लखनऊ (ब्यूरो)। नवाबों का शहर लखनऊ मेहमानवाजी के लिए दुनिया में मशहूर है। जिसकी बानगी माहे रमजान के दौरान खासतौर पर देखने को मिलती है। हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा खासतौर पर रोजेदारों के लिए विशेष शाही रसोई का इंतजाम किया जाता है। जिसमें, गरीब और जरूरतमंदों को पूरे माह भरपेट खाना खिलाने के साथ रोजदारों को इफ्तारी की भी सुविधा दी जाती है। यह रसोई रमजान के दौरान करीब 30 दिनों तक चलती है।
करीब 183 वर्ष पुरानी शाही रसोई
हुसैनाबाद ट्रस्ट के अधिकारी हबीबुल हसन बताते हैं कि इस शाही रसोई का इतिहास करीब 183 वर्ष पुराना है। इसे अवध के तीसरे शासक और नवाब मुहम्मद अली शाह ने शुरू कराया था। जिसमें राजा के ट्रस्ट फंड की मदद से गरीबों को फ्री भोजन उपलब्ध कराया जाने लगा। यह सिलसिला लगातार जारी है। कोरोना काल के दौरान दो वर्ष यह सुविधा बंद रही, जो अब फिर अपनी पुरानी रंगत में लौट आई है।
हर साल निकलता है टेंडर
ट्रस्ट के अधिकारी हबीबुल बताते हैं कि शाही रसोई के लिए हर साल टेंडर निकाला जाता है। इसबार का टेंडर 30 लाख रुपए का गया है। यहां का बना खाना ट्रस्ट की आसिफी मस्जिद, छोटा इमामबाड़ा, शाहनजफ इमामबाड़ा समेत 13 मस्जिदों में रोज इफ्तारी जाती है, यानि 1550 लोगों की इफ्तारी का बंदोबस्त रहता है। इसके अलावा 600 जरूरतमंदों को दो रोटी के साथ आलू का सालन या एक प्याला दाल दिया जाता है। जिसमें तीन दिन आलू का सालन और तीन दिन दाल दी जाती है। जिसे छोटे इमामबाड़े से बांटा जाता है।
प्योर वेज खाना बनता है
शाही रसोई की सबसे जुदा बात यह है कि यहां पूरी तरह शुद्ध शाकाहारी भोजन ही बनता और वितरित किया जाता है। यह शाही रसोई रमजान माह की शुुरुआत से लेकर ईद के एक दिन पहले तक चलती है। रसोई में खाना बनाने का काम दोपहर 12 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक होता है। जिसके बाद इफ्तारी के समय खाना बांटा जाता है। इसमें गरीबों के लिए आलू का सालन, चने की दाल और रोटी तैयार की जाती है। जबकि, इफ्तारी के लिए बंद मक्खन, फुलकी इमरती पेटीज आदि तैयार की जाती है।