अब तो 'साइकिल' से ही आस
- नहीं छिनी साइकिल तो फिर सब बैठ सकते हैं साथ
- सपा में सुलह की अंतिम कवायद होना अभी बाकी
- मुलायम गुट को मिला सिंबल तो समीकरण बदलना तय
LUCKNOW: समाजवादी पार्टी का झगड़ा भले ही चुनाव आयोग की चौखट पर पहुंच गया हो लेकिन इसका पटाक्षेप होने की उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं। अब सारी आस 'साइकिल' सिंबल पर टिकी है जो दोनों गुटों का मेल करा सकती है। दरअसल साइकिल सिंबल के बगैर चुनाव मैदान में अपनी ताकत आजमाने में प्रत्याशियों को खासी मशक्कत का सामना करनी पड़ेगी। नया चुनाव चिन्ह उनकी जीत को हार में भी बदल सकता है। इन हालात में साफ है कि दोनों गुटों में से किसी को भी अगर साइकिल सिंबल मिला तो सुलह की कवायद एक बार फिर शुरू हो सकती है।
पार्टी से बढ़कर कुछ नहीं
सियासत के दांव-पेंच जानने वालों की माने तो समाजवादी पार्टी में रार का अंत चुनाव आयोग के फैसले पर निर्भर करता है। आयोग ने यदि सिंबल को फ्रीज कर दिया तो यह दोनों ही गुटों के लिए ऐसा झटका होगा जिससे उबर पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। वहीं यदि मुलायम गुट को सिंबल मिला तो अखिलेश गुट को एक बार फिर नये सिरे से इस बारे में सोचना होगा कि वे नये सिंबल के साथ चुनाव मैदान में उतरने का खतरा मोल लेना कितना फायदेमंद होगा। वहीं अखिलेश गुट को सिंबल मिलने की सूरत में मुलायम का चेहरा प्रचार के लिए जरूरी होगा। बिना मुलायम चुनाव में जातिगत समीकरणों को साध पाना अखिलेश गुट के लिए आसान नहीं होगा। वहीं मुलायम की नामौजूदगी मुस्लिम वोट बैंक को भी खासा प्रभावित करेगी।