मेरठ (ब्यूरो)। स्कूलों के अनुसार कोविड काल के दौरान क्लासेज ऑनलाइन चलती रही। इसके चलते सभी बच्चों पर टीचर्स द्वारा उतना ध्यान भी नहीं दे पाए, जितना क्लासेज में दिया जा सकता है। वहीं ऑनलाइन क्लासेज में केवल किताबी ज्ञान दिया जा सकता था। स्थिति ऐसी थी, जिसमें ये पता लगा पाना बेहद मुश्किल था कि कौन बच्चा पढ़ाई पर कंसंट्रेट कर रहा है और कौन नहीं। वहीं ऑनलाइन क्लासेज के साथ डे्रस पहनने, टाइम मैनेजमेंट, टाइमटेबल के हिसाब से लंच करना, सुबह जल्दी उठना, गेम्स के जरिए बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास वाली सारी प्रक्रिया ठप हो गई। जिसके चलते बच्चों की आदतें भी बदल चुकी हैं। वहीं सबसे बेसिक आदत ये खराब हुई कि बच्चे अब लेट स्कूल पहुंचते हैैं।
लिखने की आदत नहीं रही
स्कूलों के अनुसार बच्चों को अब लिखने की प्रैक्टिस नहीं रही। स्कूलों द्वारा सभी चीजों की ट्रेनिंग समेत बहुत कुछ दोबारा से सिखाया जा रहा है। बच्चे स्कूल की प्रेयर तक भूल चुके हैं, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्कूलों को बच्चों के साथ कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। स्कूलों की मानें तो बच्चों को ट्रैक पर लाने में कम स कम छह महीना से सालभर तक का समय लगेगा।
ये ठीक है कि स्कूलों को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। बच्चे लिखना भूल गए है, उनकी आदतें बदल गई है और वो देर से स्कूल आने लगे हैैं। मगर बच्चों का इंट्रेस्ट उन्हें जल्द ट्रैक पर ले आएगा।
राहुल केसरवानी, प्रिंसिपल, मेरठ सिटी पब्लिक स्कूल
सब कुछ पहले जैसा करने के लिए स्कूलों को शुरू से मेहनत करनी पड़ रही है। समय जरूर लग रहा है पर ये अच्छी बात की, चीजें सुधार की दिशा में आगे बढ़ रही हैैं।
संगीता कश्यप, प्रिंसिपल, राधा गोविंद
स्कूल में बच्चों को सब कुछ फिर से सिखाया जा रहा है। बच्चे लिखने-पढऩे से लेकर समय से उठना और स्कूल की प्रेयर तक भूल गए हैैं। वक्त लगेगा लेकिन ये है कि चीजें पहले जैसी हो जाएंगी।
सतीश कुमार, प्रिंसिपल, शांति विद्यापीठ