मेरठ (ब्यूरो)। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 की तैयारियों में जुटा नगर निगम अपनी अधूरी तैयारियों के चलते इस बार भी अपनी रैकिंग में कुछ खास अंतर नही ला पाएगा। जो वर्तमान स्थिति है उसको देखें तो निगत के दावों से इतर हकीकत कुछ ओर ही है। दरअसल, नगर निगम के सीमित संसाधनों के कारण स्वच्छता सर्वेक्षण का असर शहर के केवल सीमित वीआईपी इलाकों तक ही सीमित रहता है। स्थिति यह है कि नगर निगम की टीम में सफाई कर्मचारियों की अत्याधिक कमी। नियमानुसार 10 हजार की आबादी पर 28 सफाई कर्मचारी होने चाहिए लेकिन करीब 24 लाख की आबादी के मेरठ शहर की सफाई का जिम्मा मात्र 31 सौ करीब कर्मचारियों के कंधे पर है। यानि करीब 20 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों के भरोसे निगम को इस बार भी स्वच्छता सर्वेक्षण की जंग जीतनी है।

सफाई कर्मचारियों की कमी
गौरतलब है कि स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 का पहला चरण पूरा हो चुका है। हर साल स्वच्छता सर्वेक्षण का सबसे प्रमुख बिंदु शहर की सफाई रहता है लेकिन जिन सफाई कर्मचारियों के कंधे पर शहर को साफ रखने का भार हैं, उनके करीब 80 प्रतिशत स्थाई पद खाली पड़े हैं। यानि नगर निगम में स्वीकृत 3480 स्थाई पदों पर मात्र 680 के करीब स्थाई कर्मचारी नियुक्त हैं। इसका नतीजा यह है कि शहर के 90 वार्डों में से अधिकतर वार्डों में सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति रहती है और सफाई केवल वीआईपी इलाकों तक सीमित रहती है।

फैक्ट्स पर एक नजर
नगर निगम में करीब 3480 स्थाई पद हैं स्वीकृत
इन पदों में से 2800 स्थाई पद हैं खाली
करीब 680 स्थाई सफाई कर्मचारी वर्तमान में हैं कार्यरत
वहीं आउटसोर्सिंग पर हैं 2415 सफाई कर्मचारी
स्थायी और आउटसोर्सिंग मिलाकर 3095 कुल सफाई कर्मचारी
10000 आबादी पर 28 सफाई कर्मचारी का है मानक
इसके अनुसार शहर की 24 लाख की आबादी पर करीब 80 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों की कमी
1994 में नगर निगम का गठन होने के बाद से नही हुई स्थाई सफाई क र्मचारियों की भर्ती नहीं
2015 से आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की व्यवस्था हुई थी लागू

सफाई कर्मचारियों की संख्या शहर की जनसंख्या के अनुूपात में काफी कम है। लेकिन इस बाद टेंडर निकाल कर संख्या में इजाफा किया गया है जो कि अभी ओर बढ़ाई जा रही है।
डॉ। हरपाल सिंह, प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी