मेरठ (ब्यूरो)। क्रिटिकल और रोड एक्सीडेंट में घायल पेशेंट्स कोगोल्डन ओवर में ट्रीटमेंट मुहैया करवाने के लिए जिला अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर शुरू होना था। मगर डेड लाइन बीतने के बावजूद मंडलीय जिला अस्पताल में ट्रामा सेंटर शुरू नहीं हो सका है। प्रोजेक्ट को शुरू हुए तीन साल का समय बीत चुका हैं लेकिन ठेकेदार की ओर से बिल्डिंग आज तक हैंड ओवर नहीं हो पाई है। ये हालात तब हैैं, जब शासन की ओर से इसके लिए सिर्फ छह महीने का समय दिया गया था। हालांकि विभागाधिकारियोंका कहना है कि प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है।

पेशेंट्स पर भारी लेटलतीफी
ट्रॉमा सेंटर शुरू न होने की वजह से मरीजों को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है। मेरठ समेत आसपास के मरीजों के लिए सरकारी में सिर्फ मेडिकल कॉलेज में ही ट्रॉमा सेंटर है। यहां भी हर दिन करीब 250 मरीज आते हैं। ऐसे में काफी मरीजों को दिल्ली रेफर करना होता है। इस सेंटर पर मरीजों के भार को कम करने व मरीजों को एक ही जगह तुरंत इलाज उपलब्ध करवाने के लिए ये सेंटर शुरू किया जाना था।

बेहद जरूरी है गोल्डन ओवर
एक्सपर्ट बताते हैं कि क्रिटिकल मरीजों के लिए शुरू का पहला घंटा यानी गोल्डन ओवर बेहद महत्वपूर्ण होता है। यदि इस समय में मरीज को इलाज मिल जाए तो उसकी जान बचाना आसान हो जाता है। इसीलिए मेडिकल के अलावा जिला अस्पताल में एक और ट्रामा सेंटर की शुरुआत की जानी थी। इस सेंटर के लिए शासन की ओर से सवा करोड़ का बजट भी जारी किया गया था।

ये मिलेंगी सुविधाएं
सीटी स्कैन
एमआरआई
अल्ट्रासाउंड
ब्लड टेस्ट
आईसीयू
सर्जरी

फैक्ट्स फाइल
40 फीसदी मरीज समय पर इलाज न मिलने से तोड़ देते हैं दम।
1500 मरीज लगभग रोजाना पहुंचते हैं जिला अस्पताल में
100 मरीजों को करना पड़ता है रेफर।

इनका है कहना
ट्रॉमा सेंटर की बिल्डिंग हमें हैंड ओवर नहीं हुई है। अभी यहां पानी की सप्लाई में भी दिक्कत है। एसी, पंखे भी नहीं लगे हैं। काम जल्द से जल्द करवाया जा रहा है। शासन से स्टाफ की भी मांग की जा रही है।
डॉ। कौशलेंद्र सिंह, एमएस, जिला अस्पताल

क्रिटिकल पेशेंट्स को यदि गोल्डन ओवर में इलाज उपलब्ध हो जाता है तो उसके बचने के चांसेस काफी बढ़ जाते हैं। देरी होने की वजह से इमरजेंसी तक आते-आते ही कई मरीज दम तोड़ देते हैं।
डॉ। धीरज राज, सर्जन, मेडिकल कॉलेज

मेडिकल कॉलेज में 14 जिलों के मरीज आते हैं। क्रिटिकल मरीजों को समय रहते इलाज मिलना बेहद जरूरी है। इसके बाद रिस्क बढ़ जाता है। कोविड काल में देर से एडमिट होने की वजह से काफी मरीजों की जान गई थी।
डॉ। आरसी गुप्ता, प्रिंसिपल, मेडिकल कॉलेज