मेरठ (ब्यूरो)। ये बात साल 2007 की है। मेरा छोटा भाई पुलकित बहुत बीमार हो गया था। बड़े से बड़े डॉक्टर और हास्पिटल में उसका इलाज कराया। उसके लिए खूब दौड़े। माता-पिता के साथ मैं भी काफी परेशान रही। मम्मी-पापा ने भगवान से खूब प्रार्थनाएं की। देशभर के मंदिरों में माथा टेका, लेकिन अफसोस हम अपने पुलकित को नहीं बचा पाए। एक दिन उसने हमसे अलविदा कह दिया। जीवन की इस ट्रेजडी से हम बहुत टूट गए। मायूसी तो जैसे घर में मानों बैठ गई थी, लेकिन कहते हैं न, कि समय की रफ्तार हर मुश्किल पर मरहम लगा ही देती है। हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ, लेकिन मैंने और मेरे परिवार ने एक अलग संकल्प लिया। ये संकल्प था कि जरूरतमंद बच्चों की मदद करना। बस अब यही जीवन का संकल्प भी है, और इसकी सिद्धि के लिए संघर्ष भी। यकीन मानिए मेरे जीवन का इतना ही मकसद है कि पैसों के अभाव में किसी बच्चे की पढ़ाई न छूटे, बस इसके लिए मैं जुटी रहती हूं।

भाई की याद में बनाई संस्था
मेरा नाम अंजुला राजवंशी है। मैं आरजी पीजी कॉलेज में प्रोफेसर हूं। बच्चों को समाज शास्त्र पढ़ाती हूं। भाई की मौत के बाद मेरे पिता डीके अग्रवाल और मां ऊषा अग्रवाल टूट गई थीं। उन्होंने सोचा कि भाई की याद में समाज के लिए कुछ किया जाए। इसलिए एआर प्रयास नाम की संस्था बनाई। इसका मकसद है कि गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों को एजुकेट किया जाए। सबसे पहले झुग्गी-झोपड़ी में जाकर बच्चों को पढ़ाया। उन्हें कॉपी किताबें दीं, ताकि पढ़ाई में उनका मन लग सके।

स्कूलों में कराया एडमिशन
झुग्गी झोपड़ी में बच्चों को पढ़ाने के बाद उनका एडमिशन आसपास के स्कूलों में कराया। उनकी फीस की भी व्यवस्था की। अब ऐसे ही सरकारी स्कूलों में हर साल संस्था की ओर से शिक्षण सामग्री बांटी जाती है। हमारी संस्था अब तक करीब 700 बच्चों की पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था कर चुकी है। इसके साथ ही 100 से अधिक युवाओं को कंप्यूटर की ट्रेनिंग दी है। अब ये सभी बच्चे अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं।

17 साल से चल रहा प्रयास
जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा व्यवस्था के लिए हमारी छोटी सी कोशिश बीते 17 साल से चल रही है। मेरा मकसद बच्चों को सिर्फ शिक्षित करना ही नहीं, बल्कि उनको सफल बनाना भी है। अब मेरेे माता-पिता भी इस दुनिया को छोड़ चुके हैं। पर मेरे संघर्ष का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है। अब मेरे चाचा इस काम में सहयोग करते हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि समाज के अंतिम बच्चे तक हमारी पहुंच हो, ताकि वे पढऩे-लिखने में पीछे न रहें।

कई शिक्षण संस्थाएं भी कर रहीं मदद
कहते हैं कि नेक काम आपको अकेले ही करने होते हैं। इसके बाद लोग आपके साथ आते हैं। अब हमारे इस प्रयास में कई शिक्षण संस्थाएं भी जुट गईं हैं। वे भी स्टेशनरी, कॉपी-किताबें बांट रहीं हैं। हमारी इस कोशिश में अब कई संस्थाएं सहयोगी बन रही है। यह अच्छा संकेत हैं। समाज में हम तभी बदलाव कर सकते हैं, जब हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझेगा। आरजी-पीजी कॉलेज में मैं प्रोफेसर के साथ ही एनसीसी अधिकारी भी हूं। इसलिए अपने बच्चों को अनुशासन की भी सीख देती हूं।

कोरोना काल में मदद की
कोरोना काल सबसे मुश्किल वक्त था हर किसी के लिए, खास तौर पर गरीब वर्ग के बच्चों की पढ़ाई तक छूट गई थी। कई लोगों के पास तो खाने-पीने तक के लाले पड़ गए थे। उन दिनों में भी हमारी संस्था ने झुग्गी-झोपडिय़ों में पहुंचकर राहत सामग्री बांटी थी। साथ ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई न रुके, इसके लिए भी व्यवस्था की थी। बच्चे शिक्षित हों, वे अच्छी जॉब करें, एक अच्छे नागरिक बनें, बस अब तो यही एक मकसद है।