सस्पेक्टेड मरीजों से करें मानवीय व्यवहार, पैनिक न फैलाएं

- मनोचिकित्सक बोले, सस्पेक्टेड मरीजों का हौसला बढाएं, उन्हें डराने की जरूरत नहीं

Meerut। कोरोना वायरस का खौफ इन दिनों समूची दुनिया में छाया है। हालत यह है कि दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस के मरीज मिलने से लॉकडाउन और हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति हो गई है। इसके साथ ही भारत में भी कोरोना से निपटने के लिए जंग जारी है। लेकिन इस जंग में मानवीयता के कई पैमाने भी ध्वस्त हो रहे हैं। कोरोना के मरीज मिलने पर लोग सतर्क रहने के बजाए अमानवीय व्यवहार करते दिख रहे हैं। उनसे ऐसे दूरी बना रहे हैं या उनसे कुछ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे कोरोना के मरीजों ने कोई अपराध किया हो। मनोचिकित्सकों की मानें तो हमें सकारात्मक व्यवहार करने की जरूरत है। कोरोना से डरने की नहीं बल्कि डटकर मुकाबला करने की जरूरत है, लेकिन हालत यह है कि कोरोना के मरीज से सकारात्मक व्यवहार करने के बजाए लोग उनसे दोयम दर्जे तक का व्यवहार कर रहे हैं।

मरीज को गिल्ड न फील कराएं

काउंसलर डॉ। अनीता मोरल कहती हैं कि आमतौर पर कोरोना या उससे सस्पेक्टेड मरीजों से दोयम दर्जे का व्यवहार समाज ही शुरू कर देता है। मरीजों का अक्सर ये फील होता है कि उन्होंने कोई अपराध कर दिया है। इससे उन्हें अपराधबोध होने लगता है। जो वाकई गलत है। इसलिए जरूरी है कि मरीजों के साथ मानवीय व्यवहार करें, साथ ही सकारात्मक सोच रखें।

ताकि बीमारी न छिपाएं मरीज

अक्सर ऐसी संक्रमित बीमारियों के मरीज समाज में छुआछूत होने की आशंकाओं के चलते बीमारियों को छिपा लेते हैं। काउंसलर डॉ। अनीता मोरल कहती हैं कि हमें मरीजों के साथ ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है कि उनके दिल में डर न रहे। साथ ही ऐसे सस्पेक्टेड मरीज अपनी बीमारियों को छिपाएं नहीं बल्कि, चेकअप कराने के लिए आगे आएं। उन्होंने कहाकि एक बात को समझना होगा कि हर छींक कोरोना वायरस नहीं है इसलिए सतर्क रहें, लेकिन पैनिक बनाने की जरूरत नहीं है। बस सकारात्मक रवैया अपनाएं।

मरीजों का दें मोरल सपोर्ट

मनोचिकित्सक डॉ। विकास सैनी ने बताया कि कोरोना वायरस से डरने की जरूरत नहीं है। हालांकि, संक्रमण से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंस जरूरी है, लेकिन पैनिक न करें। मरीजों को मोरल सपोर्ट की जरूरत होती है ताकि उसकी इम्यूनिटी को स्ट्रांग रहे। मरीज खुद ही आइसोलेशन में रहें। ऐसे में समाज की भी जिम्मेदारी है मरीज को डराएं नहीं, बल्कि ढांढस बंधाते रहे।

हमेशा पॉजिटिव रहें

डॉ। अनीता मोरल कहती हैं कि मरीजों के साथ पॉजिटिव रहने की जरूरत है। आपके आसपास अगर कोई सस्पेक्टेड मरीज है उसे ढांढस बंधाएं। ना कि ताने देकर उसका आत्मविश्वास कमजोर करें। ध्यान रखें ये बीमारी किसी को भी हो सकती है। अफवाहों पर भी ध्यान न दें। डॉ। मनोचिकित्सक डॉ। विकास सैनी कहते हैं कि मरीजों को डराएं नहीं बल्कि उन्हें बीमारी से डटकर मुकाबला करने का हौसला दें। साथ ही ज्यादा से ज्यादा हो सके, संक्रमण फैलने से रोके।