मेरठ (ब्यूरो)। सरस्वती शिशु विद्या मंदिर ग्राउंड में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से भागवत कथा आयोजित की जा रही है। इसका आयोजन 19 मार्च तक होगा। रोजाना कथा का आयोजन दोपहर 3 बजे से 7 बजे तक होता है।

रुद्री का पाठ किया
सोमवर को कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारम्भ दिव्य गुरु आशुतोष महाराज के ब्रह्मज्ञानी वेदपाठी शिष्यों ने रुद्री पाठ के विशुद्ध उच्चारण से किया। कथा के पहले दिन कथाव्यास साध्वी पद्महस्ता भारती ने बताया कि वेदों का सार युगों युगों से मानव जाति तक पहुंचता रहा है। श्रीमद भागवत महापुराण उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है, जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है।

वेदों का सार बताया
उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा जाता है। श्रीमद् भागवत का अर्थ होता है जो श्री अर्थात चैतन्य, सौंदर्य व ऐश्वर्य से युक्त है। ये वो वाणी है, वो कथा है जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है और हमारे जीवन को सुन्दर बनाती है।

कथामृत से पापों का होता है नाश
कथा व्यास पद्महस्ता भारती ने बताया कि श्रीमदभागवत महापुराण ऐसी कथा अमृत है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसीलिए परीक्षित ने स्वर्गामृत के बजाय कथामृत की ही मांग की। क्योंकि इस कथामृत का पान करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।

वृंदावन का महत्व बताया
कथा के दौरान उन्होंने वृन्दावन का अर्थ बताया। उन्होंने कहाकि वृंदावन इंसान का मन है। इंसान के मन में भक्ति तो जागृत होती है, पर वह भक्ति स्थाई नहीं होती। इसका कारण यह है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता। इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुणी हो गई,पर उनके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं। उनमें जीवंतता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया।

कल्पवृक्ष है भागवत कथा
साध्वी ने बताया कि व्यास जी कहते हैं कि भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भांति है, जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है, वह उसे मनोवांछित फल देती है, और यह निर्णय हमारे हाथों में है कि हम संसार की मांग करते हैं या करतार की। अंत में शिष्याओं द्वारा मधुर व भक्तिमय भजन सुन सभी श्रद्धालु झूम उठे।