सपने सच होते हैं, बस उन सपनों को पंख लगाने के लिए हौसलों, जुनून, जज्बे और सबसे अधिक परिवार के सहयोग की जरूरत होती है। यूपी अंडर-16 टीम के कप्तान बादल सिंह की कहानी भी कुछ यूं ही हैं। बचपन से खेलों से प्यार बादल को क्रिकेट के नजदीक लेकर आ गया। तो आइए बताते हैं कैसे पहले एथलेटिक्स फिर हॉकी से होता रास्ता बादल को क्रिकेट तक ले आया।

एथलेटिक्स से क्रिकेट तक

अंडर-16 मैच में यूपी की कप्तानी कर रहे बादल सिंह का पूरा परिवार मैच देखने भामाशाह पार्क पर मौजूद था। बादल के पिता नरेन्द्र कुमार ने बताया कि बादल को शुरू से ही खेलों से बहुत लगाव रहा है। पहले वह एथलेटिक्स खेलता था, जिसमें उसने गोल्ड मेडल भी जीता। फिर एनएएस डिग्री कॉलेज में बादल ने लगभग दो वर्षों तक हॉकी खेली। जिसके बाद उन्होंने बादल को भामाशाह पार्क क्रिकेट एकेडमी में भर्ती करा दिया।

 जब भिजवाया घर से खाना

मां पूनम बालियान का प्यार और बादल के संस्कार ही थे, जिसने पूनम को अपने बेटे के लिए खाना भिजवाने को मजबूर कर दिया। बादल टीम के साथ क्रिस्टल पैलेस रुका है। बादल मंगलवार और शनिवार को प्याज नहीं खाता, ऐसे में पूनम ने इस मंगलवार को बादल के लिए घर का खाना भिजवाया।

 

दादी संग रैना से मुलाकात

बादल जब छोटा था, तब 2008 में यूपी की पूरी टीम मेरठ पहुंची थी। रैना, आरपी, पीयूष जैसे सितारों के चलते बादल इन खिलाडिय़ों के ऑटोग्राफ लेना चाहता था। तब दादी राजबाला तोमर के संग बादल ने रिक्शे से होटल तक का सफर तय किया। सभी खिलाडिय़ों के ऑटोग्राफ भी लिए।

भाई हो तो बादल जैसा

बड़ी बहन वर्षा बालियान और छोटी बहन नीतू चौधरी बताती हैं कि बादल दिल से बेहद साफ है। वह घर में भले ही नटखट हो, लेकिन घर से बाहर वह बहुत सीधा है। हर वक्त वह किसी भी तरह से लोगों की मदद करना चाहता है। दोनों ने कहा कि भाई को यूपी टीम की कमान संभालते देख बेहद गर्व हो रहा है।

 मेरठ: अपनी लेग स्पिन से अच्छे-अच्छे बल्लेबाजों की गिल्लियां बिखेरने वाले मेरठ के जय नागर की जिंदगी के पीछे की तस्वीर काफी सुखद है। कैसे अपने बच्चें की प्रतिभा को पहचानना है ये कोई जय के परिवार से सीखे। तो आइए बताते हैं जय के सपने पूरे होने के पीछे की कहानी।

मैथ्स ओलंपियाड का टॉपर

एक अच्छा क्रिकेटर के लिए किस तरह पढ़ाई के साथ संतुलन बैठाना मुश्किल है, ये सभी जानते हैं। लेकिन जय ने अपनी 10वीं की पढ़ाई से पहले कई बड़े मुकाम पढ़ाई में भी हासिल किए। जय के पिता राजन नागर ने बताया कि कुछ साल पहले एक स्कूल में हुए मैथ्स ओलंपियाड में दूसरे स्थान रहकर जय नागर ने ये जता भी दिया था।

मोहल्ले वालों ने पहचानी क्षमता

दो साल की उम्र से हाथ में थपकी थाम लेना। अपने नन्हें हाथों से बैट्समैन की तरह स्ट्रोक लगाना। शायद इतनी छोटी उम्र में किसी भी बच्चे के लिए मुश्किल होगा। मां रजनी नागर बताती हैं कि इंडियन टीम जब एक बार दक्षिण अफ्रीका से जीती। तो परिवार में उसी जश्न के बीच जय का जन्म हुआ। ऐसे में शायद वो क्रिकेट के लिए ही बना है। मोहल्ले वालों ने भी बचपन में कहा कि ये क्रिकेटर बनेगा इसे प्रशिक्षण दिलाओ।

पापा का हर पल साथ

बड़ी बहन कनक नागर बताती हैं कि पहले शुरूआत में उसकी कमी घर में खलती थी, लेकिन अब जब उसका करियर और उसकी खुशी दिखती है तो अब परेशानी नहीं होती है। बड़ा भाई गगन नागर भी बताता है कि जय नागर बेहद सहज लड़का है। वह सिर्फ अपने क्रिकेट पर कांसनटे्रट करना जानता है। जब से उसने प्रशिक्षण लेना शुरू किया, पापा राजन नागर ने उसका साथ दिया है। उसे रोज एकेडमी लाना ले जाने के अलावा ट्रायल के लिए भी उसके साथ रहे।