मेरठ (ब्यूरो)। दो दिन पहले प्रदेश के सीएम योगी ने आदेश दिए थे कि आरटीओ कार्यालय से दलालों का राज खत्म होना चाहिए। मगर आरटीओ में एजेंट्स की आवाजाही पर कोई रोक नहीं है। गोपनीय काउंटर, फाइल सेक्शन, कैश सेक्शन, फिटनेस ट्रैक, एनओसी, नंबर सेक्शन तक में एजेंट की मौजूदगी देखने को मिल रही है। सूत्रों की मानें तो एजेंट्स ने बाबूओं से हर काम के लिए कमीशन तय कर रखा है। इसी के चलते डायरेक्ट काउंटर पर आने वाले आवेदक को कोई न कोई कमी बताकर अगले दिन के लिए टाल दिया जाता है। जिसके बाद विभाग में सक्रिय एजेंट्स मिनटों में काम करने का हवाला देकर आवेदकों को अपने शिकंजे में कस लेते हैैं।
फाइल पर कमीशन तय
सूत्रों की मानें तो बाबूओं से एजेंट की सेटिंग इस कदर है कि बाबूओं ने एजेंट्स को कोड दिया हुआ है। एजेंट की फाइल आते ही कोड से एजेंट की पहचान हो जाती है। इसके बाद बाबू के खाते में उसका कमीशन जुड़ जाता है। इस कमीशन की लेने-देन कार्यालय से बाहर होती है। साप्ताहिक या मासिक रूप से फाइलों का कमीशन एक साथ लिया जाता है।
एनओसी से लेकर वेरीफिकेशन तक
वाहन ट्रांसफर से लेकर विभिन्न प्रकार की एनओसी तक के लिए केवल एजेंट के माध्यम से काम किया जाता है। डीएल के लिए ऑनलाइन टेस्ट से लेकर ड्राइविंग टेस्ट तक एजेंट की फाइल पर तुरंत साइन हो जाता है। इतना ही नहीं, गाडिय़ों की फिटनेस में कमी होने पर एजेंट के माध्यम से कमी को तुरंत पूरा कर दिया जाता है। इसके लिए फिटनेस ट्रेक पर बकायदा गाडिय़ों की कमियां दूर करने वाले एजेंट तक मौजूद रहते हैं। जो खानापूर्ति कर आवेदक का काम झट से कर देते हैैं।
एजेंट्स का विभाग में प्रवेश नहीं है। लेकिन आवेदक अपने काम के लिए एजेंट्स का सहारा लेते हैं। जबकि सब काम अब ऑनलाइन हो रहा है। विभागीय काउंटर पर एजेंट की मौजूदगी पर संबंधित बाबूओं से जानकारी ली जाएगी।
कुलदीप सिंह, एआरटीओ प्रशासन
यहां दलालों के बिना कोई काम होता ही नहीं है। ऑनलाइन फार्म भर भी दो तो ऑनलाइन टेस्ट का काम विभाग में होता है और उसके लिए एजेंट वहां मौजूद रहते हैैं।
मयंक
गाड़ी की फिटनेस डायरेक्ट कराने जाओ तो 10 कमियां बताकर फाइल को होल्ड कर दिया जाता है। मगर एजेंट के माध्यम से कोई भी काम मिनटों में पूरा हो जाता है।
तपन गोयल
आरटीओ में एनओसी के काम में तो बिना एजेंट के आपका काम पूरा हो ही नहीं सकता है। एनओसी के लिए बाबू कई प्रकार के नियम बता देते हैं। जिन्हें पूरा करना लगभग असंभव होता है।
गौरव शर्मा
आवेदकों से ज्यादा तो कार्यालय में एजेंट्स की भरमार रहती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कार्यालय के बाहर एजेंटस की दुकानें है। जो लगातार बढ़ रही हैं।
देव