-ब्लाइंड रिदा जेहरा को कंठस्थ है गीता का 15वां अध्याय, प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेगी
-सात वर्षीय मुस्लिम बालिका को प्रशिक्षित कर ब्रजमोहन स्कूल फॉर द ब्लाइंड के प्रवीन शर्मा
Meerut: ऊर्ध्वमूलमध: शाखम्, अश्वत्थं प्राहुरव्ययम्। छन्दांसि यस्य पर्णानि, यस्तं वेद स वेदवित्।। गीता के 15वें अध्याय के प्रथम श्लोक को पढ़ते हुए रिदा जेहरा का आत्मविश्वास जाहिर कर रहा था कि वो विलक्षण प्रतिभा है। अध्याय के सभी 20 श्लोक और उनके भावार्थ रिदा को कंठस्थ हैं। महज सात वर्ष की प्यारी रिदा को कुदरत ने आंखें नहीं दी तो क्या? सुई की नोक से तेज दिमाग दिया, विलक्षण प्रतिभा की धनी रिदा रविवार को लखनऊ में यूपी स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जा रही है। ब्रजमोहन स्कूल फॉर द ब्लाइंड की इस छात्रा को जीत के मुकाम तक पहुंचाने के लिए शिक्षक प्रवीन शर्मा ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं तो शुक्रवार को आई नेक्स्ट टीम बालिका से रूबरू हुई और उसे जीत की शुभकामनाएं दीं।
मुस्लिम रिदा को गीता से है स्नेह
सांप्रदायिकता का ढोल पीट रहे मेरठ के 'चंद' के लिए बेशक यह आइना हो सकता है। मुस्लिम रिदा जेहरा को गीता कंठस्थ है। महज सात साल की उम्र में जब बच्चे ढंग से स्कूल जाना भर सीखते हैं रिदा ने गीता के 15वें अध्याय के संस्कृत में 20 श्लोक याद कर लिए। गत दिनों मेरठ में रीजनल कांपटीशन में नंबर वन आने के बाद बाद रिदा अब स्टेट कांपटीशन को क्वालीफाई करने के लिए लखनऊ रवाना हो रही है। शुक्रवार को जागृति विहार स्थित ब्रजमोहन स्कूल फॉर द ब्लाइंड में आई नेक्स्ट से वार्ता के दौरान रिदा ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया तो वहीं शिक्षक प्रवीन शर्मा ने बताया कि वे किस तरह स्कूल के 30 विशेष (ब्लाइंड) बच्चों को प्रशिक्षित कर रहे हैं।
मां-बाप को है रिदा पर नाज
रिदा के पिता रहीस हैदर, मां शाहीन जेहरा को अपनी बच्ची पर नाज है। भूमिया पुल पर साइकिल की दुकान चला रहे रहीस के बीच बच्चों में रिदा बीच की है। बड़ा बेटा मोहम्मद हैदर दस साल का है तो छोटा बिलाल तीन साल का। रहीस को अपनी बेटी से खासी उम्मीदें हैं तो रिदा ने बताया कि वो बड़ी होकर अपने जैसे (ब्लाइंड) बच्चों को शिक्षित कर जीवन की लौ देगी। मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाली रिदा गीता के श्लोक पढ़ने के सभी कायदे जानती है। थर्ड क्लास की छात्रा रिदा इस बोर्डिग में रहकर ही शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर रही है। कुदरत से रिदा के मां-बाप बेटी को शिकायत नहीं। आंखों में रोशनी नहीं तो क्या, मासूम का हौसला सूरज सा रोशन है।
मासूम प्रतिभाओं को तराश रहा स्कूल
रिदा की प्रतिभा के आकर्षण में खिंची आई नेक्स्ट टीम ब्लाइंड स्कूल पहुंची तो पाया कि ये तो हुनरमंद को फैक्ट्री है। यहां कुदरत के मारे, अपनी प्रतिभा का मनवा रहे हैं। महज छह साल के लविन्दर की बोर्ड पर ऐसे हाथ चलाते हैं, मानों कम्प्यूटर को बड़ा कोर्स करके आए हों। मेमोरी की बात करें तो लविन्दर को 67 तक का पहाड़ा याद है। टोटली ब्लाइंड लविन्दर को अंग्रेजी के बड़े मीनिंग और ट्रांसलेशन आते हैं। लविन्दर आईएएस बनेंगे, उन्हें आईएएस की फुलफार्म भी मालूम है। अब तक हम ए फॉर एपल, बी फॉर बॉल ही जानते थे, अब ए फॉर आलवेज, बी फॉर बी, सी फॉर केयरफुलभी जानेंगे। प्यारी ब्यूटी ने एबीसीडीकी जो नई मीनिंग निकाली है वो 'मैनकाइंड' को सपोर्ट कर रही है। ब्यूटी का सपना इंजीनियर बनने का है।
खुदा बंदे से पूछे, तेरी रजा क्या है?
खुदी को कर बुलंद इतना, खुदा बंदे से पूछे तेरी रजा क्या है? स्वामी सत्यानंद ट्रस्ट फॉर हैंडीक्रैप्ट इंडिया की ओर से संचालित इस स्कूल में मासूम बच्चों के हौसले पत्थर को सीना चीर रहे हैं तो इनका जिम्मा उठाए प्रशिक्षक प्रवीन शर्मा भी कुछ कम नहीं हैं। बेहतर प्रोफेशनल रहे प्रवीन ने अपने करियर को मोह त्यागकर इस विशेष बच्चों के लिए जीवन को समर्पित कर दिया है। पत्नी उपासना का सहयोग मिला तो दंपति की जिंदगी इन्हीं विशेष मासूमों में समा गई। साढ़े चार साल के एक बच्चे को शौच कराने से लेकर हर एक बच्चे की परवरिश और बेहतर शिक्षा का जिम्मा एक मां-बाप की तरह प्रवीन और उपासना उठा रहे हैं। सहयोग से चलने वाली यह संस्था विशेष बच्चों को निशुल्क न सिर्फ प्रशिक्षण दे रही है बल्कि उनके रहने-सहने का बंदोबस्त भी कर रही है।
चेले तो चेले, गुरु भी कमाल
प्रतिभाओं के समेटे इस स्कूल में विलक्षण बच्चे देखने को मिले तो गुरुजी भी कुछ कम नहीं थे। ब्लाइंड शिक्षक संतोष तिवारी और संदीप कुमार व्हाट्सएप और फेसबुक पर फटाफट चैट करते हैं तो किसी मैसेज को सुनकर रिस्पांस मिनट भर में कर देते हैं। स्कूल में बिहार के समस्तीपुर, उत्तराखंड, यूपी के मुरादाबाद, बरेली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, शिकोहाबाद के अलावा देश के अन्य राज्यों के विशेष बच्चे भी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
तीन साल पहले इन मासूम के बीच आया तो इन्हीं का होकर रह गया। विशेष बच्चों के साथ विशेष बनकर रहना पड़ता है। मासूम को उनके पैरों पर खड़ाकर सामन्य जीवन दे पाया तो प्रयास फलीभूत होंगे।
प्रवीन शर्मा, प्रशिक्षक
ब्रजमोहन स्कूल फॉर द ब्लाइंड