मेरठ, (ब्यूरो)। दरअसल, डॉलफिन गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत का परिचायक है। यही कारण है कि गैंगेटिक डॉलफिन की गणना के लिए अहम कदम उठाए जा रहे हैं। पहले केवल डायरेक्ट साइटिंग के तरीके से डॉलफिन की गणना की जाती थी, मगर इस बार ईको मैथेड साउंड (ईको सोनार) की तकनीक भी अजमाई जा रही है। दोनों तकनीक का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है ताकि डॉलफिन की गणना में कोई चूक न हो और सही स्थिति सामने आ सके।
स्टाफ को खास ट्रेनिंग
गणना को लेकर डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि वन विभाग डब्ल्यूआईआई और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर चार से सात दिसंबर तक गैैंगेटिक डॉलफिन सेंसस करेगा। डॉलफिन की गणना को लेकर स्टाफ को विशेष ट्रेनिंग दी गई है।
ईको सोनार तकनीक
ईको सोनार तकनीक के जरिए गंगा नदी की सतह के आसपास तरंगों से डॉलफिन की उपस्थिति का पता लगाया जाएगा। दरअसल, डॉलफिन देख नहीं पाती है इसलिए इस डॉलफिन की आवाज की तरंगों से उनकी गणना की जाएगी।
हाफ सेंचुरी की उम्मीद
वर्ष 2020 के सेंसस में गंगा में 41 डॉलफिन पाई गई थीं। इस बार वन विभाग को उम्मीद है कि डॉलफिन का कुनबा हाफ सेंचुरी के पार होगा। डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि गंगा में संरक्षण और संवर्धन के कारण डॉलफिन की संख्या लगातार बढ़ रही है। गंगा में डॉलफिन की संख्या बढऩा ये बताता है कि गंगा की स्थिति भी अच्छी हो गई है।
पिछले पांच वर्षों में स्थिति
वर्ष डॉलफिन की संख्या
2015 22
2016 30
2017 32
2018 33
2019 35
2020 41
इस बार नई तकनीक से डॉलफिन की गणना की जा रही है। सात दिसंबर तक 25 सदस्यों की पांच टीमें गंगा नदी में डॉलफिन की गणना करेंगी।
राजेश कुमार, डीएफओ, मेरठ