मेरठ (ब्यूरो)। सरस्वती शिशु विद्या मंदिर के ग्राउंड में मंगलवार को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के दूसरे दिन कथाव्यास साध्वी पद्महस्ता भारती ने बताया कि भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। यह यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक मध्य सद्गुरु रूपी सेतु न हो। क्योंकि आत्मा और परमात्मा के मिलन का सेतु सद्गुरु है। यही सृष्टि का अटल और शाश्वत नियम है। उन्होंने कहा कि ध्रुव ने यदि प्रभु को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद के द्वारा। अर्जुन ने यदि प्रभु को प्राप्त किया तो वो जगदगुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से।
चिंतन भाव से नहीं किया
साध्वी ने आगे कहा कि आज लाखों लोग प्रभु को पुकार रहे हैं परंतु वह प्रकट नहीं हो रहे हैं। प्रभु ने द्रोपदी की ही लाज क्यों बचाई, प्रहलाद की ही रक्षा क्यों की, संत मीरा या कबीर की तरह हमारी रक्षा क्यों नहीं करते। इसका कारण यह है कि हमने ईश्वर को देखा नहीं, जाना नहीं, उनकी शरणागति प्राप्त नहीं की, उनका चिंतन भाव से नहीं किया, इसलिए हमारा प्रेम ईश्वर से नहीं हो पाया है।
मन कहीं और रहा
उन्होंने आगे कहा कि भले ही हमने रोजमर्रा के अपने जीवन में भक्ति के नाम पर बहुत कुछ किया, पर हमारा मन कहीं और रहा। जब तक विश्वास और चिंतन भाव से नहीं होगा तब तक हमारा प्रेम प्रभु से नहीं होगा। जब तक हमारा प्रेम प्रभु से नहीं होगा तब तक हम ईश्वर को नहीं बुला पाएंगे, न ही वो प्रकट होंगे।
ज्ञानी महापुरूष की शरण
उन्होंने कहा यदि हम चाहते हैं कि जिस प्रकार प्रभु ने भक्त ध्रुव को दर्शन दे कृतार्थ किया, उसी प्रकार हमें भी दर्शन दे तो हमें भी नारद जी के समान ज्ञानी महापुरूष की शरण में जाकर उनकी कृपा से ईश्वर के तत्व स्वरुप दर्शन कर उनके मार्गदर्शन में चलना होगा। तभी हम भी उन भक्तों के सामान प्रभु के प्रिय बन जाएंगे और वे हमारी रक्षा करेंगे।