लखनऊ (ब्यूरो)। पहले तो पावर कारपोरेशन की ओर से ग्रामीण बिलिंग को शहरी दर पर कर दिया गया और जब गलती पकड़ी गई तो उन ग्रामीण फीडरों को शहरी फीडरों में कंवर्ट करने की कवायद शुरू कर दी गई है। मामला संज्ञान में आने के बाद उपभोक्ता परिषद ने इसको लेकर विरोध शुरू किया और स्पष्ट किया कि अधिक बिजली दिए जाने के बावजूद ग्रामीण फीडरों को शहरी फीडर में कंवर्ट नहीं किया जा सकता। फिलहाल मामला नियामक आयोग पहुंच चुका है।

पर्दे के पीछे नया खेल
प्रदेश की बिजली कंपनियों द्वारा 636 आईपीडीएस टाउन सहित अनेकों जनपदों में बिजली आपूर्ति अधिक देने के नाम पर लाखों की संख्या में ग्रामीण बिजली उपभोक्ताओं की बिलिंग को शहरी आधार पर करके उनसे कई गुना बिल वसूल लिया गया। इस मामले में पावर कारपोरेशन के निदेशक वाणिज्य की तरफ से विद्युत नियामक आयोग को पत्र लिखकर उपभोक्ता परिषद की अवमानना याचिका पर जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा गया है, जबकि आयोग ने 10 दिन में पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक से रिपोर्ट मांगी थी। वहीं, उपभोक्ता परिषद ने खुलासा किया है कि बिजली कंपनियों ने कार्रवाई से बचने के लिए पर्दे के पीछे एक नया खेल शुरू कर दिया है।

वर्ष 2016 की याचिका को बनाया आधार
पावर कारपोरेशन ने उपभोक्ता परिषद की वर्ष 2016 की याचिका को आधार बनाते हुए कहा कि विद्युत नियामक आयोग ने जैसा यह निर्देश दिया था की मात्र बिजली आपूर्ति की घंटों में बढ़ोत्तरी करके ग्रामीण फीडर पर शहरी टैरिफ नहीं लागू किया जा सकता, जब तक की ग्रामीण फीडर को शहरी शेड्यूल के अनुसार बिजली आपूर्ति न दी जाए और उसे शहरी फीडर ना घोषित कर दिया जाए, इसलिए सभी बिजली कंपनियां जिनके क्षेत्र में बिजली आपूर्ति बढ़ाने के कारण ग्रामीण फीडर पर शहरी दर पर विद्युत बिल की वसूली हुई है, वहां तत्काल शहरी फीडर घोषित कर दिया जाए, उसके उपरांत जवाब पावर कॉरपोरेशन को भेजा जाए। पावर कारपोरेशन के निदेशक वाणिज्य ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अपने बिलिंग सॉफ्टवेयर विंग से भी पिछले 6 माह के सप्लाई टाइप परिवर्तन के मामले की रिपोर्ट भी मांगी है।

अवमानना की कार्रवाई की जाए
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने बिजली कंपनियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई किए जाने की मांग उठाई है। परिषद अध्यक्ष ने यह भी कहा कि जिस प्रकार से विद्युत नियामक आयोग द्वारा अपने आदेश जिसमें 10 दिन में पावर कॉरपोरेशन से रिपोर्ट तलब की गई थी उसके एक माह से ज्यादा बीत जाने के बाद आयोग द्वारा चुप रहने को भी गंभीर बताया और कहा इससे उपभोक्ताओं में निराशा व्याप्त है। पावर कॉरपोरेशन द्वारा अपनी गलती सुधार कर उत्तर भेजने को गंभीर प्रकरण बताया और कहा कि इससे पूरे उत्तर प्रदेश के ग्रामीण बिजली उपभोक्ताओं का बड़े पैमाने पर शोषण हो रहा है।