गया है। जब मैैंने पूछा क्यों तो उनका जवाब था कि ये उनकी फीस जमा नहीं कर पा रहा था इसलिए। मैैं हतप्रभ रह गई और इसी पल ने मेरी सोच और जिंदगी दोनों बदल दी। अगले दिन उसके साथ उस स्कूल पहुंचे गई। फीस की डिटेल लेकर तीनों बच्चों की फीस जमा की और हर साल करती रही। आज वो बच्चे जॉब कर रहे हैैं।
झुग्गी मेें जा पहुंची
2015 की बात है, जब एक रोज मैं जागृति विहार स्थित पीवीएस मॉल के सामने से जा रही थी। मेरी नजर उन बच्चियों पर पड़ी जो कूड़े के ढेर पर बैठकर छोटी-छोटी पॉलिथिन में कूड़ा-करकट इकट्ठा कर रही थी। एक बारगी तो लगा कि पूरे देश का यही हाल है, जाने दो। मगर अगले ही पल मैैंने सोचा क्या इन बच्चों को पढऩे का हक नहीं, क्या ये बच्चे देश का भविष्य नहीं बन सकते। बस फिर क्या था मैैं अगले ही दिन अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ उस झुग्गी में पहुंच गई, जहां से वो बच्चियां बिलॉन्ग करती थी।
ये हमारे लिए कमाते हैैं
हमने वहां उनके मां-बांप से पूछा कि आप इन बच्चियों को स्कूल में पढऩे क्यों नहीं भेजते। तो उनका कहना था कि ये बिना पढ़े ही पैसा कमाकर लाते हैैं तो पढ़ाने का क्या फायदा। जो पैसा ये लाते हैैं, उससे पूरा घर चलता है। फिर एकदम से वो सभी चिल्लाने लगे और कहने लगे कि तुम लोग जाओ और अपना काम करो।
फिर एक तरकीब निकाली
हम सभी फ्रेंड्स वहां से तो चले आए लेकिन मेरे मन में था कि चाहे कुछ भी हो जाए, इन बच्चियों को हमें शिक्षित करना है। इनकी लाइफ कूड़े के ढेर पर नहीं गुजरेगी। फिर हमने एक तरकीब निकाली और जहां वो बच्चियां हर रोज आया करती थी, हम भी वहीं सड़क किनारे जाकर बैठने लगे। बच्चियों को बातों ही बातों में दोस्त बनाया और उनके साथ खेलने और खाना खाने लगे। बच्चे रोज सेम टाइम पर वहां आते और हमारे साथ घंटों बिताते। हमें उन्हें खिलाते और खेल-खेल में उनकी भाषा सुधारने और नैतिक शिक्षा देने का काम करने लगे। बस, यहीं से उनकी पढ़ाई का सिलसिला शुरू हो गया। उन बच्चियों के साथ और भी बच्चे आने लगे।
बना ली बेटियां फाउंडेशन
अब लगा कि इस काम को बड़े लेवल पर करना है, तो और लोगों को भी जोडऩा पड़ेगा। फिर मैैंने अपने पांच फ्रेंड्स के साथ मिलकर बेटियां फांउडेशन बनाई। धीरे-धीरे फाउंडेशन के जरिए 30 महिलाएं को जोड़ा। आज की डेट की बात करूं तो हमारा फाउंडेशन 170 बेटियों को उनके पैरों पर खड़ा करने में अहम भूमिका निभा चुका है। 674 बेटियों को स्कूलों में पहुंचाने का काम हम कर चुके हैं। वहीं, 287 बेटियों की काउंसलिंग कर उनकी शादियां टूटने से बचाई हैैं। वहीं, 638 ऐसे परिवारों की काउंसिलिंग की, जिनमें बेटियों से ज्यादा बेटों को महत्व दिया जाता था।
फाउंडेशन में चार ग्रुप्स बनाए
इसके बाद मैैंने बेटियां फाउंंडेशन के चार ग्रुप्स में डिवाइड किया। पहला ग्रुप बच्चों की शिक्षा को लेकर काम करता है। दूसरा ग्रुप बेटियों को उनके अधिकार और उनके कर्तव्य सिखाने का। तीसरा समूह बाल विवाह, घरेलू हिंसा आदि का काम करता है। वहीं, चौथा ग्रुप वृद्ध महिलाओं के लिए बनाया।
जूडो-कराटे की ट्रेनिंग
आज फाउंडेशन बेटियों को बांस, जूट, पेपर बैग, मोमबत्ती बनाने के साथ ही डेयरी फार्म, ब्यूटी पार्लर आदि का कोर्स कराता है ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। वहीं बेटियों की आत्मरक्षा के लिए स्कूल, कॉलेजों, चौपालों, पार्कों में जूडो कराटे की ट्रेनिंग भी देते हैैं। अभी तक फाउंडेशन 5000 से अधिक लड़कियां को ट्रेंड कर चुका है। फाउंडेशन न केवल महिलाओं को सशक्त बनाने का काम कर रही है बल्कि किस जरूरत में किस हेल्पलाइन का इस्तेमाल करना उन्हें इस बारे में भी जागरूक करता है। इसके अलावा महिलाओं और बालिकाओं के लिए चलने वाले सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने का काम भी फाउंडेशन आज बाखूबी कर रही है।