मेरठ ब्यूरो। साइबर क्राइम की दुनिया में डिजिटल अरेस्ट कोई नया शब्द नहीं है। डराने वाली बात ये है कि ये अब मेरठ तक पहुंच गया है। लोग अपने ही घर में कैद होकर लाखों की ठगी के शिकार हो रहे हैं। साइबर क्राइम थाने में ऐसे दो मामले रजिस्टर किए जा चुके हैं। हालांकि मामले और भी होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर ठगी को रोकने के लिए जागरूकता ही बचाव है।
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ये होता है डिजिटल अरेस्ट
डिजिटल अरेस्ट का मतलब होता है किसी को ऑनलाइन गिरफ्तार करना। स्कैमर्स व्हाटसअप,्र टेलीग्राम, फेसबुक जैसी तमाम सोशल मीडिया एप के जरिए वीडियो कॉल करते हैं्र। पीडि़त को ड्रग्स तस्करी, मनी लॉंड्रिंग,राष्ट्रद्रोह जैसे अपराध में संलिप्त होने का हवाला देते हुए गिरफ्तारी का डर दिखाया जाता है। पीडि़त को स्क्रीन पर सामने बकायदा पूरा थाना दिखाया जाता है। कुछ पुलिस अधिकारी, महिला पुलिस अधिकारी भी दिखाए जाते हैं। पहले एक व्यक्ति पुलिस की यूनिफॉर्म में बात करता है। कुछ जानकारी पीडि़त से ही कलेक्ट करता है। इसके बाद सीनियर अधिकारी से बात करवाता है। कुछ संबंधित डॉक्यूमेंटस भी पीडि़त को दिखाए जाते हैं ताकि उसे पूरा मामला रीयल लगे। इस पूरे प्रोसेस को इतनी तेजी से किया जाता है कि पीडि़त व्यक्ति कुछ समझ ही नहीं पाता। उसके चेहरे पर डर और दबाव दिखने लगता है। इसी का फायदा स्कैमर्स उठाते हैं। कई घंटे तक पीडि़त को उसके घर पर ही अरेस्ट करके रखा जाता है। इस दौरान उसे कहीं भी आने-जाने या किसी से बात करने की इजाजत नहीं होती है। जमानत के नाम पर लाखों-करोड़ों रूपये की ठगी की जाती है। हैरान करने वाली बात ये है कि इस दौरान परिवार के अन्य लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगती है।
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डिजिटल अरेस्ट से 11 लाख रुपए ठगे
मेरठ के दौराला में रहने वाले किरणपाल से स्कैमर्स ने डिजिटल अरेस्ट कर 11 लाख रूपये ठग लिए। उनके अकाउंट में पीएफ का पैसा रिलीज हुआ था। इसके दो दिन बाद सीबीआई अधिकारी बनकर किसी ने उन्हें कॉल किया। उनके अकाउंट से टेरर फंडिंग होने की बात कहकर 24 घंटे के लिए घर में ही अरेस्ट कर लिया गया। उन्हें भारत सरकार के लोगो लगे पत्र भी व्हाटसअप पर भेजे गए। डरा-धमकाकर और दबाव बनाकर उन्हें एक अलग कमरे में बंद करवाया गया। किसी से बात करने की मनाही थी। जमानत के नाम पर उनसे पैसे ठग लिए गए।
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ठगी में इन तरीकों का होता है इस्तेमाल
- पुलिस, सीबीआई, इनकम टैक्स, कस्टम, नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी बनकर
- बच्चे की गिरफ्तारी दिखाकर
- अवैध सामान की खरीददारी
- टेरर फंडिंग के नाम पर

फ्रॉड से ऐसे बचें
- सचेत रहें, सावधान रहें।
- बाहर के नंबरों से आने वाली कॉल्स से बचें।
- किसी को भी अपनी पर्सनल जानकारी न दें।
- अपना कोई डाटा किसी को शेयर न करें
- फोन पर यदि कोई धमकाए तो दबाव में न आएं।
- यदि कोई कॉलर फोन कर किसी विभाग के अधिकारी होने का दावा करे तो पहले पुष्टि करें।
- यदि साइबर क्राइम के शिकार हो जाएं तो तुंरत थाने में शिकायत करें।
- किसी भी जानकारी को बिना वेरीफाई करें प्रयोग न करें

हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करें
साइबर क्राइम थाना प्रभारी सुबोध सक्सेना बताते हैं कि कानून में डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई शब्दावली नहीं हैं। इस तरह से गिरफ्तारी नहीं हो सकती है।इस तरह के कॉल यदि आएं तो डरें नहीं। नंबर्स को तुरंत ब्लॉक कर दें। पुलिस कभी भी सोशल मीडिया के जरिए न तो कॉल करती है और न ही गिरफ्तारी करती है। जागरूकता के अभाव में ही लोग साइबर फ्रॉड के शिकार हो रहे हैं। यदि ऐसा कोई मामला किसी के साथ होता है तुरंत हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल कर सूचना दें।