लखनऊ (ब्यूरो)। घर से स्कूल और स्कूल से घर तक के सफर के दौरान स्कूली बच्चों की सेफ्टी के लिए वैसे तो एसी कमरों मेें बैठने वाली अधिकारी कई नियम-कानून बनाते हैं, पर बात जब उनका सड़क पर पालन कराने की होती है तो सारे दावे पंचर हो जाते हैं। ओवर स्पीड, मानक विपरीत वाहन और नियमों को ताक पर रखकर बच्चों को जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले ड्राइवरों का आतंक शहर की सड़कों पर अब आम बात हो गई है। ई-रिक्शा को परिवहन विभाग ने स्कूली वाहन के तौर पर इस्तेमाल करने पर पूरी तरह बैन लगा रखा है, लेकिन पूरे शहर में बच्चों को स्कूल से लाने ले जाने में ई-रिक्शा यूज हो रहे हैं। इतना ही नहीं, ज्यादा बच्चे ठूंसने के लिए इन्हें मॉडिफाई भी करा लिया गया है
जिम्मेदारों को क्यों नहीं नजर आते ऐसे ई-रिक्शा
स्कूली बच्चों को मानक के विपरीत ओवर लोड कर ले जाने वाले ई-रिक्शा हर चौराहे व रोड से गुजरते हैं। जहां सिविल पुलिस, ट्रैफिक पुलिस व परिवहन के अफसर भी मौजूद रहते हैं। सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर उन्हें ऐसे खतरनाक ई-रिक्शा क्यों नजर नहीं आते? नो पार्किंग में गाड़ी पार्क करने पर चालान में तेजी दिखाने वाले पुलिस कर्मी ऐसे वाहनों को क्यों नजरअंदाज करते हैं? स्कूल मैनेजमेंट को भी पैरेंट्स को बुलाकर सवाल करना चाहिए, क्योंकि स्कूली बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनपर भी है।
ई-रिक्शा क्यों नहीं बन सकते स्कूली व्हीकल
- स्कूली व्हीकल में जीपीएस सीसीटीवी होना जरूरी है।
- पारदर्शी फर्स्ट एड बॉक्स जरूरी है।
- एसएलडी (40 किमी से कम) लगा होना चाहिए।
- व्हीकल में फायर फाइटिंग सिस्टम होना चाहिए।
- स्कूली व्हीकल में अलार्म घंटी व सायरन लगा होना जरूरी है।
- खिड़की में कम से कम चार क्षैतिज स्टील रॉड इस तरह लगी हो कि दो रॉड के बीच की दूरी पांच सेमी से अधिक न हो।
- छोटे व्हीकल में जाली या रॉड लगाने के निर्देश हैं।
- स्कूली व्हीकल में प्रेशर अथवा मल्टी हार्न नहीं होगा।
- डीआईओएस व बीएसए अपने स्तर से सभी स्कूल मैनेजमेंट को सूचित करेंगे कि इन निर्देशों के साथ कि स्कूली बच्चों के परिवहन में लगे व्हीकल में परमिट होना चाहिए।
स्कूल मैनेजमेंट को देना था शपथ पत्र
ई-रिक्शा पर स्कूली बच्चों को सफर नहीं करना है। इसके लिए स्कूल मैनेजमेंट को एक शपथ पत्र परिवहन विभाग में देने का भी निर्देश दिया गया था। उनके स्कूल में किसी भी बच्चे का परिवहन बिना परमिट, बिना फिटनेस, निजी वैन व ई-रिक्शा में नहीं किया जाएगा। अनुमन्य वाहनों में निर्धारित क्षमता से अधिक बच्चों का परिवहन नहीं किया जाएगा। ई-रिक्शा में महज चार लोगों के बैठने की जगह होती है, लेकिन स्कूली बच्चों को ले जाते समय ई-रिक्शा चालक बीच की दोनों सीटों पर तीन-तीन, पीछे की ओर एक्स्ट्रा सीट लगाकर तीन और ड्राइवर सीट के दोनों ओर एक-एक बच्चे को बैठाकर चलते हैं। यही हाल ऑटो रिक्शा का भी है। बच्चों को बीच में लकड़ी का फट्टा रखकर बैठाया जाता है। स्कूलों में लगी वैन के ड्राइवर भी दोनों सीटों के बीच लकड़ी का फट्टा लगाकर 20 से अधिक बच्चों को बैठा लेते हैं।
छुट्टी के बाद स्कूल के बाहर लगती है लंबी कतार
शहर में कई इलाकों में स्थित प्राइवेट स्कूलों के बाहर छुट्टी के दौरान अनेक ई-रिक्शा आ जाते हैं। इन्हीं पर सवार होकर बच्चे अपने घरों को वापस लौटते हैं। सुबह स्कूल जाने के दौरान भी यह सीन आम है। ये ई-रिक्शा स्कूल की तरफ से नहीं लगाए गए हैं बल्कि इनके ड्राइवर स्वयं ही वहां पहुंच जाते हैं, लेकिन स्कूल मैनेजमेंट इस पर गौर नहीं करता।
चलाने में भी आती है ड्राइवर को प्रॉब्लम
ई-रिक्शा बच्चों से इतने भरे हुए होते हैं कि ड्राइवर को हैंडल तक मोड़ने में प्रॉब्लम होती है। क्षमता से अधिक बच्चों को बैठाकर ई-रिक्शा और स्कूली वैन दौड़ रहीं हैं, लेकिन फिर भी अधिकारी कार्रवाई करने से कतरा रहे हैं, जो बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।
जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान, पैरेंट्स भी लापरवाह
ज्यादातर स्कूली ई-रिक्शा कवर्ड नहीं हैं। सड़क पर दौड़ने वाले नाम मात्र के ही ई-रिक्शा पूरी तरह से सुरक्षा के मानकों को पूरा करते हैं। पूरी तरह से खुले ई-रिक्शा के कारण बच्चों के गिरने की आशंका रहती है। वे एक्स्ट्रा सीटें डालकर मानकों के साथ भी खिलवाड़ कर रहे है। जिम्मेदार अफसर भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। वहीं दूसरी तरफ, पैरेंट्स भी बच्चों की सुरक्षा की परवाह किए बिना इन वाहनों पर बच्चों को भेज रहे हैं।