मेरठ (ब्यूरो). उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें, चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिए मेरठ में खेल सुविधाओं के संदर्भ में दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां फिट बैठती हैं। दरअसल, यूपी सरकार की हार्दिक इच्छा है कि हमारी झोली में ढेर सारे ओलंपिक मेडल हों। हमारे खिलाड़ी देश-विदेश में राज्य का नाम रोशन करें। इस ख्वाहिश का सम्मान है, लेकिन इसके लिए कम से कम बुनियादी सुविधाओं का इंतजाम तो होना चाहिए। दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि मेरठ में प्रतिभा की नहीं, संसाधनों की कमी है। सरकार इच्छाशक्ति दिखाए, बुनियादी सुविधाओं का इंतजाम करे तो मेरठ के खिलाड़ी पदकों का ढेर लगा देंगे।

इंफ्रास्ट्रेक्चर का अभाव
इंतजामों के अभाव के बाद भी मेरठ ने विभिन्न खेलों में प्रतिभावान खिलाड़ी दिए हैं। बावजूद इसके यहां खेलों के इंफ्रास्ट्रेक्चर की स्थिति दयनीय है। इसकी सच्चाई मेरठ के बेसिक स्कूलों में खेलों की स्थितियों से पता लगाई जा सकती है। जिला स्तर पर छह साल से न तो कोई खेल अनुदेशक है और न ही स्कूलों में खेल के मैदान। कमरों में कैद खेल के सामान भी अब तो खिलाडिय़ों का इंतजार करने लगे हैं।

खेलो इंडिया के दावे फेल
बता दें कि अभी आम बजट में भी सरकार ने खेलो इंडिया को बढ़ावा देने के लिए बजट को बढ़ाया है। मेरठ के प्रियम गर्ग, शिवम मावी, करण शर्मा, कार्तिक जैसे खिलाडिय़ों पर आईपीएल में दूसरी बार बोली लगी है। इंतजामों के अभाव में भी ओलंपिक में प्रियंका गोस्वामी, वंदना कटारिया, सीमा पूनिया, सौरभ चौधरी, विवेक चिकारा जैसे खिलाड़ी जनपद का नाम रोशन कर चुके हैं। वाबजूद इसके बेसिक स्कूलों में खेल न हो पाने से बेस कमजोर हो रहा है।

खेल अनुदेशक का इंतजार
जिला स्तर पर 2016 तक दो खेल अनुदेशक रहे हैं, लेकिन उसके बाद से सरकार ने कोई नियुक्ति नहीं की है। 12 ब्लॉकों में ब्लॉक वाइज 12 अनुदेश होने चाहिए, लेकिन ये पद भी अपने पदाधिकारी का इंतजार कर रहे हैं। जनपद के 600 सौ जूनियर स्कूल हैं। जिनमें करीब सवा लाख बच्चों के लिए खेल प्रतियोगिताएं आयोजित कराई जाती हैं, लेकिन अभी तक 60 प्रतिशत अनुदेशकों की नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं।

कॉमन मैदान के भरोसे 20 स्कूल
600 जूनियर व 900 उच्च माध्यमिक स्तर के स्कूलों में पौने तीन लाख स्टूडेंट्स हैं, लेकिन 20 स्कूलों में ही कॉमन मैदान हैं। जबकि नियम यह है कि प्रत्येक स्कूल में चार सौ गज का कॉमन मैदान होना चाहिए। जहां पर प्रतियोगिताएं आयोजित कराई जा सकें। लेकिन इस ओर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है।

नहीं आ रही 2016 से ग्रांट
पहले यहां दस पैसा शुल्क बच्चों से खेलों की फीस के तौर पर लिया जाता था जो अब बंद हो चुका है। 2016 तक मंडल स्तर तक की प्रतियोगिता के लिए 50 हजार रुपये साल की ग्रांट आती थी। वह भी अब बंद हो चुकी है। सूत्रों की मानें तो 10 हजार रुपये हर साल खेल सामग्री के लिए आता है, लेकिन स्कूल उस पैसे को अपनी अन्य जरूरतों में ले लेते हैं।

कोट्स
अब मुझे स्कूल में भेज दिया गया है। पहले अनुदेशक के रूप में थी। उस समय खेल प्रतियोगिताएं होती थीं तो स्टेट लेवल के काफी खिलाड़ी निकले थे, पर अब खेल नहीं हो पा रहे हैं।
अनु त्यागी, पूर्व खेल अनुदेशक, जिला स्तर

पहले विभिन्न प्रतियोगिताएं होती थीं। कोविड के चलते दो सालों से नहीं हो पा रही हैं। वहीं काफी स्कूलों में शिक्षक भी नहीं हैं।
देवेंद्र शर्मा, पूर्व शारीरिक व्यायाम शिक्षक

इन दिनों में अधिक प्रतियोगिताएं नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में खिलाडिय़ों का निकलना मुश्किल होने लगा है। पहले मंडल, ब्लॉक व स्टेट लेवल तक की हर साल प्रतियोगिताएं आयोजित होती थीं जो अब नहीं हो पा रही हैं।
मनीषा, शारीरिक व्यायाम शिक्षिका

बीते दो सालों से कोविड के चलते स्कूल बंद थे। हालांकि इससे पहले भी खेल प्रतियोगिताएं पूरी नहीं हो पाई हैं। अब सब खुल रहा है उम्मीद है, कुछ होगा।
अनुराधा, शारीरिक व्यायाम शिक्षिका

वर्जन
खेल अनुदेशकों की नियुक्तियां शासन लेवल का मामला है, लोकल नहीं है। कोविड के बाद स्कूल खुल रहे हैं। धीरे-धीरे सब खुलेगा तो प्रतियोगिताएं करवाई जाएंगी।
-योगेंद्र कुमार, बीएसए