मेरठ (ब्यूरो)। ऑटिज्म यानि स्वलीनता एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिससे ग्रस्त लोगों की दुनिया में वो अकेले ही रहते हैैं और खुशियां तलाशने के चक्कर में उस दुनिया में ही गुमशुदा हो जाते हैं। ऑटिज्म के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष दो अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस बीमारी की गंभीर बात यह है कि इसके अधिकतर शिकार बच्चे ही होते हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि मनोचिकित्सकों के मुताबिक सही काउंसलिंग और घरेलू परिवेश में बदलाव से बच्चों को इस समस्या से बाहर निकाला जा सकता है।
मानसिक विकास प्रभावित
मेडिकल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ। तरुण पाल ने बताया कि मेडिकल कालेज में ऑटिज्म से ग्रस्त रोजाना 2 से 3 बच्चे आते हैं। इन बच्चों की अलग ही दुनिया होती है, जिनमें वह खुद को अकेले ही खुश महसूस करते हैं। यानि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे अपने आप में खोए से रहते हैं। इस बीमारी के लिए अनुवांशिक और पर्यावरण संबंधी कई कारण जिम्मेदार होते हैं। यदि बच्चों की इस बीमारी की समय से पहचान नहीं की जाए तो यह रोग बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है। हालांकि अब इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की पहचान स्कूलों के माध्यम से अधिक की जा रही। इतना ही नहीं, खुद स्कूल के काउंसलर बच्चों की पहचान कर उनकी जानकारी उपलब्ध कराते हैैं। मगर इसके लिए परिजनों को भी जागरूक होनेे की आवश्यकता है।
न्यूक्लियर फैमली बन रही परेशानी
मनोचिकित्सक डॉ। रवि राणा ने बताया कि आधुनिक जीवनशैली की वजह से परिवारों में एकजुटता का भाव बहुत कम हो गया है। न्यूक्लियर फैमली का चलन शहरों में तेजी से बढ़ रहा है। बचपन मेंबच्चे को अपने माता-पिता का समय और परिवार के बुजुर्गों का ध्यान और प्यार चाहिए होता है। लेकिन इस कमी से बच्चों में असुरक्षा का एहसास बढ़ रहा है। अभिभावकों को अपने बच्चे के रूटीन, उसकी एक्टिवनेस पर नजर रखनी चाहिए। बच्चों में खिलौने, किताबें और घर में कुछ रोचक खेल-खेलने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने से यह दिक्कत होती है। कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही नहीं होने से भी बच्चे को ऑटिज्म का खतरा हो सकता है।
विकास की गति धीमी
मनोचिकित्सक डॉ। विकास सैनी ने बताया कि जिन बच्चों में ऑटिज्म की शिकायत होती है, उनके मानसिक विकास की गति धीमी होती है। वे अपना नाम पुकारने पर भी कोई जवाब नहीं देते हैं। आमतौर पर छह माह के बच्चे मुस्कुराना, उंगली पकडऩा और आवाज पर प्रतिक्रिया देना सीख लेते हैं। लेकिन जिन बच्चों में ऑटिज्म की शिकायत होती है वह ऐसा नहीं कर पाते हैं। इसके बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर मेडिकल चेकअप कराना चाहिए। बच्चे के पैदा होने से छह माह तक उनकी आदतों पर गौर करें।