मेरठ ब्यूरो। बच्चों की आउटडोर एक्टिविटीज लगातार घट रही है। इससे उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। घर की चारदीवारी में बंद होकर रह गए बच्चों के लिए बाहरी दुनिया से तालमेल बैठाना अब एक चुनौती बन गया है। एक्सपटर्स बताते हैं कि डिजिटल डिवाइस के अत्यधिक उपयोग और माता-पिता की अनदेखी का इसमें सबसे अधिक रोल है। जिसकी वजह से बच्चे घर में ही कैद होकर रह गए है उनका सोशल कनेक्शन जीरो हो गया है।
काउंसलर्स की मदद ले रहे पेरेंट्स
बच्चों में बाहर के लोगों के साथ घुल मिल न पाने की आदत को छुड़वाने के लिए अब पेरेंट्स काउंसलर्स के पास पहुंच रहे हैं। मेडिकल कॉलेज की मानसिक स्वास्थ्य विभाग में हर दिन ऐसे 20 से 25 केस पहुंच रहे हैं। वहीं मनकक्ष में भी हर दिन 10 से 14 पेरेंट्स ऐसे ही मामले लेकर पहुंच रहे हैं। काउंसलर्स का कहना है कि कि बच्चों को बाहर खेलने, सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बहुत जरूरी है। पेरेंट्स को बच्चों को सही तरीके से समय बिताने की आदतें सिखानी चाहिए और उन्हें डिजिटल डिवाइस का यूज सीमित करना होगा तभी ये समस्या हल होगी।
निगेटिव पेरेंटिंग बनी बड़ी वजह
एक्सपटर्स बताते हैं कि पेरेंट्स का बच्चों के साथ निगेटिव बिहेवियर भी इसकी बड़ी वजह से बन रहा है। बच्चों को हर वक्त कंट्रोल करना, उन्हें समझाने के बजाय, उनकी गलतियों या गलत व्यवहार को लेकर सजा देना, उनकी आलोचना करने का बुरा असर बच्चों पर हो रहा है। ऐसी पेरेंटिंग में प्यार, स्पोर्ट और पॉजिटिव गाइडेंस की कमी होती है। जिससे बच्चों का कांफिडेंस लेवल, उनकी सेल्फ रिस्पेक्ट, उनका मनोबल कम होने लगता है। वह बाहर जाने की बजाय घर में ही खुद को कैद कर लेते हैं। इससे उनकी ग्रोथ प्रभावित हो जाती है।
ये करें
- बच्चों को आउट डोर एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करें
- गेम्स, स्पोर्ट के लिए बच्चों के साथ बाहर जाएं
- स्क्रीन टाइम कंट्रोल करें
बच्चों को सोशल लाइफ में बैलेंस मैंटेन करना सिखाएं ।
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ये न करें
एक्सट्रीम कंट्रोल करना
बात बात पर बच्चों को सजा देना
इमोशनल नेग्लेजेंसी
संवेदनाओं की कमी
अत्यधिक उपेक्षाएं
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इनका है कहना
बच्चों के फिजिकल और मेंटल ग्रोथ के लिए आउटडोर एक्टिविटीज बहुत जरूरी है। अगर इस दिशा में सही कदम नहीं उठाए गए तो बच्चों की लाइफ पर बुरा इम्पैक्ट आ सकता है। अगर पेरेंट्स को ऐसा फील होता है कि उनका बच्चे का सोशल सर्किल जीरो है तो उन्हें एक्स्ट्रा केयर की जरूरत है।
डा। रवि राणा, सीनियर साइकेट्रिस्ट
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बच्चे जब बाहर खेलते हैं, तब उनकी फिजिकल हेल्थ बेहतर होती है। उनकी सामाजिक और मानसिक क्षमता भी विकसित होती है। पेरेंट्स को ये बात समझनी होगी। यह समस्या खराब पेरेंटिंग से जुड़ी हुई है। कई पेरेंट्स बच्चों को घर के अंदर ही व्यस्त रखना चाहते हैं। ताकि उन्हें बाहरी दुनिया के खतरों से बचाया जा सके। ये गलत प्रैक्टिस है।
डा। कमलेंद्र किशोर, साइकेट्रिस्ट, जिला अस्पतालबच्चों की सोशल लाइफ काफी खराब हो रही है। टीवी, मोबाइल के साथ इंगेज रहते हैं। बाहर के लोगों के साथ संवाद ही नहीं कर पाते हैं। ये गंभीर समस्या है।
आयुष जिंदल, पेरेंट
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बच्चे इंट्रोवर्ट हो रहे हैं। कहीं आना जाना पसंद नहीं करते। पहले सब बच्चे बाहर खेलते थे। अब ऐसा दिखता ही नहीं है।अपने आसपास के लोगों के साथ बच्चे बात भी नहीं कर पाते हैं।
अभिषेक रस्तोगी, पेरेंट