मेरठ । दो साल से निगम से वाटर प्लस का तमगा मिलने की उम्मीद है, लेकिन अधूरी तैयारियां इसे मुकम्मल नहीं होने देती हैं। हालांकि, निगम का दावा है कि सारी तैयारियां पूरी करके इस बार वाटर प्लस सिटी का तमगा मेरठ के खाते में आएगा। ये दावा तो ठीक है, लेकिन इसके लिए निगम की तैयारियां अभी अधूरी हैं। हकीकत को टटोलेें तो वाटर प्लस के तहत शहर को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वो अभी तक नहीं मिल पा रही हैं। अब अगले चार माह में ये मानक पूरे होंगे, यह कहना अभी मुश्किल हैं।

कैसे मिलता है वाटर प्लस का तमगा
दरअसल, देश में वाटर प्लस सिटी का खिताब अभी तक 10 लाख से अधिक आबादी वाले सात शहरों को ही मिला है। इनमें इंदौर, सूरत, नवी मुंबई, विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा भोपाल और ग्रेटर हैदराबाद है। अब मेरठ भी इस दावेदारी में शामिल होने का प्रयास कर रहा है। वाटर प्लस सिटी का खिताब उन शहरों को दिया जाता है, जो एसटीपी के शोधित जल को दोबारा उपयोग में ला रहे हो। ताकि भूमिगत जल का उपयोग कम हो और जल का स्टोरेशन अधिक रहे। इन शहरों में एसटीपी का शोधित जल पार्कों में पेड़-पौधों की सिंचाई, सडक़ पर पानी छिडक़ाव और औद्योगिक इकाइयों में उपयोग किया जा रहा है।

मेरठ में क्या है दिक्कत
खास बात यह है कि शहर में 378.50 मिलियन लीटर सीवेज रोजाना उत्पन्न होता है। इसमें 366.91 एमएलडी निगम और 11.59 एमएलडी कैंट से उत्सर्जित होता है। इसके निस्तारण के लिए 179 एमएलडी क्षमता के 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। हालत यह है कि उदासीनता के कारण इनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। ऐसे में बिना ट्रीट हुए सीवर का पानी नालों में बह रहा है। क्योंकि 2017 से अब तक एमडीए और नगर निगम के बीच लगातार पत्राचार चल रहा है। सीवर लाइन संचालन का जिम्मा लेने के लिए कोई तैयार नही है। इसी का नतीजा है कि शहर के नालों में 40 प्रतिशत गंदगी सीवर लाइन से आ रही है और इस जल को ना तो संचय किया जा रहा है और ना ही स्टोरेज की कोई व्यवस्था है।

अब निगम की क्या है प्लानिंग
नगर निगम ने करीब 60 लाख रुपये की कार्ययोजना तैयार की है। कमालपुर में 72 एमएलडी शोधन क्षमता का एसबीआर तकनीक का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट है। लगभग 65 एमएलडी सीवेज प्रतिदिन शोधित होता है। शोधित जल को एकत्र करने के लिए एसटीपी के नजदीक एक बड़ा टैंक बनाया जाएगा। मशीनों से एसटीपी के शोधित जल को दोबारा शोधित करके टैंक में होगा। इसी शोधित जल को टैंकरों में भरकर पेड़-पौधों की सिंचाई, सडक़ पर पानी छिडक़ाव में उपयोग होगा। एसटीपी से एक पाइप लाइन डालकर आसपास के खेतों की सिंचाई के लिए भी यही शोधित जल किसानों को दिया जाएगा। वहीं भविष्य में यही शोधित जल औद्योगिक इकाइयों तक भी पहुंचाया जाएगा।

अब निगम ने यह की है तैयारी
- नगर निगम को वाटर प्लस सिटी का दर्जा तभी मिल सकता है जब शहर में स्थापित सभी एसटीपी का शोधित पानी नालों में बहना बंद हो और उसका दोबारा उपयोग शुरू हो।

- शोधित पानी नालों में न बहे, इसके लिए एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) से शोधित पानी को दोबारा उपयोग में लाने की योजना पर काम जारी है।

- इसके तहत 60 लाख का प्रस्ताव तैयार किया है। इसके प्रथम चरण में कमालपुर स्थित 72 एमएलडी एसपीटी के शोधित पानी को स्टोर करने को 100 केएलडी का एक स्टोरेज टैंक बनाया जा रहा है।

- इसके साथ ही टैंक से टैंकरों में पानी भरने की व्यवस्था रहेगी

- शोधित पानी का उपयोग सडक़ पर पानी छिडक़ाव, पार्क और ग्रीन बेल्ट के पौधों की सिंचाई, डिवाइडर और की धुलाई और भवनों के निर्माण में किया जाएगा।

- इसके बाद एमडीए के 13 एसटीपी पर भी यही व्यवस्था बनाई जाएगी लेकिन ये 13 एसटीपी प्लांट अभी तक लावारिस हैं।

- नमामि गंगे योजना के तहत 220 एमएलडी का यह सीवर ट्रीटमेंट प्लांट अगर शुरू हो जाता तो आबूनाला पार्ट-2 और ओडियन नाले की गंदगी काफी हद तक दूर हो जाएगी।
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अब जरा स्थितियों को समझिए
कुल एसटीपी
14
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सीवेज शोधन क्षमता
172 एमएलडी
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एसटीपी जल निगम
72 एमएलडी क्षमता
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एसटीपी, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा
220 एमएलडी क्षमता
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रोजाना सीवेज उत्सर्जन
350 एमएलडी
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काली नदी में उत्सर्जन
159 एमएलडी सीवेज रोजाना

एसटीपी के शोधित जल को शोधित कर दोबारा उपयोग में लाने के लिए नगर निगम द्वारा काम किया जा रहा है। इसके तहत स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 में वाटर प्लस सिटी की श्रेणी के लिए निगम दावेदारी कर रहा है।
- प्रमोद कुमार, अपर नगरायुक्त