कैलाश प्रकाश स्टेडियम में एस्ट्रोटर्फ बना, पर अभी खिलाडि़यों को इंतजार
ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद हॉकी के खिलाडि़यों में बढ़ा उत्साह
दो साल बाद भी अधर में एस्ट्रोटर्फ की सौगात
Meerut। राष्ट्रीय खेल दिवस हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की याद में मनाया जाता है। ऐसे में अब जब ओलंपिक में हॉकी ने 42 साल बाद कांस्य पदक हासिल किया, तो हॉकी की हसरतें फिर परवान चढ़ रही हैं। मेरठ में हॉकी के अस्तित्व पर छाए संकट के बादल अब छंटने की उम्मीद है। कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम में एस्ट्रोटर्फ निर्माण पूरा हो चुका है, लेकिन अभी कुछ खामियों के चलते एस्ट्रोटर्फ पर खिलाड़ी खेल से वंचित हैं। ऐसे में करीब 3 साल बाद मिली एस्ट्रोटर्फ की सौगात भी अधूरी है। हॉकी प्लेयर्स को इंतजार है कि कब वे एस्ट्रोटर्फ पर प्रैक्टिस कर सकेंगे।
तीन साल का इंतजार
गौरतलब है कि तकरीबन तीन साल पहले 10 अक्टूबर 2018 को एस्ट्रोटर्फ लखनऊ की एक कंपनी ने इटली की कंपनी लिमोंटा स्पोट्र्र्स से मंगाया था। इसके लिए पांच करोड़ 39 लाख का प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश कारपोरेशन लिमिटेड कंपनी को दिया था। दो किश्तों में जारी हुए बजट के कारण यह प्रोजेक्ट धीमी गति से चल रहा था जिस पर 2020 में आए कोरोना ने पूरा ब्रेक लगा दिया। अब 2021 में जाकर यह प्रोजेक्ट पूरा तो हो गया, लेकिन अभी इसमें बेसिक खामियों के चलते टर्फ पर प्रैक्टिस की शुरुआत नही हो सकी है।
ये है खासियत
एस्ट्रोटर्फ ग्राउंड 101.40 मीटर लंबा है
मैदान की चौड़ाई 61 मीटर है
एस्ट्रोटर्फ को लखनऊ से इंसोलोक्स स्पोर्ट्स कंपनी ने इटली की कंपनी लिमोंटा स्पोर्ट्स से मंगाया गया था
10 अक्टूबर 2018 को मंगाया गया था 6379.82 स्क्वायर मीटर एस्ट्रोटर्फ
इसे 6185.40 स्क्वायर मीटर के मैदान पर कवर किया गया है
एस्ट्रोटर्फ हाकी ग्राउंड 101.40 गुणा 61 मीटर लंबाई-चौड़ाई में बनाया गया है।
इसमें हरे रंग का टर्फ यानी घास 5146.25 स्क्वायर मीटर और लाल रंग की टर्फ 1233.57 स्क्वायर मीटर है
क्वालिटी पर उठे सवाल
कोरोना के कारण एस्ट्रोटर्फ का काम पूरा होने में दो साल का समय लग गया, लेकिन टर्फ विवादों में आ गया। एस्ट्रोटर्फ की गुणवत्ता की जांच अंतरराष्ट्रीय मानकों पर की गई। निर्माण के दौरान ग्राउंड से बार-बार घास निकलती रही है। इसकी शिकायत भी कई बार मेरठ से लखनऊ तक हुई। शिकायत होने के बाद जिला प्रशासन स्तर पर बनी टीम ने एक बार जांच भी की थी, लेकिन निर्माण देखने कोई नहीं पहुंचा। अब वहीं घास जमीन के भीतर बढ़ रही, इससे एस्ट्रोटर्फ जगह-जगह नीचे से उठने लगा है। जिससे खेल के दौरान गेंद खिलाडि़यों को लगने की संभावना बढ़ गई है।
खिलाडि़यों को फायदा
एस्टोटर्फ मैदान बनने से इसका सीधा फायदा जिले के उन खिलाडि़यों को होगा। जो एस्ट्रोटर्फ की प्रैक्टिस के चलते राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेलों में वंचित रह जाते हैं। शहर में ऐसे खिलाडि़यों की संख्या 14 से अधिक है, जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग ले चुके हैं।
मेजर ध्यान चंद से नाता
मेरठ से हॉकी का पुराना नाता रहा है। एक समय हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद भी यहां अभ्यास करते थे। शायद उसका ही असर था कि 70 और 80 के दशक तक आते-आते हॉकी का शहर के मैदानों पर कब्जा हो गया। एक के बाद एक लोकल हॉकी क्लब बनते चले गए और हॉकी हर दिल पर छा गई।
निकले कई प्रसिद्ध प्लेयर
मेरठ की क्रांतिधरा से कई प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी निकले हैं। इनमें प्रवीण कुमार शर्मा, रोमियो जेम्स, एमपी सिंह, विवेक सिंह, सुबोध खांडेकर, कुलदीप सिंह, राजेश चौहान, रियाजुद्दीन, गुरविंदर सिंह, सचिन खत्री विश्व फलक पर क्रांतिधरा का नाम रोशन कर चुके हैं। मगर जल्द ही शहर की हॉकी को नजर भी लग गई।
हॉकी को ग्रहण
स्टेडियम में हॉस्टल का आगमन क्या हुआ, लोकल हॉकी खत्म होने लगी। लोकल क्लबों के खत्म होते ही हॉस्टल भी छिन गया। तब से लेकर आज तक हॉकी संघर्ष करने को मजबूर है। हॉकी में खिलाड़ी तैयार तो हुए, मगर अत्याधुनिक सुविधाओं से वंचित होने के कारण बेहतर परिणाम नहीं मिल सके। भारतीय महिला हॉकी की स्टार खिलाड़ी वंदना कटारिया ने अपनी करियर की शुरआत मेरठ से ही की थी। हालांकि अब उनका परिवार उत्तराखंड के हरिद्वार में रहता हैं।
एस्ट्रोटर्फ मेरठ का पुराना ख्वाब है, जो पूरा तो हो चुका है मगर अभी भी खिलाड़ी इस सपने का फायदा नही उठा पा रहे हैं। इसके चालू होने के बाद निश्चित तौर पर परिणाम बदलेंगे और हॉकी की दशा भी सुधरेगी।
प्रवीण शर्मा, पूर्व हॉकी खिलाड़ी
घास और एस्ट्रोटर्फ की हॉकी में फर्क है। युवा खिलाड़ी अगर एस्ट्रोटर्फ से तैयार होंगे तो जीत की संभावनाएं अधिक बढेंगी।
सुनील चौधरी, हॉकी कोच, स्पोर्ट्स स्टेडियम
शहर को एस्ट्रोटर्फ मिला है, यह बेहद खुशी की बात है। मगर खिलाडि़यों को वास्तविक खुशी तब मिलेगी, जब उन्हें इस पर खेलने दिया जाएगा। वर्तमान में हॉकी के हालात क्या हैं, यह किसी से छिपे नहीं हैं।
प्रदीप चिन्यौटी, हॉकी कोच, एनएएस कॉलेज